झारखंड चुनाव : अपना घर संभालने में जुटी भाजपा

झारखंड में भाजपा को बड़े पैमाने पर बगावत का सामना करना पड़ रहा है। राज्य की लगभग आधी सीटों पर बागी और नाराज नेता उसकी परेशानी का सबब बने हुए हैं। कई बागी नेता ताल ठोक कर पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ  मैदान आ डटे हैं तो कई नेता नाराज होकर घर बैठ गए हैं और कुछ ने तो पार्टी ही छोड़ दी है। दूसरे कई राज्यों में पार्टी के नेताओं की बगावत या नाराजगी से हुए नुकसान को ध्यान में रखते हुए भाजपा के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह और सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा बागी और नाराज नेताओं की मान-मनौव्वल में लगे हैं। पार्टी से दूर चले गए नेताओं को वापस लाकर संगठन में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी जा रही है। इसकी शुरुआत सरयू राय से हुई थी। पिछले चुनाव में टिकट कटने से नाराज सरयू राय तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ  लड़े थे और उनको हरा दिया था। तब से सरयू राय पार्टी से बाहर थे, लेकिन ऐन चुनाव से पहले भाजपा के आला नेताओं की सहमति से उन्हें जनता दल (यू) में शामिल कराया गया और उनकी पुरानी जमशेदपुर पश्चिम सीट जनता दल (यू) के लिए छोड़ी गई ताकि वह वहां से लड़े। उनके साथ ही जमशेदपुर के नेता और पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले भी पार्टी से दूर हो गए थे, लेकिन अब उनकी भी पार्टी में एंट्री हो गई है। हालांकि अब भी भाजपा के अनेक नेता नाराज हैं, लेकिन जो नेता नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं, उन्हें मनाया जा रहा है।
गिरिराज की यात्रा
केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिह इस समय बिहार में ‘हिन्दू स्वाभिमान’ यात्रा कर रहे हैं। अपनी इस यात्रा के दौरान वह खुलेआम भड़काऊ भाषण दे रहे हैं। यात्रा शुरू करते हुए उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि वह जातीय समीकरण देख कर चुनाव लड़ें, जबकि वह हिंदू होकर चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने कहा कि वह चाहते थे कि किशनगंज से चुनाव लड़ें भले हार जाएं। गौरतलब है कि किशनगंज में 80 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। अब सवाल है कि उन्हें हिन्दू होकर लड़ने से किसने रोका? वह तीन बार से अपनी जाति की बहुलता वाली बेगूसराय सीट से लड़ रहे हैं। बहरहाल वे जो कुछ बोल रहे हैं, उस पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मौन है, यानी गिरिराज सिंह की यात्रा को उसका मौन समर्थन है। यह पहला मौका है जब केंद्रीय मंत्री के रूप में संवैधानिक पद पर रहते हुए कोई व्यक्ति इस तरह की सांप्रदायिक विभाजनकारी बातें कर रहा है। गिरिराज सिंह की यात्रा को लेकर राज्य में विवाद हो रहा है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने इस यात्रा के खिलाफ मोर्चा खोला है। पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने भी गिरिराज सिंह को चुनौती देते हुए कहा है, ‘यात्रा मेरी लाश पर से होकर गुजरेगी।’ सबको पता है कि मुस्लिम आबादी बहुल सीमांचल में यात्रा का मकसद पूरे प्रदेश मेें सांप्रदायिक विभाजन का माहौल बनाना है। 
 रेल हादसों के पीछे कौन?
भाजपा की सरकार में किस तरह से नैरेटिव बदल जाते हैं, इसकी मिसाल ट्रेन दुर्घटनाएं है। ट्रेन दुर्घटनाएं पहले भी होती थीं लेकिन शायद ही कभी कहा गया हो कि साज़िश के तहत दुर्घटना कराई गई है। भाजपा की सरकार में भी काफी समय तक ऐसा नहीं कहा जाता था, लेकिन आईएएस अधिकारी रहे अश्विनी वैष्णव जब से रेल मंत्री हुए हैं, तब से इन हादसों का पूरा नैरेटिव बदल गया है। अब कहीं भी ट्रेन हादसा होता है तो उसमें हताहत हुए लोगों के बारे में सूचना से पहले यह खबर आती है कि ट्रेन दुर्घटना को साज़िश के तहत अंजाम दिया गया है। पहले ट्रेन दुर्घटना होने पर खबर आती थी कि कितने डिब्बे पटरी से उतरे, कितने लोग घायल हुए, कितने लोग मरे, कितनी ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं, हेल्पलाइन नंबर क्या है आदि, लेकिन अब ये खबरें नहीं आती हैं। अब एक लाइन में बता दिया जाता है कि साजिश के तहत ट्रेन दुर्घटना कराई गई। असल मेें जब से रेल मंत्री ने ट्रेन दुर्घटना को छोटी घटना करार दिया, तब से सोशल मीडिया मेें हर छोटी-बड़ी या यात्री और मालगाड़ी के डिब्बे पटरी से उतरने या किसी और हादसे को रेल मंत्री की जुबान में छोटी घटना बता कर सोशल मीडिया में उसे वायरल किया जाने लगा। थोड़े दिन तो रेल मंत्री और उनकी पीआर टीम ने इसको देखा और जब लगा कि इससे धारणा प्रभावित हो रही है तो तुरंत इसकी काट के तौर पर साजिश का पहलू जोड़ दिया गया। 
मणिपुर में मुख्यमंत्री बदलेगी भाजपा 
भाजपा मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा होता है तो यह बड़ी बात होगी। पिछले दिनों मणिपुर के 19 विधायकों ने बीरेन सिंह को हटाने के लिए एक चिट्ठी पार्टी आलाकमान को लिखी है। इसमें भाजपा के भी विधायक हैं और मैतेई समुदाय के विधायक भी हैं, जिनका प्रतिनिधित्व बीरेन सिंह करते हैं। पहले सिर्फ कुकी विधायक उन्हें हटाने की मांग कर रहे थे, लेकिन अब कुकी, मैतेई और नागा तीनों समुदायों के विधायक चाहते हैं कि बीरेन सिंह को हटाया जाए। हालांकि खुद बीरेन सिंह ने अपने हटाए जाने की खबरों को अफवाह बता कर खारिज कर दिया है लेकिन जानकार सूत्रों के मुताबिक 19 विधायकों ने भाजपा आलाकमान की हरी झंडी मिलने के बाद ही चिट्टी लिखी है। पिछले दिनों दिल्ली में पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ विधायकों की बैठक हुई थी, जिसके बाद यह अभियान शुरू हुआ। कहा जा रहा है कि विश्व मैतेई परिषद ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि मणिपुर मेें शांति बहाली के लिए कोई पहल की जाए। बीरेन सिंह को हटाए जाने की स्थिति में नए मुख्यमंत्री के लिए विधानसभा स्पीकर थोकचम सत्यब्रत सिंह के अलावा थोगम बिस्वजीत सिंह, युमनान खेमचंद सिंह और गोविंद दास सिंह के नाम की चर्चा है। यह नहीं कहा जा सकता है कि फैसला कब होगा लेकिन संभावित मुख्यमंत्री के नामों की चर्चा शुरू हो गई है तो इसका मतलब है कि बदलाव होने वाला है।
 हरियाणा ने तेलंगाना को पीछे छोड़ा
कांग्रेस में जिस तरह फैसले होते हैं और कांग्रेस की सरकारें जिस तरह से काम करती हैं, उस पर हैरानी होती है। जिस दिन सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि अनुसूचित जाति होमोजेनस यानी समरूप नहीं है और इसमें भी जो ज्यादा पिछड़े और वंचित हैं उन्हें आरक्षण का लाभ देने के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण दिया जा सकता है तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा था कि इस फैसले को लागू करने वाला पहला राज्य तेलंगाना बनेगा। तब इस पर सवाल भी उठाए गये थे लेकिन सबको पता है कि तेलंगाना में मडिगा और कुछ अन्य दलित समुदाय ऐसे हैं, जो आरक्षण के लाभ से वंचित हैं और बरसों से आरक्षण में वर्गीकरण की मांग कर रहे हैं। पंजाब से लेकर बिहार तक इस तरह की मांग है, लेकिन मजबूत दलित जातियों ने वर्गीकरण का विरोध किया तो कांग्रेस बैकफुट पर आ गई। इस बीच हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए तो साफ.-साफ  वर्गीकरण दिखाई दिया। एक बड़ा समुदाय अलग-अलग कारणों से भाजपा के साथ गया। जीत कर भाजपा ने सरकार बनाई तो मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले को लागू कर दिया और कहा कि अनुसूचित जाति को मिलने वाले 20 फीसदी आरक्षण में आधा यानी 10 फीसदी उन 36 जातियों को मिलेगा, जिन्हें अब तक सबसे कम लाभ मिला है। लेकिन उधर तेलंगाना सरकार बयान देने के बाद से अभी कमेटी ही बना रही है।