गम्भीर मामले पर राजनीति न हो
विगत दिवस कोलकाता के प्रसिद्ध आर.जी.कर सरकारी अस्पताल में डाक्टर के तौर पर ट्रेनिंग ले रही लड़की के साथ उसी अस्पताल में ही दुष्कर्म करने के उपरांत निर्ममता से उसकी हत्या किये जाने की घटना घटित हुई थी। उसके बाद देश भर में जन-आक्रोश पैदा हो गया था। इस घटना को हुए 19 दिन बीत चुके हैं। इस मामले पर बहुत कुछ तेज़ी से घटित हुआ है। मुख्य अपराधी संजय राय को पकड़ लिया गया है। उसने पुलिस के समक्ष अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया है। उसके बाद उसके किए गए पॉलीग्राफ टैस्ट में भी यह स्पष्ट हो गया है। घटित इस दुखद घटनाक्रम के विवरण भी व्यापक रूप में सामने आ गए हैं। देश भर के डाक्टरों, विद्यार्थियों तथा शहरियों ने सड़कों, बाज़ारों में व्यापक स्तर पर रोष प्रदर्शन भी किए हैं।
अंतत: कोलकाता हाईकोर्ट ने यह मामला और गहन जांच-पड़ताल हेतु सी.बी.आई. को सौंप दिया था। देश भर के डाक्टर वर्ग का गुस्सा ठंडा न होते देख कर सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका स्वत: संज्ञान लेते हुए लोगों को इस संबंध में पूर्ण न्याय दिलाये जाने का विश्वास दिया है, परन्तु इसके बावजूद अभी तक भी इस घटना के प्रति आक्रोश बरकरार है। व्यापक स्तर पर इसकी चर्चा जारी है। इसी दौरान संबंधित अस्पताल के काम-काज तथा उसके प्रिंसीपल संदीप घोष की कारगुज़ारी पर भी बड़े सवाल उठाये गये थे। मुख्य आरोपी के अतिरिक्त और भी गिरफ्तारियां की गई हैं। उनके संबंध में पूरी तरह से जांच-पड़ताल की जा रही है। इस घटना के बाद अस्पताल में जिस प्रकार की गतिविधियां देखने को मिली थीं, वे भी सन्देह के दायरे में हैं। उस संबंधी भी प्रिंसीपल पर उंगलियां उठ रही हैं। प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी हैं। उनके पास ही गृह तथा स्वास्थ्य मंत्रालय हैं। इसलिए स्वाभाविक ही उन पर भी बड़ी ज़िम्मेदारी आती है, परन्तु विगत पूरे समय में ममता तथा प्रशासन का जो रवैया रहा है, वह ढाढस देने वाला नहीं है, न ही उसके दृष्टिगत विश्वास बंधता है। पहले की तरह इस मामले पर अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए ममता बैनर्जी को आम की तरह जुलूस की सूरत में सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए था, अपितु इस घटना से निपटने के लिए और गम्भीर योजनाबंदी करनी चाहिए थी तथा सभी वर्गों को विश्वास में लेने के यत्न करने चाहिए थे। इस मामले पर प्रशासन की ओर से अपनाई गई टकराव की नीति को अच्छी योजनाबंदी नहीं कहा जा सकता।
यह मामला समूचे देश से संबंधित है। आज भी ज्यादातर स्थानों पर महिलाओं के साथ किए जाते दुर्व्यवहार के समाचार मिलते रहते हैं। चाहे आज़ादी के बाद पिछले दशकों में महिला ने प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। समाज में अपना सिक्का मनवाया है तथा देश की प्रतिष्ठा को भी बढ़ाया है, परन्तु इसके बावजूद आज महिलाओं की सुरक्षा के पक्ष से देश में अविश्वास का माहौल बना दिखाई देता है। ज्यादातर स्थानों पर महिला स्वयं को असुरक्षित महसूस करती है। ऐसी उपजी मानसिकता को कम करने के भारी यत्न भी किए जाते रहे हैं परन्तु जब प्रतिदिन ऐसे दुखद घटनाक्रम सामने आते हैं तो अनिश्चितता का माहौल पैदा होना स्वाभाविक है। इस संबंध में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी लिखे एक लेख में अपनी भावनाएं प्रकट करते हुए कहा है कि महिलाओं के साथ होते ऐसे घटनाक्रम संबंधी तथा खास तौर पर वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए योजनाएं एवं रणनीति बनाई गई थी। पहले कानूनों में भी बदलाव किया गया था, परन्तु इसके बावजूद भी यदि आज महिला स्वयं को असुरक्षित महसूस करती है तो इस संबंध में हमारा काम अभी भी अधूरा ही है।
हम समझते हैं कि इस मामले को एक गम्भीर सामाजिक समस्या के पक्ष से देखते हुए प्रभावी योजनाबंदी करके हल किया जाना चाहिए। देश की राजनीतिक पार्टियों को भी इसे एक राष्ट्रीय समस्या समझते हुए इससे राजनीतिक लाभ लेने का यत्न नहीं करना चाहिए। विगत दिवस से कोलकाता में इस मामले को लेकर जिस सीमा तक गड़बड़ वाला माहौल पैदा हुआ है तथा जिस तरह आपसी टकराव देखने को मिला है, उसके स्थान पर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को इस संबंध में एक साथ मिल कर बैठने की ज़रूरत है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द