किसान आन्दोलन के कारण अस्थिरता की स्थिति में है पंजाब की राजनीति


वक्त और हालात पर क्या, तब्सिरा कीजै कि जब,
एक उलझन दूसरी उलझन को सुलझाने लगे। 
चन्द्र भान ख्याल का यह शे’अर पंजाब की वर्तमान राजनीति पर पूरी तरह चरितार्थ होता है, क्योंकि अभी न तो यह पता है कि किसान आन्दोलन क्या रुख धारण करेगा और किसान संगठनों के बीच आपसी तकरार समाप्त होगी कि नहीं। दूसरी ओर अकाली दल व भाजपा का समझौता चाहे फिलहाल होता दिखाई नहीं दे रहा, परन्तु अभी भी इसकी सम्भावना पूरी तरह समाप्त नहीं हुई। फिर इस संबंध में भी कुछ नहीं कहा जा सकता कि टिकटों के वितरण के समय भिन्न-भिन्न पार्टियों को आपसी फूट कितनी बढ़ेगी? इसके अतिरिक्त राज्यसभा चुनावों में जिस प्रकार भाजपा ने हिमाचल में कांग्रेसी विधायकों के वोट लिये हैं और जो स्थिति कांग्रेस में बन रही है, ये सभी स्थितियां लोकसभा चुनाव से संदर्भ में पंजाब की राजनीति को उलझा रही हैं, परन्तु फिर भी फिलहाल जो सम्भावना दिखाई दे रही है, उसके अनुसार लोकसभा चुनाव में पंजाब में चार कोणीय मुकाबला होने के आसार बढ़ते प्रतीत हो रहे हैं। कांग्रेस और ‘आप’ तो पंजाब में अलग-अलग चुनाव लड़ने की घोषणा कर ही चुकी हैं और भाजपा व अकाली दल के बीच फिलहाल समझौते की सम्भावनाएं कम ही दिखाई दे रही हैं, परन्तु जिस प्रकार भाजपा करते आई है, बिल्कुल अंतिम मौके पर विरोधियों को आश्चर्यचकित करने के लिए यदि वह अकाली दल के साथ कोई चुनाव समझौता कर ले तो इस बात की सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता, परन्तु एक बात स्पष्ट है कि पंजाब में अकाली दल  के साथ चुनाव समझौता करने पर ज़्यादा ज़ोर भाजपा के वे नेता ही दे रहे हैं जो पहले अकाली दल के साथ समझौते के कड़े विरोधी समझे जाते थे। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तो स्पष्ट रूप में समझौता करने के पक्ष में कह चुके हैं। वह तो यह भी कह गये कि पंजाब भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष सुनील जाखड़ भी अकाली दल के साथ समझौते के पक्ष में हैं। यहां तक कि भारत के गृह मंत्री अमित शाह स्वयं भी अकाली दल से समझौते की बात चलती होने बारे ब्यान दे चुके हैं। इसके विपरीत अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल इस मामले पर चुप हैं और संभल कर चल रहे हैं। वह अकेले चुनाव लड़ने की तैयारियां कर रहे हैं और इसीलिए  ही वह अपनी ‘पंजाब बचाओ यात्रा’ जल्द ही फिर से शुरू करने जा रहे हैं। किसान मोर्चे ने अकाली दल-भाजपा समझौते में जड़ता ला दी है। यदि केन्द्र सरकार ने इस मोर्चे से निपटने के लिए कोई दिलचस्पी दिखाई और समझदारी से काम लेते हुए ‘दिल्ली कूच’ वाले पक्षों के साथ-साथ किसानों के संयुक्त मोर्चा जिसमें बलबीर सिंह राजेवाल, हरिन्दर सिंह लक्खोवाल, डा. दर्शन पाल तथा अन्य पक्ष शामिल हैं, और किसान मांगों में संयुक्त मोर्चा से अलग तौर पर विचरण करने वाली, परन्तु मांगों के पक्ष में स्टैंड लेने वाले किसान संगठन बी.के.यू. उग्राहां को भी बातचीत की मेज़ पर बुलाकर कुछ किसान तथा पंजाब पक्षीय फैसला लेती है तो अकाली दल के लिए भाजपा से समझौता करना आसान हो जाएगा। हमारी जानकारी के अनुसार पहले भाजपा पंजाब की 13 में से 6 सीटें मांगती थी। फिर बात 13 सीटों में से भाजपा को 5 सीटें देने पर समाप्त हो चली थी, परन्तु अब यदि यह समझौता हुआ तो 9 तथा 4 सीटों पर ही होगा। अकाली दल भाजपा के लिए पहले छोड़ी 3 सीटों के साथ सिर्फ एक अन्य पटियाला सीट छोड़ने के लिए ही तैयार होगा। यहां एक और नोट करने वाली बात यह भी है कि यदि कांग्रेस नेता कमल नाथ को भाजपा ने अपने भीतर शामिल कर लिया तो यह भी अकाली-भाजपा समझौते की राह में बड़ी बाधा बन जाएगी। 
खैर! यदि वास्तव में ही लोकसभा चुनावों में पंजाब में चार कोणीय मुकाबला हुआ तो हमारी जानकारी के अनुसार कांग्रेस का हाथ सबसे ऊपर रहेगा। हमारे पास अलग-अलग सर्वेक्षणों तथा एजेंसियों की रिपोर्टों बारे छन-छन कर जो जानकारी पहुंची है, उसके अनुसार इस समय पंजाब में कांग्रेस की स्थिति काफी अच्छी है, बशर्ते कि कांग्रेस में कोई नई फूट या टिकटों के विभाजन को लेकर कोई नया विवाद न हो जाए और उम्मीदवारों का चयन सही हो जाए। जहां तक ‘आप’ का संबंध है, सत्तारूढ़ पार्टी को सत्तासीन होने का लाभ तो होता ही है परन्तु उसके खिलाफ ‘एंटी-इनकम्बैंसी’ (सत्ता विरोधी रुझान) भी उभरता है। जालन्धर उप-चुनाव में जीत कोई पैमाना नहीं है, क्योंकि जिस रणनीति से ‘आप’ ने वह चुनाव जीता था, अब वह रणनीति उतना काम नहीं कर सकेगी, परन्तु ‘आप’ मुकाबले से बाहर नहीं है जबकि चार कोणीय मुकाबले में अकाली दल भी कुछ सीटों पर कड़ा मुकाबला देने के समर्थ दिखाई दे रहा है, क्योंकि उसका काडर अभी भी उसके साथ खड़ा है। हमारी जानकारी के अनुसार अकाली दल जीत की संभावनाओं वाली कुछ सीटों को चिन्हित कर रहा है, जहां वह एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाएगा। इन चुनावों में भाजपा अकेले चुनाव लड़ कर कोई सीट जीत लेती है या नहीं, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, परन्तु वह 2-3 सीटों पर मुकाबले में तो रहेगी ही। वैसे यह बात पक्की है कि यदि भाजपा अकेले चुनाव लड़ती है तो उसके वोट प्रतिशत में बड़ी वृद्धि होगी, परन्तु यदि केन्द्र सरकार ने पंजाब तथा किसानों की कुछ मांगें मान कर समझौता कर लिया तथा उसका अकाली दल से फिर समझौता हो गया तो पंजाब में चुनाव मुकाबला चार कोणीय की बजाय त्रिकोणीय हो गया तो हालात काफी बदल जाएंगे और फिर यह कहना बहुत कठिन हो जाएगा कि त्रिकोणीय मुकाबले में कौन-सा पक्ष बाज़ी मारेगा, क्योंकि 2022 तथा 2024 में बड़ा अंतर है। 
मैदां की हार जीत तो किस्मत की बात है,
टूटी है किस के हाथ में तलवार देखना।
(निदा ़फाज़ली)
श्री आनन्दपुर साहिब लोकसभा सीट 
इस समय आनन्दपुर साहिब लोकसभा सीट की टिकट प्राप्त करने के लिए कांग्रेस, ‘आप’, अकाली दल तथा भाजपा नेताओं में आपसी होड़ लगी हुई है। उल्लेखनीय है कि यह सीट हिन्दू बहुसंख्यक सीट है। इस समय वहां कांग्रेस के मनीष तिवारी सांसद हैं, परन्तु 2019 के लोकसभा चुनाव एवं 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टियों द्वारा लिये गये वोट का प्रतिशत बहुत ही अलग है। जहां 2019 में कांग्रेस ने 40.3 प्रतिशत वोट लिये थे, वहीं ‘आप’ को सिर्फ 5 प्रतिशत वोट ही मिले थे जबकि अकाली-भाजपा गठबंधन उस समय 35.8 प्रतिशत वोट ले गया था, परन्तु 2022 के विधानसभा चुनाव में पासा ही पलट गया था। इन चुनावों में ‘आप’ ने 40.8 प्रतिशत वोट लिये थे जबकि कांग्रेस 24.5 प्रतिशत पर आ गई थी और अकाली दल को 13.8 प्रतिशत तथा भाजपा को 7.6 प्रतिशत वोट मिले थे। स्थितियां लगातार बदलती रही हैं। इस समय चारों पार्टियां ही यहां स्वयं को जीतने की स्थिति में देख रही हैं। कांग्रेस की ओर से टिकट लेने के चाहवानों में श्री तिवारी के अतिरिक्त पूर्व स्पीकर राणा के.पी. सिंह तथा पूर्व मंत्री राणा गुरजीत सिंह भी काफी ज़ोर लगा रहे बताए जाते हैं जबकि एक ‘डार्क हार्स’ (अर्थात अचानक उभरने वाला नाम) पंजाब के एक मंत्री के भाई का भी बताया जाता है। 
वास्तव में आनन्दपुर साहिब सीट बारे अकाली दल को छोड़ कर भाजपा, कांग्रेस तथा ‘आप’ तीनों पार्टियों की ओर से इस बात पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है कि यह सीट हिन्दू बहुसंख्या वाली सीट है। यदि यहां शेष पार्टियां सिख उम्मीदवार खड़ा करें अथवा जो अकेली पार्टी हिन्दू उम्मीदवार खड़ा करेगी, उसे लाभ हो सकता है जबकि राम मंदिर के कारण भाजपा हिन्दू वोट का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में समझती है, परन्तु इसके बावजूद वह अभी तक टिकट का फैसला नहीं कर पाई क्योंकि एक तो अभी अकाली-भाजपा गठबंधन की बात पूरी तरह समाप्त नहीं हुई, दूसरा यह भी निश्चित नहीं कि क्या इस क्षेत्र के हिन्दओं में इतना ध्रुवीकरण हो चुका है कि वे अकेले हिन्दुओं के सिर पर जीत सकेगी। इस समय भाजपा यहं के टिकट के दावेदारों में पूर्व सांसद एवं भाजपा के बड़े नेता अविनाश राय खन्ना तथा अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा या उनके बेटे अजयवीर सिंह लालपुरा के नाम ही प्रमुख हैं जबकि अकाली दल की ओर से टिकट के दोनों प्रमुख दावेदार सिख हैं। एक ओर पूर्व सांसद प्रो. प्रेम सिंह चन्दूमाजरा तथा दूसरी ओर पंजाब के पूर्व मंत्री डा. दलजीत सिंह चीमा बड़े दावेदार हैं। यहां से आम आदमी पार्टी के सिर्फ दो ही मज़बूत दावेदार बताए जाते हैं। पार्टी अपने उम्मीदवार की घोषणा करने में इसलिए देर कर रही है, क्योंकि वह जानना चाहती है कि दूसरी पार्टी का उम्मीदवार कौन और किस धर्म से संबंधित होंगे।
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