अंतर्राज्यीय सीमाओं की किलेबंदी उचित नहीं

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मज़दूर संघर्ष कमेटी द्वारा, किसानों को 13 फरवरी को अपनी मांगों के पक्ष में केन्द्र सरकार पर दबाव डालने के लिए ‘दिल्ली चलो’ के दिए गये आह्वान के दृष्टिगत केन्द्र और हरियाणा दोनों सरकारें बहुत चौकस हुई नज़र आ रही हैं। एक तरफ तो केन्द्र के तीन मंत्री पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानन्द किसानों के साथ उनकी मांगों संबंधी बातचीत जारी रख रहे हैं, और दूसरी तरफ किसानों को पंजाब और उत्तर प्रदेश की तरफ से दिल्ली जाने से रोकने के लिए सख्त घेराबंदी की जा रही है। पंजाब के किसानों ने शंभू, डबवाली और खनौरी सीमा से हरियाणा में दाखिल होकर दिल्ली जाने का फैसला किया था। इसके दृष्टिगत हरियाणा की सरकार ने पंजाब के साथ लगती अपनी सभी सीमाओं को बंद कर दिया है। शंभू की सीमा पर सीमेंट के बड़े-बड़े ब्लाक रखे गये हैं, कंटीली तार लगाई गई है और सड़क पर कंक्रीट बिछा कर लोहे की कीलें भी लगाई गई हैं। यहीं बस नहीं, शंभू सीमा पर हरियाणा की सरकार द्वारा आंसू गैस के गोले छोड़कर मॉक ड्रिल भी की गई है। 
हरियाणा सरकार द्वारा पंजाब के साथ लगती अपनी अलग-अलग सीमाओं से बड़े स्तर पर यातायात रोकने के कारण या दिल्ली जाने के लिए पेचीदा अलग रूट देने के कारण लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जी.टी. रोड पर ट्रकों की लम्बी-लम्बी लाईनें लग गई हैं और उनके ड्राईवर बहुत परेशान हो रहे हैं। आम लोगों को भी अपने निजी वाहनों द्वारा दिल्ली जाने में बहुत मुश्किल आ रही है। 2020 में पहले किसान आंदोलन के दौरान भी हरियाणा सरकार ने इसी तरह की घेराबंदी की थी। इसके बावजूद किसान हरियाणा में से होते हुए सिंघू, टिकरी और कुंडली आदि सीमाओं तक पहुंच गये थे और वहां उन्होंने पक्के मोर्चे लगा दिए थे। तब किसान आंदोलन एक वर्ष से भी अधिक समय तक जारी रहा था, जब तक कि केन्द्र सरकार ने तीन किसान विरोधी कानून वापिस लेने का ऐलान नहीं कर दिया था। शायद हरियाणा सरकार अपनी पिछली विफलता दृष्टिगत सीमाओं पर अधिक सतर्कता बरत रही है, ताकि किसान हरियाणा में से निकल कर किसी भी सूरत में दिल्ली तक न पहुंच सकें।
इस संबंध में हमारी स्पष्ट राय है कि केन्द्र सरकार को अपने पिछले तज़ुर्बे के दृष्टिगत पंजाब तथा देश के अन्य भागों के किसान संगठनों के साथ बातचीत करके किसानों की उचित मांगों को स्वीकार करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। केन्द्र सरकार ने इस संबंध में तीन केन्द्रीय मंत्रियों पर आधारित समिति बना कर ठीक पहल-कदमी की है, परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा हरियाणा सरकार के माध्यम से पंजाब की या दिल्ली से लगती उत्तर प्रदेश की सीमाओं को अपने तौर पर बंद करना किसी भी प्रकार उचित नहीं है। इससे जहां आम लोगों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, वहीं पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के लोगों में इस पक्ष से भी बहुत गलत प्रभाव जाता है कि सरकार किसान आन्दोलन के बहाने देश के किसी भी अन्य भाग तक बिना बाधा यात्रा करने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रही है। इससे आम लोगों में परायेपन तथा रोष की भावना पैदा होती है।
इसी प्रकार 1982 में जब शिरोमणि अकाली दल द्वारा केन्द्र सरकार के खिलाफ अपनी मांगों के लिए ‘धर्म युद्ध मोर्चा’ के नाम पर आन्दोलन शुरू हुआ था और शिरोमणि अकाली दल ने एशियाई खेलों के दैरान दिल्ली में जाकर रोष व्यक्त करने का आह्वान किया था, उसके दृष्तिगत हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भजन लाल ने न सिर्फ पंजाब के आम लोगों को सड़क के माध्यम से हरियाणा में प्रवेश करने से रोका था, अपितु जो लोग अपने निजी कार्यों के लिए बसों तथा अन्य वाहनों के द्वारा किसी न किसी ढंग से हरियाणा में दाखिल हुए थे, उन्हें वाहनों से निकाल-निकाल कर बुरी तरह अपमानित भी किया गया था। भजन लाल ने पंजाब के लोगों तथा विशेषकर सिख समुदाय के साथ तब जिस प्रकार का बुरा व्यवहार किया था, उसकी पीड़ा पंजाब के लोगों के मन में आज तक भी बसी हुई है। भजन लाल के उस व्यवहार से पंजाब के लोगों के एक बड़े भाग में परायेपन की भावना पैदा हुई थी। इस ऐतिहासिक संदर्भ में हम हरियाणा सरकार तथा विशेषकर केन्द्र सरकार को यह कहना चाहते हैं कि वे पंजाब के लोगों पर हरियाणा में दाखिल होने पर लगाई गई पाबंदियां तुरंत वापस लें तथा इस उद्देश्य के लिए सड़कों पर जो सीमेंट की बड़ी-बड़ी स्लैबें रखी गई हैं, कंटीली तारें लगाई गई हैं तथा सड़क पर जो कीलें गाढ़ी गई हैं, ये सब हटाई जानी चाहिएं। इसका पंजाब में लोगों के मन पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यह देश सब का साझा है। इस देश में शांतिपूर्वक ढंग से सफर करने का सब को अधिकार है। यदि किसान संगठन या कोई अन्य आन्दोलनकारी अपनी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जाकर रोष व्यक्त करना चाहता है तो इसमें हरियाणा सरकार को कोई अधिकार नहीं बनता कि वह पंजाब के लोगों को दिल्ली जाने से रोके। यदि इस संबंध में कोई पेशबंदी करनी ही है तो वह दिल्ली के प्रशासन तथा उसकी पुलिस द्वारा करना बनती है। हरियाणा सरकार को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। इससे पंजाब तथा हरियाणा दोनों पड़ोसी राज्यों के संबंधों में भी बेहद विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।   
आशा करते हैं कि केन्द्र सरकार किसानों की लम्बित मांगों फसलों के लाभकारी समर्थन मूल्य देने, पिछले किसान आन्दोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के लिए मुआवज़ा देने तथा उस समय दर्ज हुए केसों को वापस लेने आदि का निपटारा बातचीत के माध्यम से करने को ही अधिमान देगी और इस संबंधी दमनकारी नीतियां धारण करने से गुरेज करेगी।