पंजाब पर बढ़ता ऋण का बोझ

पंजाब की आम आदमी पार्टी नीत भगवंत मान की सरकार प्रदेश के राजस्व पर निरन्तर बढ़ते सब्सिडी बोझ को सहन करने में अपनी विफलता के दृष्टिगत इस सीमा तक विवश हो गई है कि वह निरन्तर कज़र् पर कज़र् लेती जा रही है। इसका परिणाम यह निकल रहा है कि एक ओर तो सब्सिडियों का भार और से और बढ़ता जा रहा है, वहीं सरकार को प्रशासन चलाने के लिए जाते कज़र् का आंकड़ा भी 3 लाख 27 हज़ार 251 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। तिस पर सितम यह भी कि इस ऋण का वार्षिक ब्याज ही 27000 करोड़ रुपये से अधिक बन जाता है। सरकार की वित्तीय स्थिति का आलम यह है कि कई बार ब्याज की किश्त न चुका पाने पर उसे चक्र-वृद्धि ब्याज की मार भी सहन करनी पड़ती है। आम आदमी पार्टी की मौजूदा पंजाब सरकार के आय-खर्च वाले राजस्व की स्थिति यह है कि प्रशासन के प्रत्येक कार्य को सुचारू बनाये रखने के लिए नये कज़र्-भार पर निर्भर करना पड़ रहा है। प्रशासनिक खर्च राजस्व आय से अधिक हो जाने पर नौबत यहां तक आ गई है कि भगवंत मान सरकार को अपने शासन के पहले दो वर्षों में अब तक 75,000 करोड़ रुपये से अधिक का कज़र् लेना पड़ा है। इस अनुपात का एक पक्ष यह भी है कि यह सरकार अपने अब तक के दो वर्ष के कार्यकाल में 100 करोड़ रुपया प्रतिदिन के हिसाब से ऋण लेती रही है। स्थिति यहां तक हो गई है कि त्योहारों के मौसम में, अपने खर्चों में संतुलन बनाये रखने के लिए सरकार ने केन्द्र सरकार से 1150 करोड़ रुपये का और कज़र् लेने की अनुमति भी मांगी है। सरकार इससे पूर्व इसी वर्ष जनवरी-फरवरी में 3,899 करोड़ रुपये का कज़र् ले चुकी है। गीले पर फिसलने वाली बात यह भी है, कि भगवंत मान की सरकार की केन्द्र के साथ न बनती होने के बावजूद, उसने लिये जाने वाले ऋण की सीमा बढ़ाये जाने की मांग की थी। केन्द्रीय सूत्रों से पता चला है कि यह सीमा बढ़ाई जा सकती है, और यदि ऐसा होता है, तो प्रदेश पर ऋण की गठरी अधिक भारी होने की आशंका भी बलवती हो जाएगी। लज्जा की बात यह भी है कि सरकार सब कुछ भूल-भाल कर कज़र् लेने के लिए अपनी सम्पत्तियां तक गिरवी रखती जा रही है। मुफ्त बिजली, महिलाओं को मुफ्त बस-यात्रा और सफेद हाथी सिद्ध होते आम आदमी क्लीनिकों ने सब्सिडी के आईने के समक्ष सरकार की सूरत-ए-हाल को बिगाड़ कर रख दिया है।  सरकार ऋण प्राप्त करने के लिए एकाधिक स्रोत ढूंढती रहती है। एक ओर सरकार बैंकों से ऋण लेती है, तो वहीं अन्य वित्तीय संस्थाओं से भी अधिक ब्याज पर ऋण हासिल कर रही है। 
दैनिक प्रशासनिक कार्यों को सुचारू तरीके से चलाने और कर्मचारियों के वेतन और पैन्शन आदि जारी करने के लिए भी सरकार को निरन्तर कज़र् उठाना पड़ रहा है। दूसरी ओर मुफ्त बिजली, कृषि क्षेत्र, उद्योग और अन्य कई सम्बद्ध क्षेत्रों में निरन्तर बढ़ती जाती सब्सिडी राशि भी सरकारी राजस्व के संतुलन  को गड़बड़ा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार विद्युत निगम पर सब्सिडी बोझ को उतारने के लिए लिये गये कज़र् की सीमा रेखा 20,000 करोड़ रुपये से भी अधिक हो गई है। इसी प्रकार कृषि क्षेत्र की सब्सिडी राशि पिछले वर्ष तक 7,375 करोड़ रुपये और औद्योगिक क्षेत्र को दी जाने वाली सहूलियतों के कारण सब्सिडी राशि 2,669 करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। विद्युत निगम को भी इस बोझ से मुक्त होने के लिए और कज़र् उठाना पड़ रहा है। सरकारी प्रशासन की पूर्णरूपेण निर्भरता सब्सिडियों पर हो जाने के कारण अन्य कई क्षेत्रों की सब्सिडी भी वर्ष 2023-24 के दौरान 6,471 करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। इसके अतिरिक्त इसी वर्ष 2023-24 में चुकाये गये ब्याज का आंकड़ा भी 22,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था।
हम समझते हैं कि वर्तमान में पंजाब सरकार की गाड़ी एक असमतल रेल-पटड़ी पर वहां तक आगे बढ़ चुकी है, जहां से उसका वापिस लौट पाना कठिन है, और कि आगे भी पटड़ी टूटी पड़ी है। मुफ्त बस यात्रा, मुफ्त बिजली और सरकारी अदारों द्वारा बिजली की चोरी और बकाया बिलों की अदायगी न किये जाने से स्थिति बेहद खराब होती जा रही है। मुफ्त की रेवड़ियों ने भगवंत मान सरकार को दीवालियापन के कगार तक धकेल दिया है। नि:संदेह इस रोगी एवं अक्षम हो गई सरकार को पुन: अपने पांवों पर खड़ा करने के लिए एक बड़े आप्रेशन की बड़ी ज़रूरत है। इस अवश्यम्भावी आप्रेशन को कौन अंजाम देगा, और कि इसे कैसे अंजाम दिया जाता है, यह निकट भविष्य में देखने वाली बात होगी। हम समझते हैं कि सरकार द्वारा कज़र् लेकर घी पीने की यह प्रवृत्ति यदि इसी प्रकार जारी रहती है, तो कोई भी जीवन-रक्षक प्रणाली इसे नव-जीवन प्रदान करने में सक्षम नहीं हो सकेगी।