कैंसर का बढ़ता खतरा
पंजाब के मालवा क्षेत्र में प्रदूषित होते भू-जल के कारण, कैंसर जैसे महारोग के बढ़ते ़खतरे को लेकर पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा प्रदेश की भगवंत मान सरकार की ़ख़ौफनाक चुप्पी के प्रति डाली गई फटकार से स्थितियों की गम्भीरता का साफ-साफ पता चल जाता है। प्रदेश के मालवा क्षेत्र के भू-जल में प्रदूषण के साथ यूरेनियम के तत्व बड़ी मात्रा में पाये जाने से कैंसर का यह ़खतरा मालवा के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ते जाने संबंधी चेतावनी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों द्वारा कई बार दी जा चुकी है। प्रदेश की मौजूदा सरकार के कई मंत्री एवं विधायक स्वयं कई बार इस ़खतरे की विद्यमानता बारे स्वीकारोक्ति दे चुके हैं। इस मामले के उच्च अदालत के संज्ञान में आने के बाद सरकार को कई बार इस हेतु समुचित पग उठाये जाने के लिए कहा गया। यहां तक कि अदालत ने मौजूदा भगवंत मान सरकार को इस समस्या के निदान हेतु तत्काल उपाय किए जाने, और फिर इन पगों की जानकारी अदालत में प्रस्तुत करने के लिए भी कहा, किन्तु सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगने के बाद ही अदालत ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई और अगली सुनवाई में सरकार की इस हेतु अब तक की कारगुज़ारी की रिपोर्ट पेश किये जाने का भी निर्देश दिया। बेशक सरकार की ओर से धारण की गई यह चुप्पी पंजाब का हित-चिन्तन करने वाले लोगों के साथ-साथ अदालत को भी अखरती रही। तभी तो जन-साधारण की ओर से भी जन-हित याचिकाओं के द्वारा अदालत को इस गम्भीर होती वस्तु-स्थिति से अवगत किया गया। ऐसी ही एक याचिका के ज़रिये अदालत में एक अनुसंधान-पत्र के ज़रिये पानी को शुद्ध एवं यूरेनियम-मुक्त करने का समाधान भी प्रस्तुत किया गया जिसे अदालत ने पंजाब सरकार को सौंपे जाने का भी निर्देश दिया। अदालत का पंजाब सरकार से इस अनुसंधान पत्र के ज़रिये यथा-सम्भव उपाय किए जाने की सम्भावनाएं तलाश करने हेतु कहना भी आशावाद की ओर संकेत करते हुए प्रतीत होता है।
हम समझते हैं कि बेशक मालवा क्षेत्र के पानी में यूरेनियम के अंश पाये जाने की यह समस्या काफी पुरानी और पेचीदा है, तथा इस हेतु समन्वित और संयुक्त प्रयास किये जाने की बड़ी ज़रूरत है। इसके लिए केन्द्र सरकार के सहयोग एवं समर्थन की भी बड़ी आवश्यकता होगी। केन्द्र सरकार की ओर से स्वयं भी इस हेतु कई बार जागरूकता निर्देश जारी किये जाते रहे हैं, किन्तु इस हेतु भरसक यत्नों के लिए पहल प्रदेश की आम आदमी पार्टी की सरकार को स्वयं करनी होगी। प्रदेश के इस अंचल में मौजूद कैंसर के लक्ष्णों का अन्य भागों की ओर अग्रसर होना प्रदेश के सामूहिक भविष्य के लिए बेहद चिन्ता की बात है। यह स्थिति अत्यन्त ़खतरनाक भी हो सकती है। इस आशंकित ़खतरे से निपटने हेतु तत्काल उपाय करना और अपने लोगों के स्वास्थ्य संबंधी यत्नशील रहना प्रदेश सरकार की ही ज़िम्मेदारी बनती है। वैसे भी, सेहत संबंधी नीतियां निर्धारित करना प्रदेश सरकारों के ज़िम्मे आयद होता है। केन्द्र सरकार से इस हेतु सहयोग एवं सहायता मांगनी हो, तो भी इसकी पहल प्रदेश सरकार को ही करनी होगी। हम यह भी समझते हैं कि प्रदेश की भगवंत मान सरकार को केन्द्र के बाद अब अदालत के साथ भी विवाद और टकराव की नीति अपनाने से यथा-सम्भव संकोच करना चाहिए। अदालत ने यदि कोई रिपोर्ट अथवा जानकारी सरकार से मांगी थी, तो नि:संदेह वह दी जानी चाहिए थी। सरकार द्वारा अदालती निर्देश अथवा मंशा की अवहेलना करके उसकी फटकार का निशाना बनना कदापि उचित करार नहीं दिया जा सकता।
हम समझते हैं कि प्रदेश के भू-जल में यूरेनियम के तत्वों का पाया जाना, और इसे जान कर भी सरकार का निष्क्रिय बने रहना प्रदेश और इसके आम लोगों के प्रति आपराधिक चुप्पी जैसा कृत्य कहा जा सकता है। अदालत द्वारा प्रदेश सरकार को दोआबा तथा माझा संबंधी रिपोर्ट पेश करने हेतु कहना भी स्थितियों की गम्भीरता को ही दर्शाता है। भाभा अनुसंधान केन्द्र द्वारा इस क्षेत्र में पानी के लिये गये नमूनों में से 35 प्रतिशत में यूरेनियम के तत्व पाये गये हैं। यह चिन्ता तब अधिक घनीभूत हो जाती है, जब इसका स्रोत स्वयं मुख्यमंत्री भगवंत मान के अपने गृह-क्षेत्र में पाया जाता है। मुख्यमंत्री स्वयं भी पहले कई बार इस जन-चिन्ता से अवगत हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में तो उनकी ओर से त्वरित उपाय किया जाना अधिक आवश्यक हो जाता है। नि:संदेह इस सम्पूर्ण स्थिति की भयावहता को देखते हुए प्रदेश सरकार को युद्ध-स्तर पर इससे निपटना चाहिए। तथापि, अदालत की फटकार के बाद ‘आप’ सरकार, इस आफत से निपटने के लिए किस प्रकार की दृढ़ इच्छा-शक्ति का प्रदर्शन करती है, यह अब निकट भविष्य में देखने वाली बात होगी।