गम्भीर संकट की ओर बढ़ रहा पंजाब

इस समय प्रदेश में सबसे बड़ा मामला धान की उठान का बना हुआ है। पिछले तीन सप्ताह से फसल मंडियों में आ रही है परन्तु कई कारणों के दृष्टिगत इसकी उठान नहीं हो रही, जिससे किसान की बेसब्री बढ़ती जा रही है। आगामी दिनों में भी धान के मंडीकरण संबंधी कुछ विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता। इस संबंध में किसान संगठनों की प्रशासन के साथ कई बैठकें हो चुकी हैं। कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री ने भी किसानों के प्रतिनिधिमंडल को यह विश्वास दिलाया  था कि आगामी दो दिनों में इस गम्भीर होते जाते मामले को सुलझा लिया जाएगा, परन्तु वह अब तक अपने यत्नों में सफल नहीं हुए, जिससे मंडियों में धान के अम्बार निरन्तर बढ़ते जा रहे हैं। किसानों की चिन्ता बढ़ती जा रही है। सरकार की इस मामले में असफलता जग-ज़ाहिर हो रही है। यह भी कहा जा रहा है कि पहले कभी इस तरह मंडियों में धान की बेकद्री नहीं हुई थी। मंडियों में पहुंची फसल के अतिरिक्त अभी तक पक चुकी फसल खेतों में भी खड़ी है। यदि उसकी सम्भाल नहीं की जाती तो उसके भी खराब होने की आशंका बन गई है।
धान एक ऐसी फसल है, जो अनिश्चित काल तक न खेतों में खड़ी रखी जा सकती है तथा न ही उसे किसानों द्वारा घरों में रखा जा सकता है। मंडियों में खरीद के बाद यदि उठान नहीं होती तो भी संकट पैदा हो जाता है। चाहे चावल तैयार होने के बाद यह लम्बी अवधि तक खराब नहीं होते परन्तु इनकी गुणवत्ता में भारी अन्तर ज़रूर आ जाता है। शैलर मालिक भी परेशान दिखाई देते हैं। आढ़ती वर्ग भी सरकारी नीतियों से बहुत सीमा तक नाराज़ हुआ प्रतीत होता है। किसान मंडियों में पड़ी फसल की रक्षा करता हुआ दिन एवं रातें गुज़ार रहा है। पैदा हुई ऐसी अनिश्चितता एवं बेसब्री कब खत्म होगी, इस संबंध में अभी तक तस्वीर स्पष्ट नहीं हो सकी। ऐसी स्थिति बड़ी अशांति को जन्म देने वाली सिद्ध हो सकती है। ऐसे हालात में सरकार के साथ-साथ बड़े राजनीतिक दलों का भी यह फज़र् बन जाता है कि वे आपस में एकजुट होकर गम्भीर होते जाते इस मामले के हल हेतु विचार करें। इस संबंध में केन्द्र सरकार के साथ शीघ्र सम्पर्क किया जाना भी ज़रूरी है। केन्द्र सरकार की चाहे कोई भी सोच हो, या फसल को निपटने में कैसी भी समस्याएं हों, तो भी उसे हर स्थिति में संबंधित पक्षों के साथ सम्पर्क बना कर फसल को सम्भालने की तत्परता दिखानी चाहिए।
पिछले दिनों से जिस तरह राजमार्गों पर किसान संगठनों की ओर से धरने लगाए जा रहे हैं, उससे जन-साधारण की परेशानी में बेहद वृद्धि हुई है। प्रतिदिन के ऐसे घटनाक्रम से उनके गिले-शिकवे भी बढ़ते जा रहे हैं। विगत अवधि में पंजाब की प्रत्येक पक्ष से समस्याओं में वृद्धि हुई है, जिससे प्रदेश को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसकी आर्थिकता डावांडोल होती जा रही है। किसानी मुद्दा भी आर्थिकता के साथ ही जुड़ा हुआ है। इसके प्रति  प्रदेश सरकार की जो कमियां सामने आई हैं, उन्हें भी शीघ्र दूर किये जाने की जरूरत होगी। प्रशासन की जवाबदेही तथा गतिशीलता इस गम्भीर मामले के हल में सहायक हो सकती है, जिसकी बड़ी ज़िम्मेदारी प्रशासन चला रही पार्टी पर ही आती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द