उत्तर भारत में गर्मी का कहर
गत सप्ताह होशियारपुर ज़िले के माहिलपुर ठाने के अधीन आते अपने गांव के दौरे ने मुझे पंजाब में पड़ रही भीषण गर्मी से अवगत करवाया। पैदल, साइकिल सवार तथा स्कूटर या मोटरसाइकिलों वाले अपने दुपट्टे या पगड़ी के साथ मुंह ढंक कर आगे बढ़ रहे थे। कम्बाइनों से काटी गई गेहूं के खेतों में रह गई नाड़ को लगाई गई आग का धुआं रास्ते में फैला हुआ था। मैं यह भी जानता था कि मौसम विभाग ने चेतावनी दे रखी है। यह लू सिर्फ पंजाबियों की जान को खतरा नहीं बनी, अपितु दिल्ली, हरियाणा तथा राजस्थान भी चपेट में आ चुके थे। पशु-पक्षियों की प्यास बुझाने वाले तालाबों का पानी सूख चुका था।
एक गांव के तूड़ी वाले कुप्प जले हुए मिले तथा एक में उड़ने वाले पक्षी बेसुध पड़े मिले। बड़े पेड़ों की कटाई ने पर्यावरण की गर्मी में भारी वृद्धि की हुई है। मानव जाति तो कोई न कोई व्यवस्था कर लेती है। इन जीवों का कोई रक्षक नहीं। वे दिन बीत गये, जब गांवों की महिलाएं अपने घरों की छतों पर दाना डाल कर पक्षियों के लिए पानी का कटोरा रख देती थीं। दाल, दलिया, चावल, बाजरा, फ्रूट तथा रोटी के टुकड़े चुग-चुग कर पक्षी नौं बर नौं रहते थे। नई पीढ़ी का इस ओर ध्यान नहीं। वे तो अपने-अपने मशीनी यंत्रों के साथ खेलने में व्यस्त रहते हैं। वे नहीं जानते कि एक दिन उन्होंने भी बुढापे का शिकार होना है। मौसम विभाग द्वारा जारी की गई लाल तथा संतरी चेतावनी (रैड तथा ऑरेंज अलर्ट) उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखती।
ताज़ा समाचारों के अनुसार राजस्थान के तीन शहरों में तापमान 50 डिग्री सैल्सियस पार कर चुका है, चुरू शहर के 50.5 सहित 50.3 डिग्री तक तो हरियाणा का सिरसा ही पहुंच चुका है, जो चार व्यक्तियों की जान भी ले चुका है। और तो और पंजाब के बठिंडा शहर का तापमान 49.3 डिग्री पर पहुंचा बताया जाता है, सामान्य तापमान से आठ डिग्री अधिक। यहां भी चार व्यक्तियों की मौत बताई जाती है।
जट्ट का बेटा क्या करे? उसकी सब्ज़ियों की फसल पानी मांग रही है और भगवान आग बरसा रहा है। मौसम एवं पर्यावरण वैज्ञानिक दो दशकों से विश्व के कई शहरों संबंधी शहरी तपश द्वीप (अर्बन हीट आइलैंड) बनने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। कल को उत्तर भारत के संबंधित शहरों पर भी यही फतवा दायर हो सकता है। अत्यावश्यक वस्तुयों की उपज करने वाले ‘प्रोडक्शन हब’ के रूप से जाने जाते शहर विशेष ध्यान मांगते हैं। माना, आबादी में हो रही वृद्धि ऐसी परिस्थितियां पैदा कर रही है, परन्तु क्या यह मामला इतना गम्भीर है कि इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता?
यदि हमने पर्यावरण की सम्भाल नहीं की तो सिर पर सिर्फ मौत ही नहीं मंडराएगी, अपितु इसका रूप भी इतना भयावह हो जाएगा कि बात वैज्ञानिकों के बस से बाहर जा सकती है। परिवार नियोजन के लिए चीन जैसे देश से सबक सीखें। बिल्कुल गुरेज़ न करें। इसी में ही भलाई है।
लोकसभा चुनाव, राजनीति तथा चुनाव प्रचार
अब जब चुनाव दंगल के अलग-अलग रूप भी सामने जा चुके हैं, चुनाव प्रचार बंद हो चुका है और मतदान भी हो चुका है। राजनीति के एक-दो रूपों की बात करने पर कोई हज़र् नहीं। दो दशक पुराने रणजीत सिंह हत्या मामले में डेरा सिरसा प्रमुख राम रहीम का आज के दिन बरी होना इनमें प्रमुख है, जबकि दलीलें पहले ही मुकम्मल हो चुकी थीं। यह भी सबब की बात है कि प्रसिद्ध गायक सिद्धू मूसेवाला की दूसरी बरसी इन दिनों में आती है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस द्वारा एक विज्ञापन के माध्यम से मूसेवाला के गुणों को आज के दिन उभारना भी इस प्रकार का करतब है। यह पार्टी तब कौन-सी नींद सो रही थी, जब भाजपा वाले पंडित नेहरू की उपलब्धियों को अपनी दस वर्षों की बादशाहत का गुणगान करके धूल-धूसरित कर रहे थे। राहुल गांधी को शहज़ादा कहना तथा कांग्रेस पार्टी की बैठकों को मुजरा कहना अभी कल की बात है। कोई बिस्कुट बेचने वाला तो अपने ग्राहक को शहज़ादा या बादशाह कहे तो इतना बुरा नहीं लगता, परन्तु राजनीतिक नेता द्वारा ऐसे विशेषण इस्तेमाल करना कितना शोभा देता है? उत्तर मिल ही जाना है! दो दिन का खेल है!!
अंतिका
(सुरजीत पातर)
मैं तां सड़क ’ते विछी बिरखां दी छां हां,
मैं नहीं मिटना सौ बार लंघ मसल के।