एक चुनौती और


पिछले दिनों विश्व की जनसंख्या 8 अरब के आंकड़े को पार कर गई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिन की व्याख्या करते हुये कहा है कि ‘8 अरब उम्मीदें, 8 अरब स्वप्न एवं 8 अरब सम्भावनाएं’। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस प्रकार ब्यान करते हुए यह भी कहा है कि विगत छ: दशकों में इस धरती की जनसंख्या दोगुणा हो गई है। अभिप्राय यह कि वर्ष 1974 में यह 400 करोड़ थी तथा 2022 में यह 800 करोड़ के पार हो गई है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2100 में यह 10 अरब 40 करोड़ के करीब हो जाएगी। नि:सन्देह जो भी बच्चा जन्म लेता है, उसके साथ उम्मीदें, स्वप्न एवं सम्भावनाएं जुड़ी होती हैं, परन्तु इस पक्ष से भारत की स्थिति अजीबो-गरीब रही है। 
इस देश का दुर्भाग्य यह रहा है कि सदियों की यात्रा में इसकी जनसंख्या इसकी उत्पादकता से कहीं अधिक रही है। अधिकतर लोग तो सम्भावनाओं की तलाश करते हुये ही अपनी उम्र व्यतीत करके चले जाते हैं। इसीलिए इस देश की लम्बी यात्रा में ़गरीबी एवं मंदहाली में जीवन व्यतीत करने वाले लोगों का दायरा हमेशा बड़ा ही रहा है। यहां सदियों से आक्रमणकारियों एवं विदेशी सत्ता ने यहां के अधिकतर लोगों को किसी किनारे नहीं पहुंचने दिया। अंग्रेज़ी साम्राज्य का 200 वर्ष का इतिहास तो अभी नया ही है। इस काल में जन-साधारण की दुरावस्था किसी से छिपी नहीं हुई थी। लाखों की संख्या में लोग भूख एवं बीमारी का निरन्तर शिकार होते रहे हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद यह आशा उपजी थी कि निचले स्तर तक के जन-जीवन की दशा संवारने एवं लोगों का हित साधन करने वाले शासक सत्ता सम्भालेंगे परन्तु करोड़ों लोगों को इस दयनीयता से बाहर निकालने के लिए नये शासक भी कोई ठोस व्यवस्था करने में असमर्थ रहे हैं। यदि कोई देश अथवा धरती अपने बहु-संख्यक लोगों को प्राथमिक सुख-सुविधाएं प्रदान नहीं कर सकते तो इसका दोष समय के नीति-निर्माताओं पर ही आता है। यदि आम लोगों को ऐसी सुविधाएं देने में हम असमर्थ रहे हैं तो कम से कम निरन्तर बढ़ती जनसंख्या को नियन्त्रण में रखने के लिए तो कोई प्रभावशाली ढंग-तरीका अपनाया ही जा सकता था। आगामी वर्ष भारत की जनसंख्या चीन की आबादी को पार कर जाएगी तथा यह विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश हो जाएगा। अब तक के अनुभव से इसका प्रत्यक्ष प्रभाव यही ग्रहण किया जा सकता है कि करोड़ों अन्य लोग ़गरीबी एवं कठिनाइयों में धकेल दिये जाएंगे। आज विश्व का प्रत्येक छठा व्यक्ति भारतीय है परन्तु उसके पास धरती का केवल 2 प्रतिशत टुकड़ा ही आता है जबकि रूस के पास धरती का 11वां हिस्सा है, कनाडा एवं चीन के पास 6 प्रतिशत से भी अधिक क्षेत्रफल है। चीन ने दशकों पूर्व देश की इस दुखती रग को पहचान लिया था। उसने क्रमश: आबादी को नियन्त्रण में रखने की योजनाएं तैयार कीं तथा अपने इस यत्न में वह बड़ी सीमा तक सफल भी हुआ। चीन के पास भारत से तीन गुणा से अधिक धरती का क्षेत्रफल है परन्तु उसने आबादी के दृष्टिकोण से एक संहिता अवश्य बनाई है जबकि भारत इस मामले में बुरी तरह से पिछड़ गया है। 
हम इस बात के समर्थक हैं कि आज भारतीयों की 80 प्रतिशत समस्याओं का बड़ा कारण जनसंख्या संबंधी अंकुश न बना पाना है। यदि अगले वर्ष भारत की जनसंख्या चीन से बढ़ गई तो इसका पहले नम्बर पर आना कोई उपलब्धि नहीं होगी, अपितु यह एक ऐसी बड़ी चुनौती होगी जो हमारे समक्ष अनेक प्रश्न-चिन्ह खड़े करेगी तथा अन्य समस्याओं को उत्पन्न करेगी, जिनका निदान तलाश कर पाना हमारे समाज के लिए अतीव कठिन होगा।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द