इज़रायल बनाम ईरान 

नाक ऊंची रखने के लिए हमले पर हमला !

वही हुआ, जिसकी आशंका थी। पूरी दुनिया द्वारा आगाह किए जाने के बाद भी इज़रायल नहीं माना। ईरान ने बहुत कुछ बचते-बचाते जैसा हमला किया था, छह दिन बाद19 अप्रैल 2024 को वैसा ही जवाबी हमला इज़रायल ने भी कर दिया। हालांकि देखें तो दोनों ही देशों ने एक पूर्णयुद्ध से बचने की कोशिशों वाला हमला एक दूसरे पर किया है। सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से ताकि मनोवैज्ञानिक रूप से अपनी अवाम को यह दिलासा दे सकें कि उनका पलड़ा भारी है। आखिर इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है कि दोनों ही देश जानते हैं कि उनकी किसी भी समस्या का हल युद्ध नहीं है और दोनों यह भी जानते हैं कि कोई किसी को हल्के में नहीं ले सकता। न तो अपनी ताकत का हौव्वा खड़ा करने वाला इज़रायल यह मान सकता है कि ईरान को वह मुट्ठी में मसल देगा या हवा में उड़ा देगा और न ही ईरान यह सोच सकता है कि लगातार हमास और हिजबुल्लाह से उलझे रहने के बावजूद इज़रायल को कमजोर आंका जा सकता है।
दोनों इतने ताकतवर हैं कि एक दूसरे को कमज़ोर तो नहीं ही मान सकते। इज़रायल के पास अगर करीब 7 लाख की नियमित सेना, 6 लाख से ज्यादा पूर्व और विशिष्ठ सैनिक हैं तो दूसरी तरफ ईरान के पास अकेले करीब 12 लाख सैनिकों वाली सेना है, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि इस दौर में सेनाओं की संख्या कोई मायने नहीं रखती। असली बात यह होती है कि किस देश के पास कितने घातक हथियार और उन्नत तकनीक है कि वह दूसरे की हर कोशिश के बावजूद उसके अंदर घुसकर हमला कर सके और फिर सुरक्षित निकल भी जाय। निश्चित रूप से इस मायने में इज़रायल का पलड़ा भारी है, लेकिन सैन्य ताकत के मामले में अब छापामार युद्ध में सक्षम होने की यह क्षमता भी इसलिए अर्थहीन हो गई है, क्याेंकि ऐसे मानवविहीन ड्रोन मौजूद हैं, जो इस तरह की ताकत और हौसले का इंतज़ार नहीं करते कि दूसरे देश की सीमा में घुसने का दुस्साहस रात में करें या दिन में। 
वास्तव में आज सैन्य ताकत एक बहुत ही खास किस्म की ताकत का नाम है, जिसमें भौतिक ताकत से ज्यादा तकनीकी और रिमोट कंट्रोल ताकत महत्वपूर्ण हो गई है। इज़रायल ने हाल के सालों में अपनी ताकत के रिमोट इस्तेमाल तकनीक को उन्नत बनाने के लिए कई लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं, ताकि उसका क्विक रिस्पोंस अमरीकी सेना जैसा हो सके और अगर विशेषज्ञों की मानें तो इज़रायल के पास आज क्विक रिस्पोंस के मामले में यह ताकत है, तभी तो करीब-करीब 100 फीसदी आशंकाओं के बीच भी उसने इतनी तेज़ी से ईरान के बीचोंबीच मिसाइल ड्रोन के ज़रिये हमला किया है कि ईरान चाहकर भी उसे जवाब देने नहीं रोक सका।
निश्चित रूप से तीव्र तरीके से इज़रायल का ईरान पर यह हमला उसकी ताकत और फुर्ती तो साबित करता ही हैं, उसके उस आत्म-विश्वास को भी बताता है कि किस तरह ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा आदि की अनिच्छा के बावजूद न सिर्फ इज़रायल ने बार-बार उनकी सलाह को धन्यवाद के साथ मानने से इन्कार कर दिया बल्कि जिस तरह से भारी आशंकाओं के बीच इज़रायल ने ईरान पर हमला किया है। अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन सहित ज्यादातर पश्चिमी देश इज़रायल की रक्षा करना उसके वजूद को बरकरार रखना अपना ऐतिहासिक फज़र् मानते हैं, क्योंकि हिटलर ने यहूदियों का जिस तरह से जनसंहार किया था, उसके कारण बचे-खुचे यहूदियों को इज़रायल नामक एक देश बनाकर देने और उनके वजूद को बरकरार रखने को अब ये पश्चिमी देश अपनी ड्यूटी समझते हैं। इसलिए भी इज़रायल लगातार अपनी जिद पर अड़ा रहता है, क्योंकि उसे लगता है कि पश्चिमी देश अपना भावनात्मक कर्ज उतारने के लिए उसके साथ खड़े ही रहेंगे। इस वजह से इज़रायल को जितना व्यवहारिक होना चाहिए, उसे उतने व्यवहारिक होने की भी ज़रूरत महसूस नहीं होती। यह अपने आप में इज़रायल का खौफनाक दुस्साहस ही है कि उसने पूरी दुनिया द्वारा संयम बरतने की सलाह के बीच ईरान के जिन इलाकों में 19 अप्रैल 2024 की सुबह हमला किया, वे ऐसे इलाके हैं जहां ईरान के परमाणु ठिकाने स्थित हैं। अगर इन इलाकों की संवेदनशीलता से भड़क कर ईरान पिछले अटैक से दुगनी ताकत का अटैक इज़रायल पर कर दें, तो कौन इसे जान बूझकर किया गया पागलपन कहेगा? ईरान के परमाणु ठिकाने वाले इलाके में इज़रायल ने हमला करके एक तरफ जहां उसे डराने की कोशिश किया है कि अगर इज़रायल चाहे तो उसके किसी भी क्षेत्र में हमला कर सकता है। लेकिन अगर इज़रायल के इसी गलतफहमी को दूर करने के लिए ईरान अपनी पूरी ताकत झोंक दे, तो चुस्ती फुर्ती के बावजूद इज़रायल में यह दम नहीं है कि वह उसे घुटनों पर पहुंचा सके।
ईरान ने इज़रायल की इस बहुप्रतीक्षित कार्यवाई को खतरनाक बताया है, क्योंकि जाने अंजाने, घोषित, अघोषित तौर पर दोनों ही देश कम से कम इतनी ताकत तो रखते ही हैं कि अगर वे परमाणु युद्ध की निराशाजनक सहमति तक पहुंचने की कोशिश करने लगें तो यही कहा जा सकता है कि इज़रायल और ईरान दोनों का ही रह रहकर एक दूसरे पर आजमाये जा रहे दुस्साहस से एक बड़े युद्ध का खतरा पैदा हो जायेगा, जो अगर विश्व युद्ध न भी हुआ, तो भी दुनिया की करीब सभी बड़ी शक्तियां इसके चलते आपस में दो-दो हाथ कर ही डालेंगीं क्योंकि जहां इज़रायल की तरफ अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस के साथ-साथ जर्मनी व कनाडा ने भी खुलकर पोजीशन ले ली है, वहीं अपने रणनीति वजूद के लिए चीन और रूस भी ईरान के साथ इस पोजीशन लेने में ज़रा भी देर नहीं करेंगे। 
वैसे भी शुक्त्रवार को सुबह सुबह इजरायल द्वारा ईरान पर अटैक किए जाने के करीब डेढ़ घंटे बाद ईरान की सैन्य टुकड़ी रिवोल्युश्नरी गार्ड की तरफ से जो बयान दिया गया है उसके मुताबिक इज़रायल का अटैक मामूली रहा और उसे किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ। यह बयान ऐसी सहूलियत प्रदान करता है कि एक एक हमला करने के बाद अब दोनों देश चाहें तो एक दूसरे पर हमला करने की सोचे भी न और दोनो में से किसी को भी अपनी आवाम को किसी तरह की जवाबदेही नहीं होगी।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर