हरियाणा की राजनीति के बदलेंगे समीकरण

मिशन-2024 के तहत हाल ही में सम्पन्न हुये देश की 18वीं लोकसभा के चुनाव-परिणामों ने देश के अन्य भागों की ही भांति हरियाणा में भी इसी सत्य को स्वयं-सिद्ध किया है, कि लोकतंत्र में आम जन सिर्फ साधारण ही नहीं होता, अपितु उसी का ़फतवा अन्तत: सर्वोच्च एवं निर्णायक होता है। मौजूदा चुनाव परिणामों के दृष्टिगत हरियाणा की कुल दस लोकसभा सीटों में से पांच-पांच पर प्रदेश के दोनों बड़े राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने विजय प्राप्त की है। इसके विपरीत विगत 2019 के चुनावों में प्रदेश की सभी दस सीटें भाजपा के पाले में गई थीं। हरियाणा में विगत दस वर्ष से मौजूदा प्रदेश सरकार का नेतृत्व भी मुख्य रूप से भाजपा के हाथों में ही रहा है हालांकि दोनों बार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की दूसरी पारी की सरकार इसी वर्ष मार्च महीने तक जननायक जनता पार्टी यानि जजपा के साथ गठबंधन की सरकार थी, और जजपा की ओर से सरकार में दुष्यन्त चौटाला उप-मुख्यमंत्री थे। नि:संदेह सत्ता-सुख को भोगने के लिए इन दोनों दलों ने जहां तक हो सका, गठबन्धन के धर्म को यथा-सम्भव और यथा-शक्ति निभाते चलने की भरसक कोशिश की, किन्तु वैचारिक सामंजस्यता न होने के कारण दोनों दल सरकार के रथ को दो विपरीत दिशाओं की ओर बंधे घोड़ों की मानिंद खींचते भर रहे। लिहाज़ा, प्रदेश में सरकारी विमुखता प्रभावी होती रही जिससे प्रदेश में सत्ता-विरोधी रुझान भी पनपा।
बेशक दोनों दलों का गठबंधन इसी विरोधाभास के तहत सरकार के पांच वर्ष पूर्ण होने से पहले ही तड़िक्क करके टूट गया, किन्तु इस टूट की आवाज़ बहुत दूर तक गई जिसका परिणाम मिशन-2024 के चुनाव-परिणामों में साफ तौर पर लक्षित हुआ है। भाजपा की चुनाव पिटारी में से पांच सीटें तो फिसली ही, जजपा को एक भी सीट न मिलना भी चौंकाता है। ‘आप’ का बेशक इस प्रदेश में कांग्रेस से समझौता रहा, इसके बावजूद उसका एकमात्र प्रत्याशी हार गया। बसपा का बुरा हाल तो पूरे देश में लक्षित हुआ है। जजपा के दुष्यन्त चौटाला ने पिछले विधानसभा चुनावों में एक ओर जहां अपनी पहली ही पारी में विधानसभा की 10 सीटें जीत कर अपने होने संबंधी दस्तावेज़ से तहलका मचाया था, वहीं जन-साधारण को सत्ता-प्रतिष्ठान की ओर से उनके युवा सपनों को साकार करने का आश्वासन भी नगाड़े की चोट करके दिया था, किन्तु भाजपा और जजपा की इस बेमेल गांठ ने अपने टूटने की आवाज़ से न केवल, प्रदेश के युवाओं को आहत किया, अपितु प्राय: जन-साधारण को भी प्रभावित किया। इसी का आईना रहा है देश की 18वीं लोकसभा का चुनाव परिणाम जिसका सर्वाधिक विपरीत प्रभाव प्रदेश में एक समय दशकों तक राज करते रहे राजनीतिक दल इनेलो और खासकर हरियाणा का एक बड़ा महत्त्वपूर्ण राजनीतिक हिस्सा रहे चौटाला परिवार पर भी पड़ा है।
देश की इस 18वीं लोकसभा के हरियाणा के चुनाव परिणामों ने इस एक महत्त्वपूर्ण परिवार को एक तरह से वजूद के संकट के कगार की ओर धकेल दिया है। इन चुनाव परिणामों के अनुसार एक ओर जहां इनेलो और जजपा को कोई सीट नहीं मिली, वहीं इस परिवार के चार-चार सदस्यों को कड़ी पराजय का भी सामना करना पड़ा है। पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के छोटे पुत्र अभय चौटाला, उनके भाई रणजीत चौटाला और इस परिवार की दो-दो बहुएं नैना चौटाला और सुनयना चौटाला न केवल चुनाव हार गईं, अपितु ये सभी अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाये। यह भी एक अजब इत्तेफाक रहा कि इनमें से तीन दिग्गजों को, एक उस व्यक्ति जय प्रकाश ने हराया जिसे इस ‘बड़े परिवार’ के संस्थापक सदस्य चौधरी देवी लाल ने राजनीति में प्रवेश कराया था।
18वीं लोकसभा के इन चुनाव परिणामों ने हरियाणा की राजनीति को बेशक कई नये मोड़ भी दिये हैं। भाजपा के स्वयंभू हिन्दुत्ववादी राजनीतिक पथ पर नि:संदेह इससे अवरोध लगेगा। राजनीतिक दलों को इससे यह एहसास भी अवश्य उपजेगा कि बेरोज़गारी, महंगाई और शिक्षा के अवसान आदि मुद्दों को दृष्टिविगत करके, आम लोगों को अधिक देर तक भ्रमित नहीं किया जा सकता। जनता की अदालत में उन्हें एक न एक दिन अवश्य जवाब-देय होना पड़ेगा, और कि इस जन-़फतवे ने प्रदेश के राजनीतिज्ञों को यही सन्देश दिया है। लोकसभा चुनावों से पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर को हटा कर नायब सिंह सैनी को सत्ता सौंपना भी सम्भवत: इसी क्रिया का हिस्सा रहा, किन्तु अन्तिम दौर में लिया गया यह फैसला भी जन-साधारण विशेषकर युवा वर्ग में सत्ता विरोधी लहर के वेग को कम नहीं कर सका। हम समझते हैं कि नि:संदेह इन चुनाव परिणामों से तात्कालिक रूप से सैनी सरकार को कोई बड़ा खतरा नहीं हो सकता, किन्तु इसी वर्ष के अन्त तक प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में असर अवश्य पड़ते दिखाई देगा। 
कांग्रेस के बड़े नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा इन चुनाव परिणामों से उत्साहित तो बहुत होंगे, किन्तु इतनी अल्प अवधि की सत्ता हेतु वह मौजूदा सरकार के किसी पाये को हिलाना नहीं चाहेंगे। तथापि, वह इस सरकार को अस्थिर और परेशान करने के यत्न अवश्य करते रहेंगे। सिरसा से कांग्रेस की कुमार सैलजा अपनी जीत से मजबूत होंगी। वहीं दीपेन्द्र हुड्डा की सबसे बड़े अन्तर से जीत हुड्डा परिवार का सम्बल बनेगी। भाजपा आलाकमान भी हरियाणा के बड़े भाजपा नेताओं के साथ, अपनी इस पराजय और पराभव पर मन्थन अवश्य करना चाहेगा। अगले कुछ दिनों में सभी समीकरण चुनावी खाद-पानी लेकर मुंडेरों पर अवश्य उगने लगेंगे।

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