अनिल अंबानी के खिलाफ सख्त फैसले से निवेशकों को क्या मिला ?

24 अगस्त को जब मैं ये पंक्तियां लिख रहा हूं, तब मेरे सामने देश ही नहीं दुनियाभर के अनेक बड़े अखबारों, वेबसाइटों और टीवी चौनलों की अनिल अंबानी के खिलाफ सेबी (सिक्यूरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) के सख्त फैसले की सुर्खियां बिखरी हुई हैं,जिनमें शाबासी के भाव से खा गया है कि मार्केट रेगुलेटर सेबी ने उद्योगपति अनिल अंबानी के विरुद्ध अपने कड़े फैसले से उद्योगपतियों को कड़ा संदेश दिया है। गौरतलब है की अनिल अंबानी पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है, साथ ही अगले पांच सालों तक के लिए उन्हें शेयर बाज़ार की किसी भी गतिविधि में हिस्सा लेने के लिए बैन कर दिया गया है। यही नहीं उनकी रिलायंस होम फाइनेंस (आरएचएफएल) कम्पनी पर जिसके प्रबंधकों के जरिये अनिल अंबानी ने 8,800 करोड़ रुपये का कथित कार्पोरेट गबन किया, उस आरएचएफएल को अगले छह महीनों के लिए का शेयर बाज़ार से बाहर कर दिया है। साथ ही उस पर भी 6 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। साथ ही इस धोखाधड़ी में शामिल अमित बापना पर 27 करोड़ रुपये, रवींद्र सुधालकर 26 करोड़ रुपये और पिंकेश आर शाह पर 21 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है। ये सब आरएचएफएल के प्रबंधन से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी थे।
सेबी के इस फैसले के बाद अनिल अंबानी समूह की कम्पनियों के शेयरों में भारी गिरावट आनी ही थी, इस कारण अनिल अंबानी की कम्पनी रिलायंस इंफ्रा, रिलायंस होम फाइनेंस और रिलायंस पावर के शेयरों में क्रमश: 14 फीसदी, 5.12 फीसदी और 5.01 फीसदी की गिरावट देखी गई। इस सब को देखने, सुनने और पढ़ने के बाद आम पाठकों को भी लगता है कि वाह! शेयर बाज़ार की रेगुलेटरी अथॉरिटी सेबी ने देखो कितना कड़ा और सबक सिखाने वाला फैसला किया है, लेकिन ज़रा इस पूरे फैसले को उन लोगों की निगाह से देखिये जिनके विरुद्ध अनिल अंबानी और उनके सहयोगियों की धोखाधड़ी का निर्णायक असर हुआ। दरअसल मार्च 2018 में आरएचएफएल के शेयर की कीमत 60 रुपये प्रति शेयर थी, लेकिन जब मार्च 2022 में इस मामले का पर्दाफाश हो गया कि कैसे अनिल अंबानी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की चेतावनियों के बावजूद अपने प्रबंधकों के साथ मिलीभगत करके इतना बड़ा कार्पोरेट गबन किया है, उसके बाद उसी आरएचएफएल के शेयरों की कीमत घटकर मात्र 75 पैसे रह गई। इससे आरएचएफएल में निवेश करने वाले  9 लाख से ज्यादा आम निवेशकों का भारी नुकसान हुआ, जिन्होंने इस भरोसे पर शेयर बाज़ार में एक बड़े कार्पोरेट घराने की कम्पनी पर निवेश किया था कि अगर कम्पनी कुछ गड़बड़ करेगी तो उस पर नज़र रखने के लिए सेबी तो है ही, लेकिन सेबी न तो कार्पोरेट जगत की इस हेराफेरी को समय रहते भांप पायी और न ही बाद में अपने तथाकथित सख्त फैसले से उन 9 लाख निवेशकों का रत्तीभर भला कर पायी।
ठीक है पांच साल तक अनिल अंबानी पर शेयर बाज़ार की सभी तरह की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर पाबंदी रहेगी। यह भी सही है कि उन पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगा है और अब पांच सालों तक वे लिस्टेड कम्पनी में चाहे वह उनकी हो या दूसरे की किसी महत्वपूर्ण पोस्ट पर नहीं रह सकते, लेकिन इससे 9 लाख उन निवेशकों को क्या फायदा होगा, जो इस उद्योगपति की कथित बदनीयति के चलते बर्बाद हो गये? आपको लगता होगा किसी एक कम्पनी के शेयर के डूबने से कोई बर्बाद थोड़े हो जायेगा, लेकिन हिंदुस्तान में बड़ी तादाद ऐसे निवेशकों की है, जो किसी कम्पनी पर भरोसा कर लिया तो उस पर आंख मूंदकर अपनी सारी पूंजी लगा देते हैं। हालांकि आरएचएफएल के डूबने से कितने निवेशकों की कितनी पूंजी डूबी, ठीक इस बात का तो कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है, लेकिन आमतौर पर यह देखा गया है कि जब किसी कम्पनी का शेयर इस प्रकार ध्वस्त होता है तो उसमें 20 से 25 फीसदी आम निवेशक पूरी तरह से बर्बाद हो जाते हैं, तो अगर 9 लाख निवेशक पूरी तरह से आरएचएफएल के डूबने से नहीं डूबे होंगे तो भी कम से कम दो से अढ़ाई लाख निवेशक तो ऐसे रहे ही होंगे, जिसकी इस धोखाधड़ी पूरी तरह से कमर टूट गयी होगी। भगवान न करे यह सच भी हो। कोई नहीं जानता कि इस भयावह कार्पोरेट गबन के पर्दाफाश के बाद कितने निवेशक सड़क पर आ गये?
लब्बोलुआब यह कि सेबी के इस सख्त फैसले से आखिरकार उस आम निवेशक को क्या फायदा हुआ, जिसकी सुरक्षा के लिए सेबी जैसी रेगुलेटरी का गठन किया गया था। जब हम सख्त फैसलों से खुश होते हैं, फैसला लेने वालों की वाहवाही करते हैं तो हमें इस बुनियादी बात पर ज़रूर विचार करना चाहिए कि आखिरकार इस फैसले से उस व्यक्ति को क्या फायदा हुआ, जो इससे सर्वाधिक पीड़ित है और अगर पीड़ित व्यक्ति को किसी सख्त फैसले से कोई फायदा नहीं होता तो ऐसे सख्त फैसलों का कोई अर्थ नहीं है। अनिल अंबानी की निजी सम्पत्ति आज भी 8 हज़ार करोड़ से कम नहीं है। अगर वाकई सेबी आम निवेशकों के दर्द को समझ रही होती, इस भयावह कार्पोरेट गबन के वास्तविक पीड़ितों की पीड़ा महसूस कर रही होती, तो वह भले ऐसा तथाकथित प्रतिबंध न लगाया होता, लेकिन कोई ऐसी व्यवस्था ज़रूर करती, जिससे अपनी खून पसीने की कमाई गंवा देने वाले निवेशकों से धोखाधड़ी करने वालों को सचमुच का सबक मिलता और जिन आम निवेशकों के साथ यह विश्वासघात हुआ था, उस विश्वासघात की किसी हद तक भरपायी होती।
कोई नहीं जानता कि यह जो 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा है, उस जुर्माने के रूप में वसूली गई राशि से क्या होगा? लेकिन यह भी कहीं खुलासा नहीं किया गया कि उस राशि से निवेशकों की कोई भरपायी होगी। भरपायी तो हो भी नहीं सकती, क्योंकि गबन तो 8,800 करोड़ रुपये का है और इतनी बड़ी राशि के गबन के बाद जो कम्पनी के पूंजीकरण का नुकसान हुआ होगा, वह इससे भी कहीं ज्यादा होगा। कहने का मतलब यह है कि आरएचएफएल के शेयर के 60 रुपये से टूट कर 75 पैसे आ जाने पर वास्तव में निवेशकों का कितना नुकसान हुआ होगा, वह कम से कम गबन की धनराशि से तो ज्यादा ही होगा। कुल मिलाकर अनिल अंबानी के विरुद्ध आया फैसले को मीडिया कितना ही सख्त फैसला क्याें न कह रही हो, लेकिन इस सख्त फैसले का न तो उन पीड़ितों को कोई फायदा हुआ है, जो कम्पनी की धोखाधड़ी के कारण बर्बाद हो गये और समय पर यानी घोटाले से पूर्व इसे न पकड़ पाने के कारण मौजूदा आम निवेशकों को भी किसी तरह की मनोवैज्ञानिक सुरक्षा नहीं महसूस होगी कि उनका निवेश सुरक्षित है। इसलिए ऐसे सख्त फैसले भी उन लोगों के किसी काम के नहीं हैं, जो शातिर घोटालों की शातिरी में अपनी ईमानदारी की कमाई गंवा बैठते हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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