रासायनिक खादों व कीटनाशकों से बंजर हो रही भूमि
भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन आज भारतीय कृषि लगातार एक छिपे हुए खतरे की ओर बढ़ रही है। दरअसल आज खेती में धीरे-धीरे अनेक प्रकार के रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का प्रयोग लगातार बढ़ता जा रहा है और इससे एक ओर जहां हमारे देश की भूमि लगातार बंजर हो रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के प्रयोग से अनेक प्रकार की गंभीर बीमारियां फैल रही हैं। जानकारी के अनुसार कुछ साल पहले आई सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरनमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक देश की 30 फीसदी ज़मीन बंजर होने के कगार पर है। इसका कारण यूरिया का अंधाधुंध इस्तेमाल है, जिसे हरित क्रांति के दौर में उत्पादन बढ़ाने का अचूक मंत्र मान लिया गया था। यूरिया के अधिक उपयोग से नाइट्रोजन चक्र प्रभावित हो रहा है। इतना ही नहीं, रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के लगातार इस्तेमाल से कृषि मित्र जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है। आज मिट्टी में लगातार आर्गेनिक तत्वों की कमी देखी जा रही है, यह भारतीय कृषि जगत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। यह बहुत ही गंभीर बात है कि आज अनाज-सब्जियों के माध्यम से उर्वरकों और कीटनाशकों का ज़हर लोगों के शरीर में भी पहुंच रहा है और वे तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। किसानों को इस बात के प्रति जागरूक होना चाहिए कि खेती में लगातार रासायनिक खाद के प्रयोग से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा लगातार कम होती चली जा रही है और इससे अब हमारे देश में कई स्थानों पर बिना रासायनिक उर्वरक के खेती करना ही संभव नहीं हो पा रहा है। हमने धरती को ज़हरीली बना दिया है। इससे किसानों को तो नुकसान हो ही रहा है, साथ ही साथ उपभोक्ताओं की सेहत पर भी इसका विपरीत असर पड़ रहा है। यदि हमारे देश के किसान इसी तरह रासायनिक ्रखादों का उपयोग करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब कृषि के योग्य भूमि ही नहीं बचेगी। आज किसानों का ध्यान पशुपालन की ओर कम है, क्योंकि महंगाई, स्थान की कमी, हरे चारे की समस्या के कारण किसान खेती के साथ पशु नहीं रखना चाहता। पहले कृषि के साथ पशुपालन का काम भी किया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। यही कारण है कि आज किसानों के पास खेतों के लिए गोबर की खाद, वर्मी व सुपर कंपोस्ट, हरी खाद की उपलब्धता नहीं है। यही कारण है कि मृदा में पोषक तत्वों की कमी है और भूमि की वाटर होल्डिंग कैपेसिटी लगातार कम होती चली जा रही है, इससे भूमि कठोर हो रही है। यह बात ठीक है कि वर्तमान में वाणिज्यिक फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए रासायनिक उर्वरक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनका अंधाधुंध उपयोग हमारी भूमि के लिए काल बन कर सामने आ रहा है। मिट्टी में नाइट्रोजन की अत्यधिक मात्रा आस-पास के जल निकायों में मछलियों को मार सकती है। किसानों को यह ध्यान रखना चाहिए कि केवल और केवल उत्पादन बढ़ाने पर ही ध्यान केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए, उन्हें इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि रासायनिक उर्वरक अकार्बनिक पदार्थों से आते हैं, जो रासायनिक उपचार से गुजरते हैं। यह ठीक है कि रासायनिक उर्वरक किसानों को अल्पावधि में अधिक और उच्च गुणवत्ता वाली फसलें देते हैं, लेकिन दीर्घावधि में ये कम या खराब गुणवत्ता वाली फसलें पैदा कर सकते हैं। वास्तव में ऐसा मिट्टी के स्वास्थ्य की जटिलताओं के कारण होता है। रासायनिक उर्वरकों की एक समस्या यह है कि इनका प्रभाव मिट्टी से होते हुए भू-जल और अन्य जल स्रोतों तक होता है जिससे धरती पर प्रदूषण फैलता है। वास्तव में आज हमें पुन: हमारी परम्परागत कृषि की ओर लौटने की ज़रूरत है। आज किसानों को चाहिए कि वे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को बढ़ाने के लिए गोबर से बनी खाद व गोमूत्र का प्रयोग करें। इनमें मिट्टी को उपजाऊ बनाने वाले सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं। गोमूत्र व गोबर की खाद में नाइट्रोजन, गंधक, अमोनिया, कापर, यूरिया, यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैंगनीज, कार्बनिक एसिड जैसे तत्व पाए जाते हैं। ये तत्व फसलों को लाभ पहुंचाने के साथ मिट्टी की उर्वरक शक्ति को भी बढ़ाने में कारगर होते हैं। ये मिट्टी को कठोर नहीं होने देते और मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखते हैं। हाल ही में राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र की मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन का स्तर कम पाया गया है, जो चिंता का विषय है। राजस्थान के हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर में तो पहले से रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का बहुत प्रयोग हो रहा है। हालांकि ये क्षेत्र राजस्थान के धान/गेंहू के कटोरे कहलाते हैं। अब राजस्थान के हनुमानगढ़ व गंगानगर ही नहीं, शेखावाटी क्षेत्र चूरू, झुंझुनूं, सीकर में भी रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों का प्रयोग पहले की तुलना में बहुत बढ़ गया है। बहरहाल, हमारे किसान भाईयों को यह सोचने व समझने की ज़रूरत है कि रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के बहुत से अदृश्य खतरे हैं। इन सबसे हमें अपनी कृषि को तो बचाना ही होगा, साथ ही मानव समेत धरती के अन्य जीव-जंतुओं व प्राणियों की भी रक्षा करनी होगी। आज हम अपने स्वार्थों व लालच के कारण प्रकृति के चक्र को लगातार तोड़ते चले जा रहे हैं। वास्तव में धरती की सेहत बिगाड़ने में एक बड़ा योगदान रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों का रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि हमें धरती को बीमार बनाने का हक नहीं है। आज ज़रूरत इस बात की है कि हमारे किसान भाई पर्यावरण अनुकूल खेती पर ज़ोर देते हुए रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के उपयोग को धीरे-धीरे कम करके परम्परागत आर्गेनिक खेती अपनाएं। (अदिति)