एक चुनौती और

पंजाब में आजकल ज़ोर-शोर से धान की बुआई का काम चल रहा है। जून के दूसरे सप्ताह से यह क्रम जारी है। चाहे प्रदेश को इस काम के लिए भिन्न-भिन्न ज़ोनों में बांटा गया है तथा सरकार की ओर से इस बात का भी वादा तथा दावा किया गया था कि इस फसल के लिए नहरों में ज़रूरी पानी उपलब्ध होगा किन्तु इस वादे में सरकार बड़ी सीमा तक पिछड़ती दिखाई देती है। पिछले दो वर्ष से मुख्यमंत्री ने ज़ोर-शोर से यह घोषणा की थी कि ‘आप’ सरकार के बड़े यत्नों से किसानों को प्रेरित करके धान की सीधी बिजाई करवाई जाएगी, ताकि पानी का कम उपयोग हो, परन्तु अपने इस यत्न में भी सरकार कुछ कदम ही उठा सकी है। पानी के कम उपयोग के लिए बासमती धान को उत्साहित करने के यत्न भी किये गये परन्तु ये यत्न भी अपने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार आगे नहीं बढ़ सके। प्रदेश में बारिश अभी नदारद है। एक अनुमान के अनुसार इसकी इस मास के अंतिम दिनों में ही आने की सम्भावना है, तब तक फसल बुआई का काम लगभग खत्म हो जाएगा। ज्यादातर इसकी बुआई कद्दू करके ही की जा रही है। प्रदेश के लगभग 15 लाख ट्यूबवैल लगातार धरती के सीने से पानी निकाल रहे हैं। अब तक इतना पानी निकाला जा चुका है कि इसका सीना भी खाली होता जा रहा है। बोर गहरे करने के उपरांत भी सबमर्सीबल पम्प जवाब देने लगे हैं।
पंजाब में पहले धान नहीं बोआ जाता था। इसकी मुख्य फसल गेहूं ही थी परन्तु पिछले लगभग पांच दशकों में केन्द्र सरकार की नीतियों के तहत इस फसल की काश्त प्रदेश में दूसरी मुख्य फसल के रूप में होनी शुरू हो गई। सरकार की ओर से इसकी समर्थन मूल्य पर खरीद भी सुनिश्चित होती है, जिस कारण किसानों का प्राथमिक तौर पर इस ओर झुकाव हो गया। आज हालत यह है कि इस फसल की प्रदेश में 32 लाख हेक्टेयर से भी अधिक ज़मीन पर बुआई होने लगी है। पिछली बार यहां धान की उपज पौने 3 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान लगाया गया था। इस कारण भूमिगत पानी भी बेहद नीचे चला गया है। इसकी कटाई करने के उपरांत अवशेष को खेतों में ही लगाई जाती आग से ज़मीन की ऊपरी सतह को हर बार जला कर राख कर दिया जाता है। इससे सड़कों के किनारे लगे वृक्ष तक जल जाते हैं। हमारी प्रदेश सरकारों ने वोट बैंक की राजनीति के अधीन कृषि तथा कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए मुफ्त बिजली देने के जो फैसले किए हैं, उनसे पानी का दुरुपयोग भी होता है तथा प्रदेश बुरी तरह से ऋण के बोझ से भी दबा हुआ दिखाई देने लगा है। पर्यावरण असंतुलन तथा आर्थिक मंदी की यह तस्वीर भयावह होती जा रही है। केन्द्र सरकार की ओर से निर्धारित योजनाओं के लिए प्रदेश को जो पैसे भेजे जाते हैं, प्रदेश सरकार द्वारा उनका अनियोजित तरीके से उपयोग किए जाने के कारण केन्द्र सरकार ने पैसे भेजने से भी हाथ पीछे करने शुरू कर दिए हैं।
चाहे धान की फसल से किसानों को अभी आर्थिक लाभ हो रहा है परन्तु भूमिगत पानी के पक्ष से जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं, उनके कारण आगामी समय में पंजाब तथा पंजाब के लोगों को भारी नुक्सान का सामना करना पड़ेगा। पंजाब पहले ही अनेक आपदाओं तथा समस्याओं में घिरा हुआ है। इनका बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदेश इस बोझ को उठाने में कितना समर्थ हो सकेगा, आज यह बात गम्भीरता से सोचने वाली है। यदि नहरी व्यवस्था का ज़रूरत के अनुसार नवीकरण न किया जा सका तो पानी की पैदा हुई कमी पंजाब को और भी बंजर बनाने में सहायक होगी। नि:संदेह केन्द्र तथा प्रदेश सरकारें आज धान की फसल के स्थान पर वैकल्पिक फसलों की काश्त करने के लिए प्रेरित करें तथा इसके लिए सहायता पैकेज देने हेतु गम्भीर होकर सोचने की ज़रूरत होगी। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द