एवरेस्ट का एक रोचक रहस्य!

जनरल नॉलेज के इस सबसे लोकप्रिय सवाल का जवाब दुनिया के हर बच्चे को रटा हुआ है कि 29 मई, 1953 की सुबह 11:30 बजे न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और दार्जिलिंग के शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने पहली बार धरती की इस सबसे ऊंची चोटी के शिखर पर कदम रखा था। लेकिन अब इस जवाब के सामने सवालिया निशान लग गये हैं। दरअसल पिछले दिनों (अक्तूबर 2024 में ही) नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका की एक डाक्यूमेंट्री टीम ने माउंट एवरेस्ट पर कुछ मानव अवशेष खोजे हैं, जो संभवत: उस व्यक्ति के हैं, जिसके बारे में समझा जाता है कि 100 साल पहले माउंट एवरेस्ट की चोटी पर सबसे पहले पहुंचने वाला शख्स यही था। जी हां, ये अवशेष ब्रिटिश नागरिक एंड्रयू इरविन के समझे जा रहे हैं। साल 1924 में अपने साथी जॉर्ज मैलोरी के साथ इरविन उस समय लापता हो गये थे, जब वह समुद्रतल से 8,848 मीटर (29,029 फीट) ऊपर एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति बनने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन सच और झूठ के बीच लगभग 100 सालों से एक अनुमान झूल रहा है कि ये माउंट एवरेस्ट को फतेह किया था या नहीं? इस सवाल से पर्दा उठने की संभावना साल 1999 में तब पैदा हुई थी, जब ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघल रही माउंट एवरेस्ट की बर्फ में मैलोरी का शव मिला था। इससे यह उम्मीद बंधी कि जल्द ही एंड्रयू इरविन का भी शव मिल जायेगा और उस रहस्य से पर्दा उठ जायेगा कि आखिर माउंट एवरेस्ट की चोटी पर सबसे पहले पहुंचने वाला पर्वतारोही कौन थे?
लेकिन यह उम्मीद, उम्मीद ही रही क्योंकि तब बहुत कोशिशों के बाद भी एंड्रयू इरविन का शव नहीं मिला। लेकिन इसी महीने (अक्तूबर, 2024) एंड्रयू इरविन के भाग्य के बारे में सुराग तब मिला, एक डाक्यूमेंट्री शूट कर रही नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका की टीम को एवरेस्ट चोटी के सेंट्रल रोंगबुक ग्लेशियर पर एक बूट मिला, जो अभी भी दूसरे बूट के रहस्य से ढंका हुआ था। बहरहाल जब मैगजीन की टीम ने करीब से जांच की, तो उन्हें एक मोजा भी मिला जिस पर एक लाल लेबल लगा हुआ था और उसमें लिखा था, ‘ए.सी. इरविन।’ इस मोजे ने इस उम्मीद की धड़कने बढ़ा दी हैं, जिसकी बदौलत जल्द ही दुनिया को उस सच का पता चल सकता है कि माउंट एवरेस्ट को फतेह करने वाली पर्वतारोहियों की पहली जोड़ी कौन थी? इरविन और मैलोरी की या फिर जैसा कि हम सब आजतक जानते हैं कि एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे। 
अगर जल्द ही एंड्रयू इरविन से संबंधित और भी चीजें मिलती हैं, जो साबित करती हैं कि करीब एक शताब्दी पहले यानी कि एवरेस्ट फतेह के ऐतिहासिक साल 1953 से 30 साल पहले यह जोड़ी एवरेस्ट चोटी तक पहुंच गई थी, तो सालों से एवरेस्ट चोटी के फतेह संबंधी सामान्य ज्ञान के सवाल का जवाब बदल जायेगा। सबसे पहले एंड्रयू इरविन के कहे जाने वाले मानव अवशेषों के डीएनए का परीक्षण उस परिवार के लोगों के साथ होगा, जो कि एंड्रयू इरविन के परिवार से हैं और अगर यह डीएनए मिल जाता है तो एक सदी से लापता उस कहानी का सुराग मिल जायेगा, जिसके गर्भ में माउंट एवरेस्ट का सबसे बड़ा रहस्य छुपा हुआ है। गौरतलब है कि 8 जून, 1924 की दोपहर को 22 वर्ष के एंड्रयू इरविन को उनके पर्वतारोही अभियान के सदस्यों के साथ देखा गया था। इस दिन सुबह को अपनी अंतिम चढ़ाई शुरु करने के बाद दस्तावेज बताते हैं कि इरविन अपने साथ एक बनियान कैमरा ले जा रहे थे, अब जोर-शोर से उस कैमरे की खोज की जा रही है, अगर यह मिल गया तो पर्वतारोहण का इतिहास बदल जायेगा। नेशनल ज्योग्राफिक की डाक्यूमेंट्री टीम के फोटोग्राफर और निर्देशक जिमी चिन कहते हैं कि इन अवशेषों और सिंगल ‘ग्रीन बूट’ हासिल होने के बाद उस मायावी कैमरे के मिलने की उम्मीदें बढ़ गई हैं जो समझा जाता है कि एंड्रयू इरविन के पास था। क्योंकि अब निश्चित रूप से इसकी खोज का दायरा पहले से कहीं ज्यादा सीमित हो गया है। मालूम हो कि 1920 के दशक से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने का जो सिलसिला कुछ साहसी पर्वतारोहियों ने शुरु किया था, उनमें से सैकड़ों इस अभियान के बाद वापस नहीं लौटे। अनुमान है कि अब तक 300 से ज्यादा पर्वतारोही इस सफर को तय करने के रास्ते में हमेशा के लिए मौत की नींद सो गये हैं। कुछ लोग भयानक बर्फीले तूफानों के कारण बर्फ की परत में तह बन गये हैं, तो कई दुर्भाग्यशाली पर्वतारोही एवरेस्ट चोटी की भयावह दरारों में हमेशा के लिए समा गये हैं। बावजूद इसके दुनियाभर के पर्वतारोहियों के एवरेस्ट फतेह का यह रोमांच कम नहीं हुआ, जिस कारण आज भी यह जोखिमभरा सफर जारी है और इस फतेह की तमन्ना लिए कई पर्वतारोहियों का इस सफर में मील का पत्थर या ‘ग्रीन बूट्स’ बनना भी जारी है, जिनकी आत्माएं नये दुस्साहसी पर्वतारोहियों का पथ प्रदर्शन करती हैं।
माउंट एवरेस्ट चोटी के रास्ते में पर्वतारोहियों के शव बिखरे पड़े हैं, क्योंकि हर साल कई पर्वतारोही इस यात्रा के दौरान अपनी जान गंवा देते हैं। कठिन परिस्थितियां और मौसम की दुश्वारियों तथा ऑक्सीजन की कमी के कारण न सिर्फ पर्वतारोही मारे जाते हैं बल्कि उनके शवों को नीचे लाना भी मुश्किल हो जाता है। इस कारण कई पर्वतारोहियों के शव दशकों से यहां की बर्फ में दबे हुए हैं और कईयों के खुले में पड़े हुए हैं। उन्हें नीचे लाने के लिए अत्याधिक प्रयास, संसाधनों और जोखिम की आवश्यकता होती है। यहां तक कि कई पर्वतारोहियों के शव तो लैंडमार्क के रूप में भी इस्तेमाल किए जाते हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों में कुछ शवों को हटाने के प्रयास किए गये हैं, लेकिन यह काफी चुनौतीपूर्ण और खर्चीला है। खैर, एंड्रयू इरविन के शव के जरिये जिस कहानी से सबसे पहले माउंट एवरेस्ट को फतेह करने वाली शख्सियत का पर्दा उठने वाला है, उस एंड्रयू इरविन को उनके साथी जॉर्ज मैलोरी के साथ 8 जून, 2024 को एवरेस्ट के नॉर्थ फेस के पास देखा गया था। लेकिन इससे अभी तक यह तय कर पाना मुश्किल है कि उन्होंने एवरेस्ट की चोटी तक अपनी चढ़ाई पूरी कर ली थी या नहीं। अगर खोया हुआ कैमरा मिल जाता है तो इस कहानी से पर्दा उठना आसान हो जायेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर