छोटे एवं प्रगतिशील किसानों के लिए लाभदायक हो सकती है फूलों की काश्त

शीत ऋतु के फूलों की पौध इसी माह लगनी शुरू होती है और नवम्बर तक लगती रहती है। इनके फूल  फरवरी-मार्च तक पूरी तरह खिल जाते हैं। फूलों से आस-पास सुंदर, रंगीन, मनमोहक तथा सुगंध भरा हो जाता है। अब लगाई गई पौध के फूलों से उत्पादक फरवरी-मार्च में लगने वाली प्रदेश स्तरीय, ज़िला स्तरीय, पी.ए.यू. लुधियाना, नगर निगम चंडीगढ़ तथा आई.ए.आर.आई. (पूसा) नई दिल्ली में लग रही प्रदर्शनियों में भाग लेकर इनाम प्राप्त कर सकते हैं। 
पौध को अब गमलों में तथा फ्लावर बैंड्स में लगाकर भी तैयार कर सकते हैं। इन फूलों की पौध कद के हिसाब से क्रमवार लगानी चाहिए। ऊंचे कद वाली पौध में गुलदाऊदी, कोरन फ्लावर, स्वीट सुल्तान, डेहलिया, लार्कस्पर, अफ्रीकन गेंदा, एंट्राइनम, हैलीक्राइसम, हॉलीहाक, कासमास, स्वीट पी, बिल्ज़ ऑफ आयरलैंड तथा मध्यम कद वाली पौध में एक्रोक्लाइज़म, एस्टर, कार्नेशन, स्वीट विलियम, पटूनिया, क्लार्किया, कैलेफोर्निया पोपी, नमेशिया, गज़ानिया, साल्विया, वाल फ्लावर, जिप्सोफिला, स्टेटिस, कोडिडफ्ट, क्लैंडुला, फ्लॉक्स, वर्बीना, डायमोर्फोथीका, नष्टर्शियम, सिनेरेरिया तथा छोटे कद वाली पौध में ब्रैचीकम, डेज़ी, पेज़ी, आइस प्लांट, स्वीट अलाइसम, फ्रैंच मैरीगोल्ड शामिल हैं। 
फ्लावर बैंड्स में लगाने के लिए क्लैंडुला, फ्लॉक्स, वर्वीना, डेहलिया, पटूनिया, नमेशिया, स्वीट सुल्तान, एंट्राइनम, औस्टर तथा मैरीगोल्ड आदि शामिल हैं। गमलों में लगाने के लिए औस्टर, पटूनिया, गज़ानिया, सिनेरेरिया, साल्विया, नमेशिया, ब्रैचीकम, पेज़ी, आइस प्लांट आदि शामिल हैं। यदि आप खुशबूदार फूल लेना चाहते हैं तो स्वीट सुल्तान, स्वीट विलियम, सजावटी मटर, स्वीट अलाइसम की पौध लगाएं। छाया वाले स्थानों के लिए साल्विया तथा सिनेरेरिया लगाएं। सूखा कर रखने के लिए नाइजेला, बिल्ज़ ऑफ आयरलैंड, स्टैटिस, हैलीक्राइशम, एक्रो-क्लाइनम आदि किस्मों के फूलों की पौध है। पर्दा करने के लिए सजावटी मटर तथा हैलीहॉक के फूल काम आते हैं।  इन पौध के अतिरिक्त ग्लैडिओल्स तथा जाफरी के फूल घरेलू तथा व्यापारिक दोनों स्तर के लिए लगाए जा सकते हैं। व्यापारिक स्तर की कृषि के लिए ज़िर्बरा, देसी गुलाब, ग्राफटिड गुलाब आदि लगाए जा सकते  हैं। बागवानी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरैक्टर डा. स्वर्ण सिंह मान कहते हैं कि इन फूलों के लिए बागवानी विभाग राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत 25 से 40 प्रतिशत तक सब्सिडी देता है। पटियाला के निकट निजी कम्पनियां दबहलान स्थित बायोक्रव सीड्ज़ तथा हारवैस्ट ग्रीन सीड्ज़ कम्पनियां थाइबैक योजना के अंतर्गत राज्य के विभिन्न ज़िलों में बीज तैयार करवा कर खरीद लेती हैं और वे इन फूलों के बीज को अमरीका, कनाडा, यूरोप तथा आस्ट्रेलिया आदि देशों को भेजती हैं। फूलों की कृषि करके किसान गेहूं, धान के फसली चक्कर से दोगुणा-तीन गुणा आमदन ले सकता है। डा. मान बताते हैं कि बागवानी विभाग द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत फूलों का बीज तैयार करने के लिए 35000 रुपये प्रति हैक्टेयर के हिसाब से सब्सिडी दी जाती है। फसली-विभिन्नता के पक्ष से भी छोटे किसानों के लिए फूलों की व्यापारिक कृषि लाभदायक सिद्ध होगी। पूसा द्वारा गुलदाऊदी तथा गुलाब की सफल तथा लाभदायक किस्में विकसित की गई हैं, जिन्हें अपना कर छोटे तथा प्रगतिशील किसान फूलों की कृषि करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं। कई किस्में लगातार पूरा वर्ष फूल देती हैं। पूसा द्वारा विकसित गुलदाऊदी की सोना किस्म दूसरी किस्मों से 20 दिन पहले फूल दे देती है। यह किस्म गमलों में लगाने लिए अनुकूल है। इसके फूलों का रंग ज़रद (पीला) तथा इसके पौधे छोटे होते हैं। यह किस्म स्प्रे-टाइप है। पूसा-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा गुलाब की भी लाभदायक किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें पूसा अरुण, पूसा शताब्दी, पूसा अजय, पूसा कोमल तथा पूसा मोहित किस्में शामिल हैं। ये किस्में व्यापार तथा कमाई करने के लिए अधिक अनुकूल हैं। 
पूसा शताब्दी किस्म के फूल कट्ट फ्लावर उद्योग तथा प्रदर्शनियों में इस्तेमाल करने के अनुकूल हैं। पूसा कोमल किस्म बीमारियों से रहित है और इसका पौधा गर्मियों में भी लगाया जा सकता है, जो बड़े होटलों के लिए बहुत आकर्षण रखता है। पूसा मोहित ऐसी किस्म है, जो कांटों से रहित है। पंजाब में फूलों की काश्त के अधीन रकबा बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। पूसा-आई.ए.आर.आई. के फ्लोरीकल्चर तथा लैंडस्कैपिंग डिवीज़न के वैज्ञानिकों के अनुसार एक हैक्टेयर पर फूलों की काश्त करने के लिए 6 से 7 लाख रुपये खर्च आते हैं और वार्षिक 2.5 से 3 लाख तक की आय हो जाती है।