यह है फटाफट, ठकाठक, गटागट का दौर!

आज का जमाना फटाफट का जमाना है। या यूं भी कह सकते हैं कि अब ठकाठक, गटागट का जमाना है। यहां देरी करने वालों को कोई स्थान नहीं है। बेरोज़गारी दूर करनी है तो फटाफट कीजिए। महंगाई दूर करनी है तो फटाफट कीजिए। काम कोई भी हो, ठकाठक, फटाफट होना ही चाहिए। राजनीति भी इस फटाफट, ठकाठक से दूर नहीं रह गई है और राजनेता आजकल फटाफट, ठकाठक, गटागट, टकाटक जैसे शब्दों का जमकर प्रयोग कर रहे हैं और एक-दूसरे को निशाना बना रहे हैं। खैर जो है सो है लेकिन हमें चिंता इस बात की है कि इस ठकाठक, गटागट, टकाटक और फटाफट के चक्कर में कोई सफेदपोश सफाचट नहीं हो जाए। वैसे, राजनेता आजकल ऐसे शब्दों का प्रयोग करके अपने भाषण में एक अच्छी राइम-स्कीम ज़रूर बना रहे हैं, जो कानों को सुनने में अच्छी लग रही है। ऐसे लगता है जैसे राजनेता अपने चुनावी भविष्य के लिए फटाफट, ठकाठक, गटागट और सफाचट जैसे शब्दों से सत्ता की कुर्सी के लिए कोई जानदार शानदार कविता लिख रहे हैं। वे टकाटक झूठ पर झूठ बोल रहे हैं। जनता फटाफट उनको टीवी चैनलों पर देख, सुन रही है और ठकाठक वोट भी डाल रही है।
सच तो यह है कि आज बेरोज़गारी, महंगाई, आर्थिक व सामाजिक असमानता मुद्दा नहीं है। असली मुद्दा तो खटाखट वर्सेज ठकाठक का है। ठकाठक-ठकाठक झूठ पर झूठ फेंको और फटाफक फटाफट वोट लूट लो। 
आजकल गर्मी भी बहुत पड़ रही है। सूरज देवता भी फटाफट, ठकाठक चमक रहे हैं। पारा धकाधक धकाधक 50 के पार। ‘लू’ भी ठकाठक-ठकाठक चल रही है और धरती का तापमान पचास डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है। अस्पताल मरीजों से ठमाठम-ठमाठम हो रहे हैं। डाक्टरों, अस्पताल वालों और मैडीकल वालों की जेबें झमाझम-झमाझम हो रहीं हैं। तापमान तो इतना अधिक हो गया है कि राजस्थान के रेतीले धोरों में तो अंडे तक उबाल कर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दिखाए जा रहे हैं। इससे जमाजम-जमाजम लाइक्स पर लाइक्स और शेयर पर शेयर मिल रहे हैं। वैसे शेयर बाजार के साथ सोना-चांदी भी झूम बराबर झूम गीत गा रहे हैं और हवा में ठकाठक-ठकाठक खबरें लहरा रहे हैं कि ‘हम भी किसी से कम नहीं।’ आप खरीद सकते हैं नहीं। अजी! आप में इतना दम नहीं। इधर, राजधानी पानी के लिए ठकाठक-ठकाठक लड़ाई लड़ रही है। पानी हो या वोट हर तरफ ठकाठक टकाटक की प्रतिस्पर्धा है।
कुछ मिलाकरए खटाखट टकाटक की राइम स्कीम हर तरफ बिखरी पड़ी हैं। सड़क से लेकर संसद तक। गली से लेकर चौबारे तक और राजनीति के हर गलियारे तक। हम सोच रहे हैं कि हम भी इस राइम स्कीम को अपनाने के साक्षी बनें। टकाटक टकाटक की राइम स्कीम सुनने पर दिल ‘हूम-हूम’ नहीं करता, दिल गार्डन-गार्डन हो जाता है। हम ठहरे एक छोटे-से, अदने से लेखक। हम सोच रहे हैं कि हम भी अपने नाम के आगे फटाफट-ठकाठक चिपका लें और अपने जीवन को हसीन और सुंदर बना लें। आप भी हमारे इस व्यंग्य को फटाफट ठकाठक पढ़िए और ढ़ेरों लाइक और शेयर गटागट गटागट सभी को पिला दीजिए, क्या पता आपकी फटाफट, ठकाठक से इस अदने से लेखक का भी उद्धार हो जाए और यह लेखक भी लेखन के क्षेत्र में फटाफट ठकाठक नाम कमा जाए। आपको फटाफट ठकाठक की कसम। आप हमारे इस व्यंग्य को चटाचट, चटाचट अपनी दिल और दिमाग की आंखों से पीजिए और इस व्यंग्य का मज़ा लीजिए। अजी! ऐसी फटाफट ठकाठक में तो ऐसा ही व्यंग्य लिखा जाएगा जो ऐसी गर्मी में आपके दिलो-दिमाग का दही बनाएगा। इसलिए फटाफट, ठकाठक, गटागट, टकाटक के इस व्यंग्य का दही पीएं और इस पचास डिग्री सेल्सियस की तेज गर्मी में दही पीकर मजे से जीएं। तो फटाफट आप सभी को नमस्कार। गुस्ताखी माफ, जय राम जी की।