अपनी स्थिति सुधारने में सफल रही कांग्रेस

भा जपा कुछ भी कहे कांग्रेस पार्टी की लोकसभा चुनाव में सफलता ने इसके पांवों के नीचे से ज़मीन खिसका दी है। विशेषकर केरल तथा उत्तर प्रदेश में। प्रियंका गांधी वाड्रा का वायनाड के उप-चुनाव के लिए उतरना इसका आगामी पैंतरा है। निश्चय ही गांधी परिवार की वायनाड में सम्भावित जीत सिद्ध करती है कि कांग्रेस पार्टी उतनी निम्न स्तर की नहीं, जितनी भाजपा दर्शा रही है। उधर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सहायता ने इसमें नये प्राण डाल दिये हैं, जिसका आधार राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा बना चुकी थी।
केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों के पुरस्कार 
भारतीय साहित्य अकादमी ने अकादमी प्रवानित 24 भाषाओं के उन लेखकों के नाम की घोषणा की है, जिन्हें उनकी भाषाओं में युवा एवं बाल साहित्य पुरस्कारों के लिए चुना गया है। युवा पुरस्कार विजेताओं में हिन्दी लेखक गौरव पांडे, पंजाबी कवि रणधीर तथा उर्दू लेखक जावेद अम्बर मिसबाही सहित 23 रचनाकार शामिल हैं जबकि बाल साहित्य पुरस्कार विजेताओं में हिन्दी का देवेन्द्र कुमार, पंजाबी का कुलदीप सिंह दीप तथा उर्दू भाषा लेखक शमसुल इस्लाम फारुखी आदि। साहित्य अकादमी की स्थापना पंडित नेहरू के कार्यकाल के समय 1955 में हुई थी। तब अकादमी की ओर से सिर्फ 11 भाषाएं असम, बंगला, गुजराती, मराठी, कन्नड़, मल्यालम, तमिल, तेलुगू, उर्दू, पंजाबी तथा हिन्दी ही प्रवानित थीं। यह संख्या अब तब से दोगुणा से अधिक अर्थात 24 हो गई है। संस्कृति भाषा में युवा पुरस्कार के संस्कृत विजेता की घोषणा बाद में की जाएगी। 
पुरस्कारों की अस्थायी सूची संबंधित भाषा की तीन सदस्यीय समिति पेश करती है, जिसे अकादमी की समूची बैठक ने स्वीकार करना होता है। आरम्भिक वर्षों में सिर्फ महारथियों को चुना जाता था, चाहे चयन विधि यही थी, जो युवा एवं बाल साहित्य पुरस्कारों के लिए अपनाई गई है।
तब चुने गए मुख्य पंजाबी लेखक भाई वीर सिंह, अमृता प्रीतम, मोहन सिंह, नानक सिंह तथा बलवंत गार्गी आदि थे। लगभगह 70 वर्ष के लम्बे समय में एक दो वर्षों को छोड़ कर किसी ने इस विधा बारे किन्तु-परन्तु नहीं किया। यदि होता था तो इसका निपटारा लम्बा समय नहीं लेता था। शिव कुमार के बहुत कम आयु में सम्मानित होने तथा पंजाबी साहित्य के पितामा गुरबखश सिंह प्रीत लड़ी के बिना सम्मान चले जाने पर भी नहीं। इसका अर्थ यह नहीं कि गुरबखश सिंह किसी पक्ष से निम्न स्तर के लेखक थे और न ही यह कि चयन समिति या इसके किसी सदस्य को उनके साथ रंजिश थी। इसका उत्तर शायद इस बात से मिल जाएगा कि मुझे यह पुरस्कार 1982 में मिल गया था और मुझ से बढ़िया कहानी लेखक संतोख सिंह धीर को 14 वर्ष के बाद 1996 में और वह भी मेरे वोट से जब मैं तीन सदस्यीय चयन समिति का सदस्य था। 
मुझे भाषा विभाग द्वारा दिये जाते पुरस्कारों की भी पूरी जानकारी है जो किसी एक व्यक्ति की लापरवाही या ज़िद के कारण गत आठ-दस वर्षों से नहीं दिए गए। मैं यह भी जानता हूं कि कई बार सरकार के मंत्री जल्दी करवा कर किसी प्रकार की अनियमितता करवा देते हैं जो विवाद की जड़ बन जाती है। इसे संशोधित करने का एकमात्र तरीका उच्च न्यायालय की आज्ञा से ऐसी समिति का गठन करना होता है, जो ऐसे मामले का समाधान बता सके। इस समिति में कोई सेवामुक्त जज भी लिया जा सकता है और भारतीय साहित्य अकादमी का निष्पक्ष व्यक्ति भी। आजकल तो सबब से भारतीय साहित्य अकादमी का अध्यक्ष ही माधव कौशिक है, जो चंडीगढ़ का निवासी है। युवा एवं बाल साहित्य पुरस्कारों का फैसला करने वाली बैठक गुजरात में हुई थी। यदि वह चंडीगढ़ से गुजरात जा सकता है तो स्थानीय बैठक तो उसके लिए बिल्कुल ही कोई मसला नहीं। कचहरी का दरवाज़ा खटखटाने वाले सभी लोग न्याय के भूखे नहीं होते। उन्होंने अपने व्यवसाय की लाज रखनी होती है। जब उनकी वाहवाही हो जाए, तो वे शांत हो जाते हैं। इस तरह करने से देर तो होती है, लेकिन अंधेर नहीं होता। 
प्रत्येक वर्ष 6 दर्जन से अधिक पुरस्कार देने वाली भारतीय साहित्य अकादमी की प्रशंसा इसमें है कि यह प्रत्येक उम्मीदवार से गत तीन वर्षों में कम से कम एक स्तरीय पुस्तक का रचयिता होने की जानकारी मांगती है। यहां नौजवान अधिक आयु वालों से बाज़ी मार जाते हैं और बुज़ुर्ग वंचित रह जाते हैं। इस शर्त का मुख्य लाभ यह होता है कि इससे उम्मीदवार लेखक की रचने की प्रक्रिया जारी होने का सबूत मिल जाता है। 
अंतिका  
(सुरेन्द्र सीरत)
डुब्ब गया एक होर सूरज, टुट्टिया तारा जिहा
कहकशां विच्च दर्द कम्बिया धरत ’ते पारा जिहा
पीड़ दी वादी ’च गुंम सुंम रात तड़पी ए बहुत
कल्पना विच्च उतर आया कोई नवां ठारा जिहा
भिश्नगी दी ताब अंदर सुक गई चाहत नदी
ढेर चिर तों है तलब विच्च आब ही खारा जिहा
होर सब जंगल ’च रुख ने झूमदे लहिराऊंदे
बिरख मेरे ’ते ही ‘सीरत’ चल रिहै आरा जिहा।