कांटों का ताज

शहबाज़ शरीफ ने पाकिस्तान में दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। इससे पहले वह 11 अप्रैल, 2022 से 13 अगस्त, 2023 तक इस पद पर रह चुके हैं। पाकिस्तान में चिरकाल से गड़बड़ वाला माहौल चल रहा है। आज इसका शुमार विश्व भर के अधिक अशांत देशों में होता है। यहीं बस नहीं, इस पड़ोसी देश में आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आतंकवादी संगठनों का जमावड़ा लगा हुआ है। नित्यप्रति वहां स्थान-स्थान पर बम विस्फोट होने तथा भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों को गोलियों से भूनने के समाचार आते रहते हैं। राजनीतिक तथा आर्थिक तौर पर भी यह पूरी तरह अस्थिरता के दौर से गुज़र रहा है। 
इसके पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान सलाखों के पीछे बंद हैं। उन पर लगभग 150 मुकद्दमे दायर किये गये हैं, परन्तु वह अभी भी पाकिस्तान के एक बड़े भाग के लोगों में लोकप्रिय माने जाते हैं। वह पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्साफ पार्टी के प्रमुख हैं। उनकी चुनी हुई सरकार को राष्ट्रीय असैम्बली में पराजित कर पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) तथा पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने इमरान खान की पार्टी के बहुत-से राष्ट्रीय असैंबली के सदस्यों को साथ मिला कर तथा कुछ अन्य छोटी पार्टियों की मदद से उसे सत्ता से हटा दिया था, जिसके बाद वहां बहुत-से स्थानों पर हिंसा फैल गई थी, जिसका निशाना बड़े सैन्य ठिकाने भी बने थे। पहले यह आम प्रभाव बना हुआ था कि इमरान खान तथा उसकी पार्टी ने सेना की मदद से सत्ता संभाली थी। प्रधानमंत्री होते हुए उन्होंने नवाज़ शरीफ सहित उनकी पार्टी तथा बिलावल भुट्टो एवं ज़रदारी सहित उनकी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के नेताओं से गिन-गिन कर बदले लिए थे और नवाज़ शरीफ सहित अधिकतर को जेलों में बंद कर दिया था, परन्तु सेना की ओर से उनका साथ छोड़ देने के बाद उनके बुरे दिन आने शुरू हो गये। इसका परिणाम उनकी कुर्सी छिन जाने के अतिरिक्त उनकी लम्बी नज़रबंदी के रूप में निकला। विगत 8 फरवरी को हुए राष्ट्रीय असैंबली के चुनावों से पहले समय पर पार्टी चुनाव न करवाने के कारण चुनाव आयोग ने इमरान खान की पार्टी को अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी थी। कुछ केसों में सज़ा होने के कारण इमरान खान को भी चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया गया था। दूसरी ओर नवाज़ शरीफ को न सिर्फ उनकी जलावतनी खत्म करके अपने देश आने की इजाज़त ही दी गई, अपितु उनको तथा उनकी पार्टी को खुल कर चुनाव लड़ने का अवसर भी दिया गया। बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी तथा अन्य छोटी पार्टियों ने इन चुनावों में भाग लिया। चुनावों के दौरान लगातार ये समाचार चलते रहे कि इनमें बड़े स्तर पर हेरा-फेरी हुई है। सेना प्रमुख सैयद आसिम मुनीर ने भी इन पार्टियों की एक तरह से परोक्ष रूप में मदद ही की थी। 
चाहे इन चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत तो प्राप्त नहीं हुआ लेकिन लम्बे विचार-विमर्श के बाद अंतत: इन दोनों बड़ी पार्टियों तथा कुछ अन्य पार्टियों के गठबंधन के साथ पाकिस्तान की सरकार बन गई है और नवाज़ शऱीफ के छोटे भाई शहबाज़ शऱीफ को पुन: प्रधानमंत्री चुन लिया गया है। इस समय एक तरफ जहां शहबाज़ शऱीफ ने कश्मीर मामले की बात की, वहीं इसके साथ ही उसने अपने पड़ोसी (भारत) के साथ अच्छे संबंध बनाए जाने की बात भी कही और यह भी कहा कि पाकिस्तान विश्व के अन्य देशों के साथ भी ऐसी सामंजस्यतापूर्ण नीति पर चलेगा। यह भी कि उनकी सरकार देश में से आतंकवाद खत्म करने की नीति अपनाएगी लेकिन शहबाज़ शऱीफ ने अपनी मुख्य चिंता पाकिस्तान की बहुत खराब हो रही आर्थिकता संबंधी भी प्रगट की और अपनी सरकार के अवाम को दरपेश बहुत कठिनाइयों में से निकलने की प्रतिबद्धता भी दोहराई। 
उन्होंने यह भी कहा कि देश के बजट में 33.60 खरब (एक ट्रिलियन) का घाटा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा बलों और दूसरे विभागों को वेतन दे पाना भी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि देश पर चढ़े पहाड़ जैसे कज़र् को उतारने के लिए अरबों रुपये की ज़रूरत होगी। इसलिए देश की आर्थिकता को सुधारना और कठिनाइयों में फंसे लोगों को इनमें से निकालना सरकार की पहली ज़िम्मेदारी होगी। चाहे शहबाज़ शऱीफ दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं लेकिन उनका बड़ा भाई नवाज़ शऱीफ पहले तीन बार यह उच्च पद संभाल चुका है। राष्ट्रीय चुनावों के साथ ही हुए प्रांतीय चुनावों के बाद उनकी बेटी मरियम नवाज़ ने देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले और अनुपाततया बेहतर प्रदेश पश्चिमी पंजाब के मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया है। इस समूचे दृश्य को देखते हुए हम समझते हैं कि शहबाज़ शऱीफ के सिर पर अब इस पद के साथ एक तरह से कांटों का ताज सजा दिया गया है। देखना यह होगा कि वह इस कांटों की चुभन और उनके साथ होने वाले गम्भीर ज़ख्मों के दर्द को किस तरह और कितने समय तक सहने के समर्थ हो सकेंगे। 
    


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द