प्रेरक प्रसंग-मीठे फल

बात उन दिनों की है जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आगा खां महल में नजरबंद रखा गया था। अनेक लोग उनसे मिलने और कुछ न कुछ उनको भेंट दे जाते।
एक दिन एक मैला कुचैला 10-12 वर्षीय बालक भी उनसे मिलने पहुंचा और गांधी जी को अपने हाथों से फल देने की हठ सुरक्षा प्रहरियों से कर बैठा। तभी कोई बोला, ‘अरे यह भिखमंगा यहां कहां से आ गया। इसे बाहर निकालो।’
इतना सुनकर उस बालक की भौंहे टेढ़ी हो गई और वह जोर से बोला, ‘बापू, मैं भिखमंगा नहीं हूं। दिनभर मेहनत मजदूरी करके उन्ही पैसों से मैं आपके लिए यह फल लाया हूं।’
उस बालक के स्वाभिमानी शब्दों को सुनकर बापू उठ खड़े हुये और उससे फल लेते हुये बोले, ‘धन्य है वह मां, जिसने तुझ जैसे बालक को जन्म दिया। फल तो बहुत मिले हैं लेकिन मीठे फल तो मुझे आज ही मिले हैं। 
वह स्वाभिमानी बालक थे डॉक्टर राम मनोहर लोहिया। उन्होंने गांधी जी के आदर्शों का अनुसरण करते हुए देश सेवा में सबकुछ न्यौछावर कर दिया लेकिन कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाये।
 


-महामंदिर गेट के निकट, जोधपुर
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