चीन को भी चौंकाएगी चिप के क्षेत्र में देश की बढ़त 

अपने अमरीकी दौरे पर प्रधानमंत्री ने न्यूयार्क में भारतवंशियों से कहा कि जल्द ही आप अमरीकी रक्षा प्रणालियों, उपकरणों, तमाम उत्पादों में ‘मेड इन इंडिया चिप’ इस्तेमाल होते देखेंगे। भारत लौटने के बाद इसी सप्ताह उन्होंने फिर से यही बात दोहराई। उन्होंने घोषणा की कि जल्दी ही भारत दुनिया भर को ‘मेड इन इंडिया’ चिप्स बेचना शुरू कर देगा। वे 2022 में अमरीका के साथ किए ‘क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी एग्रीमेंट’ के अंतर्गत अमरीका से मिलकर सेमीकंडक्टर बनाने के फैसले का महत्व भी बताते हैं। जब प्रधानमंत्री सिंगापुर जाते हैं, तो वहां का व्यापार मंत्रालय बयान देता है कि सिंगापुर और भारत अपने अपने सेमीकंडक्टर ईकोसिस्टम में पूरक शक्तियों का लाभ उठाने के साथ अपनी सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला मजबूत करने के नए अवसर तलाशेंगे। इस बयान का महत्व कुछ यों समझें कि सेमीकंडक्टर उत्पादन में बेहतर और टिकाऊ प्रदर्शन का लंबा अनुभव रखने वाले सिंगापुर का वैश्विक सेमीकंडक्टर उत्पादन में लगभग 10 प्रतिशत का योगदान है। संसार के कुल वेफर निर्माण क्षमता का पांच प्रतिशत इसी को हासिल है और वैश्विक सेमीकंडक्टर उपकरणों का 20 प्रतिशत हिस्सा सिंगापुर में बनाया जाता है। दुनिया की 15 बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनियों में से नौ सिंगापुर से अपना कारोबार करती हैं। इस स्थिति को देखते हुए भारत का इस क्षेत्र में सिंगापुर का साथ कितना लाभकारी, कितना असरकारक होगा समझा जा सकता है।
सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में सरकार की यह कवायद महज तकनीकि या विशुद्ध आर्थिक ही नहीं है। इस बहाने वह चाहे अमरीका को साथ लेने की बात करता हो या सिंगापुर को, यह साथ और समझौते दूरगामी भू-रणनीतिक, भू-आर्थिक और साथ ही कूटनीतिक महत्व रखते हैं। तब जबकि चीन ने सेमीकंडक्टर के निर्माण क्षेत्र में अमरीका समेत कई दूसरे देशों को निरुपाय करने, पछाड़ने और आगे बढ़ने से रोकने के लिये सेमीकंडक्टर बनाने में काम आने वाली धातुओं को कुछ खास देशों को बेचने से रोक लगाता हो और चिप के मामले में दूसरे उस पर आश्रित रहें ऐसी चाल चल रहा हो तो उस समय भारत का यह उपक्रम चीन को बेचैन करने वाला है। भारत युद्धक उपकरणों, हथियारों, तकनीक इत्यादि के मामले में रूस पर अपनी अतिनिर्भरता दूर करना, विविधता लाना चाहता है ऐसे में अमरीका तथा सिंगापुर की ओर हाथ बढ़ाना एक सोची समझी दूरदर्शितापूर्ण नीति है। इनके सहारे भारत का उन देशों के समूह में शामिल होते देखना जो न अपने रडार सिस्टम और उच्च शक्ति संपन्न संचार उपकरणों लिए फ्रंट-एंड सेमीकंडक्टर बनाने में स्वत: सक्षम है, चीन की चिंता लाज़िमी है। प्रधानमंत्री देश विदेश में अपनी उपरोक्त घोषणाओं से चीन की चिंता बढ़ाने और उसे छिपे अर्थों में चेताने और दुनिया को यह संदेश देने का काम कर रहे हैं कि चिप के महत्वपूर्ण क्षेत्र में भारत प्रभावी दखल देने को तैयार हो रहा है।   
भारत सेमीकंडक्टर को इतना महत्व क्यों दे रहा है? उसके व्यापार एजेंडे में चिप अचानक इतना खास क्यों हो गया है? देश शीघ्रातिशीघ्र इसके बाज़ार में खुद को स्थापित करने के लिए इतना उद्धत क्यों है? सवालों का जवाब यह है कि आज दुनियाभर में रोज़ाना 100 अरब से ज्यादा चिप इस्तेमाल हो रहे हैं और इनकी संख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही है। स्मार्टफोन, लैपटॉप, कार, हवाई जहाज, टीवी, म्यूजिक सिस्टम, जैसे तकरीबन सभी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट, ईसीजी और एमआरआई जैसी स्वास्थ्य जांच संबंधी बहुतेरी मशीनों से ले कर मिसाइलों और तमाम रक्षा सुरक्षा उपकरणों, अंतरिक्ष यानों तक में इसका इस्तेमाल है। सबब यह कि चिप शासन, प्रशासन, कारोबार सर्वव्यापी है। सेमीकंडक्टर तकनीक उपकरणों को ज्यादा कुशल, सक्षम, बनाने के साथ यह उन्हें आकार में छोटा और सस्ता बनाते हैं। 40 साल पहले चिपहीन मोबाइल लगभग एक किलो का और तकरीबन चार लाख का था। आधा घंटे में बैटरी खत्म हो जाती थी। आज चिप के चमत्कार ने उसे कितना बदल दिया दुनिया के सामने है। यह कवायद आगे भी जारी रहनी है। मेमोरी डिवाइसेज, लॉजिक डिवाइसेज और एनालॉग आईसी चिप का विकास और उपयोग धुंआधार जारी है। फॉर्चून बिजनेस इनसाइट्स बताता है कि यह साल बीतते-बीतते दुनिया में सेमीकंडक्टर का बाज़ार 682 अरब डॉलर पहुंच सकता है, जिसकी हालिया बढ़त दर देखते हुए 2032 तक 2063 अरब डॉलर हो जाने की उम्मीद है।
इस बाज़ार पर जिसकी पकड़ जितनी ज्यादा होगी उसकी आर्थिक और रणनीतिक शक्ति भी अधिक होगी। वह चिप के नाम पर बहुतों को चुप करा सकेगा। फिलवक्त सेमीकंडक्टर के इस बाजार के तीन बड़े खिलाड़ी है। 25 प्रतिशत बाज़ार कब्जाए हुए दक्षिण कोरिया, 22-22 प्रतिशत पर नियंत्रण जमाए चीन और ताइवान। 13 प्रतिशत पर जापान का कब्जा है, तो उसके बाद 8 प्रतिशत वाले अमरीका का नंबर है। यह बाज़ार अस्थिर माना जाता है। तीन साल पहले 2021 में हमने 76,000 करोड़ रुपये की चिप प्रोत्साहन योजना के साथ सेमीकंडक्टर मिशन की शुरुआत की, केंद्र सरकार ने वादा किया था कि प्लांट की पूंजी लागत का 50 प्रतिशत सब्सिडी के बतौर सरकार वहन करेगी। पर खास विकास नहीं हुआ। इसके बावजूद पांच साल बाद 2026 तक इसका बाजार 35 अरब डॉलर से बढ़कर अनुमानत: 63 अरब डॉलर तक पहुंचने और यही नहीं 2032 तक इसके 100 अरब डॉलर पार होने की भी घोषणा कर दी गई।
अब प्रधानमंत्री के सक्रिय होने के बाद, अमरीका और सिंगापुर से होने वाले समझौते तथा टाटा, अडानी, सीजी पॉवर जैसी देशी कंपनियों के साथ अमरीका की माइक्रॉन, ताइवानी कंपनी पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफ्रेंक्चरिंग कॉरपोरेशन, जापान की रेनेसा तथा थाइलैंड की स्टार्स माइक्रोइलेक्ट्रानिक्स, इज़रायल की टॉवर सरीखी कई विदेशी कंपनियों के आगे आने के बाद इस बात की उम्मीद बंधने लगी है कि भारत सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ेगा और अगले एक दशक के भीतर इसके बाज़ार में अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगा। चिप निर्माण के तीन घटक हैं, कच्चा माल, डिजाइन और फेब्रिकेशन या निर्माण। भारतीय आशा पूरी होने के भी तीन बड़े आधार हैं। पहला देश में आधारभूत सामग्री सिलिकॉन की प्रचुर उपस्थिति, दूसरा डिजाइन के क्षेत्र में बाहर काम कर रही प्रतिभाएं, तीसरा सेमीकंडक्टर उद्यम से सात प्रतिशत जीडीपी कमाने वाले अनुभवी सिंगापुर जैसे देश की सहायता से इस क्षेत्र में प्रतिभा विकास तथा सेमीकंडक्टर इंडस्ट्रियल पार्कों के प्रबंधन के अनुभव साझा होना। फिर सरकार का सक्रिय सहयोग और समर्थन तो है ही, जिसके चलते विदेशी कंपनियां इस ओर आकर्षित हो रही हैं। सरकार का रुख ऐसा ही बना रहा तो देश आने वाले समय में चिप के क्षेत्र में चमत्कार कर सकता है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर