नकल और कोचिंग को क्या मौलिक अधिकार समझें ?

 

नकल कोचिंग से जिस तरह के परिणाम आ रहे हैं और इस क्षेत्र में जैसी व्यवस्था बनती गई है, उससे कभी-कभी ख्याल आता है कि क्या नकल करना और कोचिंग सैंटरों का संचालन मौलिक अधिकार है? यदि इन बिन्दुओं के साथ जॉब स्कैम को भी जोड़ लिया जाये तो एक नकारात्मक दुनिया की पूरी तस्वीर सामने आती है। बच्चों को बेहतर करियर के लिए जो स्वप्न दिखाया जाता है वह कितना अधूरा और नकारात्मक है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि बेहतर रिपोर्ट कार्ड के नाम पर जो दिवास्वप्न दिखाया है उससे कोचिंग का धंधा खूब फल-फूल रहा है। एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के अनुसार सन् 2022 में ही लगभग 13000 छात्रों को आत्महत्या को गले लगाना पड़ा।
दूसरी तरफ नकल की प्रवृत्ति एक माफिया का रूप धारण करती जा रही है। विद्यार्थियों में यह भ्रम पैदा किया जाता है कि ज्यादा मेहनत की ज़रूरत नहीं, बाप की संदूकची खुलते ही नकल की ऐसी व्यवस्था हो जाएगी कि सफलता को कोई मां का लाल रोक नहीं सकता। इधर दो फिल्मों ने इस मामले में ध्यान खींचा है। एक है ‘डंकी’ और दूसरी ‘12वीं फेल’ नौकरी स्कैम और नकल माफिया चिन्हित हो रहा है। इनका केन्द्र बिन्दु शिक्षा और रोज़गार। शिक्षा पूरी हो और रोज़गार के लिए धक्के खाते फिरे। यह असहन हो जाता है। मैकाले द्वारा लागू शिक्षा पद्धति से आज भी मुक्ति मार्ग नहीं दिखाई देता। रोज़गार का मतलब कहीं भी कोई भी काम नहीं है। इसका मतलब है नौकरी। उधर अनेक कारणों से लाखों नौकरी के अवसर कम होते चले जा रहे हैं जब नौकरी पाने के लिए दस्तक देने वाले लाखों हैं।
यह मान लिया गया है कि नौकरी के लिए डिग्री, घूस या फिर सिफारिश की ज़रूरत होती है। जबकि प्राइवेट सैक्टर में काम और अनुभव ही काम आते हैं। शिक्षा और नौकरी का एक वृहद बाज़ार खुला पड़ा है। इस कठोर बाज़ार में स्कूल, कोचिंग और ऑनलाइन कम्पनियां बच्चों की उम्मीदों से खिलवाड़ कर मोटी कमाई अर्जित कर रही हैं। उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज जे.एस. वर्मा कमेटी का 2012 की टिप्पणी है कि हज़ारों बीएड कालेजों की गुणवत्ता के बजाय व्यापार में दिलचस्पी है। इस रिपोर्ट में सुकरात का उल्लेख करते हुए शिक्षण में विवेक के महत्त्व को रेखांकित किया गया था। राजस्थान में कोटा अगर करियर का कारखाना है तो वहां छात्र-छात्राओं की आत्महत्या का सिलसिला इतना आतंकित करने वाला क्यों है? 
कोचिंग माफिया पर लगाम लगाने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने कुछ ही दिन पहले गाइडलाइन जारी की है। इस पर सवाल उठाये गये हैं। ये ग्यारह पेज की गाइडलान किस कानून के तहत बनाई गई है? किस अधिकारी की अनुमति से उन्हें जारी किया गया है। सरकारी दस्तावेज़ का फाइल नम्बर और जारी किस तारीख को की गई? वैबसाइट पर इसके उत्तर उपलब्ध नहीं है। सो कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है। उच्चतम न्यायालय पहले ही (2017) में कोचिंग से जुड़े मर्ज को खत्म करने के लिए नियम बना कर सरकार को कार्रवाई करने को कह चुकी है। संसद में भी काफी चर्चा हो चुकी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी कोचिंग के तहत मर्ज पर चिन्ता व्यक्त की गई है। दूसरी तरफ बेरोज़गारी के आंकड़े डरा रहे हैं। अक्तूबर, दिसम्बर 2023 में 2024 वर्ष आयु वर्ग के युवकों में बेरोज़गारी दर 44-49 प्रतिशत थी। 25 वर्ष से कम उम्र के 42 प्रतिशत स्नातक बेरोज़गार हैं। अगले दस साल में 7 करोड़ नौकरियों की ज़रूरत होगी जबकि अनुमान है कि 2.4 करोड़ नौकरियां ही सृजित होने वाली हैं।