सफेद हाथी सिद्ध होती स्कूल्स ऑफ ऐमिनैंस योजना

पंजाब में दिल्ली की तर्ज पर खोले गये स्कूल्स ऑफ ऐमिनैंस की हालात दो ही वर्ष में इतनी दयनीय हो गई है कि एक ओर जहां इन स्कूलों हेतु शिक्षकों का पर्याप्त अभाव पाया जा रहा है, वहीं इन स्कूलों में प्रवेश लेने हेतु समुचित संख्या में विद्यार्थी ही नहीं मिल रहे हैं। इन स्कूलों के हेतु भवनों की भी भारी कमी है, और कि अधिकतर पुराने स्कूलों की दीवारों पर स्कूल ऑफ ऐमिनैंस का बोर्ड लगा कर, और उनके भवनों की थोड़ी-बहुत रंग-पुताई कर उन्हें ऐमिनैंस स्कूल बनाया जा रहा है। यहां तक कि जालन्धर के लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराने एक सरकारी स्कूल को भी स्कूल ऑफ ऐमिनैंस बना दिया गया है। 
बहुत स्वाभाविक है कि प्रदेश की भगवंत मान सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के नाम पर कुछ स्कूल भवनों के रूप-आकार को तो बदल दिया, किन्तु सरकार उनकी नियति और नसीब को नहीं बदल सकी। नि:संदेह इस स्थिति के लिए इस सरकार और इसके आकाओं की नीतियां और नीयत, दोनों उत्तरदायी कहे जा सकते हैं। आज स्थिति यह है कि चालू वर्ष का शिक्षा सत्र आधे से अधिक व्यतीत हो चुका है, किन्तु सरकारी उद्यम से संचालित इन स्कूलों में आज भी विद्यार्थियों का पर्याप्त अभाव पाया जा रहा है। इन खाली सीटों में जन-सामान्य वर्ग से लेकर अनुसूचित जाति/जनजाति, और पिछड़े वर्गों की सीटें भी शामिल हैं। इससे स्पष्ट रूप से यह पता चलता है कि प्रदेश की शिक्षा नीति और ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन करने के दावों के साथ सत्तारूढ़ हुई भगवंत मान की आम आदमी पार्टी की सरकार की नई शिक्षा नीति पूर्णतया विफल सिद्ध हुई है, और कि ऐमिनैंस स्कूल परियोजना दो कदम चलने के उपरांत ही हांफने लगी है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पंजाब में खोले गये कुल 118 स्कूल ऑफ ऐमिनैंस में लगभग 6 हज़ार विद्यार्थियों हेतु सीटें खाली पड़ी हैं। सर्वाधिक बुरी स्थिति जमा-वन अर्थात ग्यारहवीं कक्षा के लिए बनी है। इस श्रेणी के लिए शिक्षकों और विद्यार्थियों, दोनों स्तर पर भारी कमी पाई गई है। इनमें से सरकारी स्कूलों के लिए निर्धारित संख्या में से 3909 और निजी स्कूलों से लिये जाने वाले विद्यार्थियों की 2151 सीटें खाली पड़ी हैं। सरकारी योजना के तहत इन स्कूलों के विद्यार्थियों को नीट, जे.ई.ई. जैसी प्रतिष्ठाजनक प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु प्रशिक्षण के साथ उच्च-स्तरीय वर्दी, परिवहन आदि की सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं किन्तु इतना सब कुछ होने के बावजूद इस परियोजना का दम तोड़ने लगना कहीं न कहीं से प्रदेश की ‘आप’ सरकार की विफलता एवं अकर्मण्यता को ही दर्शाता है। प्रदेश सरकार ने बेशक इस हेतु सभी ज़िलों के शिक्षाधिकारियों को खाली सीटों को तेज़ी से भरने हेतु पत्र लिखा है, किन्तु त्रुटिपूर्ण नीतियों और सरकार के आला आकाओं के पास समयाभाव होने के कारण इन सीटों पर विद्यार्थियों का प्रवेश ले पाना कदापि सम्भव प्रतीत नहीं होता। इन स्कूलों की स्थापना के पीछे एक म़कसद यह भी था, कि सरकारी स्कूलों में दी जाती शिक्षा का स्तर निजी स्कूलों की शिक्षा के समानांतर लाया जा सके, किन्तु शिक्षकों के साथ-साथ अन्य कई प्रकार के स्टाफ की कमी के कारण यह नीति ‘अग्गा दौड़ ते पिच्छा चौड़’ की कहावत के अनुरूप होती जा रही है। पुराने स्कूलों के स्टाफ और भवनों आदि पर किये गये कब्ज़े के बावजूद इस नीति के कोई सार्थक परिणाम निकलते दिखाई नहीं दिये, किन्तु पुराने स्कूलों के विद्यार्थियों को इसका खमियाज़ा अवश्य भुगतना पड़ रहा है। इन स्कूलों के मुखियाओं और शिक्षकों की जो बदनामी हो रही है, सो अलग।
हम समझते हैं कि भगवंत मान सरकार की यह एक महती शिक्षा सुधार मुहिम सफेद हाथी बन कर रह गई है—लाभ के नाम पर शून्य किन्तु खर्च के तौर पर लोगों के कर-राजस्व से प्राप्त धन का एक बड़ा भाग इस हाथी के रख-रखाव पर खर्च हो रहा है। स्कूल्स  ऑफ ऐमिनैंस के विद्यार्थियों में उच्चतर योग्यता डाले जाने के स्थान पर वे अधर में लटकते अधिक दिखाई दे रहे हैं। मुख्यमंत्री के अपने गृह क्षेत्र मालवा में तो स्कूल ऑफ ऐमिनैंस की दशा और भी खराब है। सरकार स्वयं इन स्कूलों हेतु शिक्षण स्टाफ की कमी और सीटें खाली होने के दावे को स्वीकार कर चुकी है। इन स्कूलों की दुर्दशा का एक अन्य कारण इनमें परिवहन की त्रुटिपूर्ण व्यवस्था भी है। सरकार ने स्कूलों की अपनी पर्याप्त परिवहन क्षमता न होने के दृष्टिगत, इस हेतु पहले ठेके पर वाहनों की व्यवस्था की थी, किन्तु ठेकेदारों और वाहन-चालकों को सही समय पर अदायगी न होने से यह प्रबन्ध भी बिखर गया। हम समझते हैं कि कदम-कदम पर निष्फल सिद्ध हो रही, भगवंत मान सरकार की यह महती योजना और कितने कदम और चल सकेगी, यह अब देखने वाली बात होगी।

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