रेल दुर्घटनाओं को लेकर बढ़ती मानवीय कोताही

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन के निकट कंचनजंगा एक्सप्रैस और एक माल गाड़ी के बीच हुई भिड़न्त ने न केवल देश के रेलवे मंत्रालय में व्याप्त चिरकालीन एवं स्थायी त्रुटियों की ओर एक बार फिर ध्यान आकर्षित किया है, अपितु इस विभाग की मानवीय कोताहियों को भी उजागर किया है। इस दुर्घटना में मालगाड़ी पूरी गति के साथ कंचनजंगा की बोगियों पर जा चढ़ी जिससे यात्री गाड़ी के दो डिब्बे पूरी तरह से धंस गये, और चार अन्य बेपटरी हो गये। इस दुर्घटना में दस लोगों के मरने की सूचना के साथ अनेक अन्य घायल भी हुए हैं। घटनास्थल से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार मृतकों की संख्या और बढ़ जाने की आशंका है क्योंकि इस दुर्घटना में घायल कुल 41 यात्रियों में से अधिकतर की दशा बेहद गम्भीर है। इस दुर्घटना का एक गम्भीर पक्ष यह है कि यात्री गाड़ी जैसे ही जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन पर अपने ठहराव के बाद अपने अगले गंतव्य की ओर रवाना हुई, उसी समय मालगाड़ी अपनी पूरी गति से धनधनाती हुई आई, और धीमी गति से आगे बढ़ती कंचनजंगा एक्सप्रैस को पीछे से टक्कर मार दी। यह भी पता चला है कि यात्री गाड़ी के स्टेशन पर खड़े होने के कारण पीछे वाला सिग्नल ग्रीन नहीं हुआ था। इसके बावजूद माल गाड़ी लाल बत्ती को पार करके आगे बढ़ गई और आगे बढ़ती यात्री गाड़ी के ऊपर जा चढ़ी। दुर्घटना में मृतक नौ लोगों में दो रेलवे कर्मी मालगाड़ी का ड्राइवर और यात्री गाड़ी का गार्ड भी शामिल हैं।
इस दुर्घटना की अब तक की जांच-पड़ताल के अनुसार चूक कहीं से भी हुई हो, है यह पूर्णतया मानव कोताही। बताया जाता है कि स्वचालित रेलवे सिग्नल फेल हो जाने से मालगाड़ी के ड्राइवर को कथित तीव्र गति से आगे बढ़ते जाने की मौखिक अनुमति दी गई थी, और कि उसे नौ रेलवे स्टेशनों के सिग्नल स्वत: पार कर जाने थे। नि:संदेह यह गम्भीर कोताही है। एक ही पटरी पर दौड़ाई जाने वाली भिन्न-भिन्न रेलगाड़ियों को बिना आगे वाली स्थिति की समीक्षा किये निर्बाध रूप से आगे बढ़ने को कहना नि:संदेह एक आपराधिक कर्म जैसा है। इन तमाम त्रुटियों एवं स्थितियों पर दृष्टिपात करें तो साफ पता चलता है कि कहीं न कहीं से मानवीय अवहेलना अथवा कोताही अवश्य हुई है। स्व-चालित सिग्नल विफल कैसे हो गया, इसकी बाकायदा जांच की जानी चाहिए। जिस रेल पथ पर कंचनजंगा एक्सप्रैस जैसी गाड़ियों ने गुजरना हो, उस पर किसी भी अन्य रेलगाड़ी को निर्बाध कैसे आगे बढ़ने की इजाज़त दी जा सकती है। नौ सिग्नल को एक साथ बिना बाधा के पार करते जाना किसी भी सूरत उचित नहीं माना जा सकता।
वैसे यह कोई पहली रेल दुर्घटना नहीं है, और न ही भविष्य में कोई बड़ी दुर्घटना न होने की गारंटी दी जा सकती है। बेशक दुर्घटना की जांच होने का निर्देश दिया गया है, और प्रभावितों को राहत राशि देने की घोषणा भी की गई है, किन्तु अतीत के सबक यही बताते हैं कि पूर्व की भांति इस रिपोर्ट की फाइल को भी भविष्य की धूल फांकने के लिए किसी कोने में फैंक दिया जाएगा। रेलवे विभाग सदैव से नाज़ुक और विवादास्पद नाक वाला रहा है। प. बंगाल की मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी स्वयं भी रेल मंत्री रह चुकी हैं, और कि वह जानती हैं कि इस विभाग की दुखती रग कहां पर है। सर्वाधिक अधिक समय रेल मंत्री रहे लालू प्रसाद यादव के काल में सर्वाधिक रेल-दुर्घटनाएं भी हुईं, और इस काल में ही यह मंत्रालय सर्वाधिक विवादास्पद भी हुआ। मौजूदा राजद सरकार की विगत दोनों पारियों में भी अनेक बड़े ऐसे हादसे हुये हैं। अभी विगत वर्ष ही उड़ीसा के बालासोर ज़िला में हुए एक भयावह रेल-हादसे में 290 से अधिक लोग मारे गये थे। इस हादसे में भी सिग्नल त्रुटि को ही मानवीय भूल की तरह पेश किया गया था, और अब प. बंगाल वाली दुर्घटना में भी सिग्नल ही मानवीय भूल माना जा रहा है।
नि:संदेह रेलवे की इन गम्भीर भूल-चूकों को रोकने के लिए पूरी दृढ़ता एवं इच्छा-शक्ति के साथ बहुत कुछ किये जाने की बड़ी ज़रूरत है। पिछले वर्ष दो अन्य रेल दुर्घटनाओं में 19 लोगों के मारे जाने की सूचना थी। निष्कर्ष-स्वरूप कहना चाहें, तो इस विभाग में मानवीय धरातल पर की जाने वाली गतिविधियों पर अंकुश लगाये जाने की बड़ी आवश्यकता है। यह भी कि रेलगाड़ियों के परिचालन की प्रक्रिया पर सतत् दृष्टिपात किया जाना भी उतना ही ज़रूरी है। इस प्रकार अनियंत्रित रूप से किसी रेलगाड़ी के ड्राइवर को लगातार नौ सिग्नलों को पार कर जाने का मौखिक निर्देश सम्भवत: किसी भी आम आदमी के हलक के नीचे नहीं उतरता। इस हेतु थोड़ी-सी अतिरिक्त क्रिया-शीलता और नियमितता की आवश्यकता होगी। रेल विभाग के मानवीय तंत्र को अधिक ज़िम्मेदार और जवाबदेह बनाना ही रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए अधिक कारगर सिद्ध हो सकता है।