देश के विकास पर जनसंख्या का दबाव 

भारत के विकास पर जनसंख्या का भारी दबाव है उस पर उसके संसाधन तथा उत्पादन के संतुलन में 141 करोड़ की जनसंख्या भारी पड़ती है। देश में इतनी बड़ी जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संसाधन बहुत ही सीमित और न्यून है, इन परिस्थितियों में देश को अपने उपलब्ध कृषि, जल, खनिज तथा अन्य संसाधनों का उचित ढंग दोहन कर आर्थिक स्थिति को सुधारना होगा और इसके लिए हमें आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक एवं अन्य अनुसंधान का सहारा लेना होगा। तब जाकर देश आर्थिक स्थिति का संतुलन जनसंख्या के अनुपात में समानुपातिक हो पाएगा और परिणाम स्वरूप गरीबी तथा भुखमरी से कुछ हद तक निजात पाई जा सकती है। सदियों से हर समाज गरीबी की कठिन परिस्थिति का सामना करता रहा है। गरीबी किसी मनुष्य को इस कदर मजबूर कर देती है कि वह अपने जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है। इसके कारण भुखमरी, कुपोषण और बेरोज़गारी जैसी न जाने कितनी समस्या गरीब व्यक्ति झेलता है। अनेक अर्थ शास्त्रियों ने अपने अलग-अलग मत व सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में लिखा है कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित देखना चाहिए। इसीलिए अशोक महान से लेकर अकबर और वर्तमान प्रजातंत्र में हर प्रधानमंत्री गरीबी हटाने के मूल मंत्र को लेकर आगे विकास की रूपरेखा तय करते हैं। आधुनिक काल में जब शासन कल्याणकारी बनने लगा तो जनता का हित सर्वोच्च लक्ष्य बन गया और गरीबी हटाने का अभियान ज़ोर-शोर से चलने लगे, इसमें काफी हद तक सफलता भी प्राप्त हुई है। जापान आज की स्थिति में विकसित राष्ट्र माना जाता है, परन्तु उसे देख कर आश्यर्य होता है कि यह एक ऐसा देश है जिसके पास न तो पर्याप्त प्राकृतिक साधन है न ही सुरक्षित निवास स्थान फिर भी लगातार दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होता है। द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद यह देश न जाने कितने भूकम्प और प्राकृतिक आपदाओं का सामना निरन्तर करता आया है, इसके बावजूद जापान सफल समृद्धि तथा गौरवशाली राष्ट्र बन चुका है। नि:संदेह इसके पीछे वैज्ञानिक तकनीक का वृहद तथा व्यापक प्रयोग ही है। दूसरी तरफ एशिया, अफ्रीका के कई देश हैं, जिनके पास भरपूर प्राकृतिक संसाधन हैं, वे आज भी गरीबी को नहीं हटा पाए। इसका एक बड़ा कारण पुरानी शैली पर टिका हुआ विकास है। विज्ञान अपनी क्षमता से विकास के हर क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की ताकत रखता है। कई पश्चिमी देश साधन विहीन होने के बावजूद अत्यंत विकसित एवं सम्पन्न राष्ट्र बने हैं। यह तो तय है कि गरीबी का निवारण वैज्ञानिक तकनीक के बिना संभव नहीं है। इसीलिए वैश्विक स्तर पर अब विज्ञान आधारित विकास से गरीबी मिटाने तथा विकास की नई इबारत लिखने की प्रतिस्पर्धा बढ़ चुकी है। गरीबी का सबसे भयानक रूप भुखमरी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है किंतु अब विज्ञान के प्रयोग से काफी कम हो चुकी है। भारत जैसा विशाल जनसंख्या वाला देश कभी भूख से कराह रहा था, परन्तु आज अनाज का निर्यातक बन कर 141 करोड़ जनता का पेट भी भर रहा है और अनाज निर्यात भी कर रहा है। भारत ने कृषि में नवीन यंत्रों को विकसित करके तथा वैज्ञानिक प्रयोगों से हरित क्रांति लाने में सफलता प्राप्त की। अब भारत में पर्याप्त अन्न का भंडार भारतीय जनमानस के लिए उपलब्ध है। नि:संदेह यह वैज्ञानिक तकनीक और दृढ़ संकल्प का ही परिणाम है। इसी तरह मानव के विकास की अहम आवश्यकता शिक्षा और कौशल तकनीक भी गरीबी निवारण के लिए अपरिहार्य बन गई है। विज्ञान आधारित विकास के तहत औद्योगिक क्षेत्र में रोज़गार के अनेक अवसर पैदा किए जा सकते हैं। गरीबी हटाने व रोज़गार देने में विज्ञान का काफी योगदान है। लगातार बढ़ती अर्थ-व्यवस्था में कौशल प्राप्त कर गरीब युवा भी बेहतर रोज़गार प्राप्त कर सकता है। सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र ही नहीं बल्कि प्रशासनिक, राजनीतिक क्षेत्र भी वैज्ञानिक तकनीक से गरीबी मिटाने हेतु प्रयत्नशील है। अब इस बात की ज़रूरत है कि दुनिया के विकास के मॉडलों में सामाजिक नैतिक मूल्यों, कमज़ोर वर्गों के प्रति करुणा, विविध धर्म, संप्रदाय आदि के सम्मान जैसी बातें भी शामिल हो। अब विकास का ऐसा मॉडल विकसित हो जाना चाहिए जो समाज को पर्यावरण प्रेम, कर्त्तव्य,  मानवीय नैतिक मूल्यों का भी पाठ पढ़ाए ताकि पूरे समाज के विकास एक साथ हो सके। दुनिया के हर महत्वपूर्ण अर्थशास्त्री विकास के मॉडल में विज्ञान की तकनीकी का प्रयोग अत्यंत एवं आवश्यक मानते हैं।
विज्ञान की अथाह क्षमता तथा शक्ति का सदुपयोग विकास के पथ को सरल तथा उच्च उत्पादकता वाला बनाना होगा। गरीबी की दर्दनाक पीड़ा पर यह मरहम लगाकर उसे हटाने का बेहतर साधन भी बन सकता है। वैज्ञानिक तकनीक के साथ यदि मानवीय संवेदनाओं का समावेश हो तो यह कई गुना अधिक सफलता मिल सकती है। ऐसे में धन कमाने और शोषण करने की प्रवृत्ति की बजाय सब का एक साथ विकास करने की सोच से ही कोई राष्ट्र गरीबी को हटाने में सफल हो सकता है। 
 

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