दीपावली में पड़ोसी प्रेम

चौपट लाल आज कल सुबह-सुबह जब अपने घर से बाहर निकलते हैं तो मोहल्ले के हर एक पड़ोसी को बड़े ही प्यार और आदर से नमस्कार-नमस्कार करते हैं। ये दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है। उनकी यह अच्छाई देखकर पड़ोसी भी हैरान है। क्योंकि वह पूरे साल तो अपने पड़ोसियों को बुरा-भला कहते रहते हैं। किसी से सीधे मुंह बात नहीं करते, किसी के घर नहीं आते जाते हैं, कोई मुस्कुरा कर देखें तो मुंह बिचका लेते हैं। अगर कोई सुबह-सुबह छेड़ दे तो उसकी शामत आ जाती है। तो ऐसा घोर परिवर्तन देखकर आश्चर्य होना सभी स्वाभाविक ही है। लेकिन इसके साथ ही यह भी आश्चर्य है। वह सब को प्रणाम करते है बस चतुरी जी छोड़कर। अब चतुरी जी में जाने कौन से कांटे लगे यह तो ईश्वर ही जान सकता है। सबके जैसा व्यवहार चतुरी जी के साथ करते तो कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। पर सबसे अलग व्यवहार ही जिज्ञासा का कारण था।
तो चतुरी जी चौपट लाल से पूछ लिया, ‘चौपट भैया आजकल पड़ोसियों से बड़े ही रिश्ते सुधरे जा रहे हैं क्या बात है?’
चौपट लाल अपनी चतुररंगी मुस्कान बिखेर कर बोले- ‘वक्त पर गदहो को भी बाप बनाना पड़ता है।’
‘अर्थात’।
‘अर्थात क्या ...बस समझ लीजिए’।
‘चौपट भैया इतने समझदार नहीं है... कृपया समझाइए’।
‘अरे भाई दिवाली आ रही है और मुझे लंबी वाली सीढ़ी  की ज़रूरत है... तो 1 दिन के लिए कौन खरीदने जाता है, इसीलिए आज सुबह-सुबह गुप्ता जी को प्रणाम कर रहा था’।
‘लेकिन कल आपने पांडे जी को भी प्रणाम किया था?’
‘हां तो वह अभी नया-नया झोल साफ करने वाले लंबे झाडू खरीद कर लाए हैं’ अपनी कुटिल मुस्कान गहरी करते हुए चौपट भैया बोले।
‘चलिए यह सब तो ठीक है ...लेकिन आपने मुझे कभी क्यों नहीं प्रणाम किया’ चतुरी जी ना चाहते हुए भी अपना थोड़ा सा क्षोभ जता ही दिया। आखिर उन्हें बहुत बुरा लगा था।
‘तुम्हें नमस्कार करके क्या करना है... तुम्हारे पास है ही क्या जो तुम मुझे दोगे... खाली पीली का व्यंग्य लिखते रहते हो... ना किसी काम का न काज का... तुम्हारे व्यंग्य से ना मेरे झोल साफ होंगे ना मेरे घर की सफाई होगी, और मैंने खुद देखा था तुम्हें उनसे स्टूल और झाड़ू मांगते हुए’ अपनी कुटिल मुस्कान संग खींसे निपोरते हुए बोले।
समझ में आ गया उनका सारा गणित... इतने अपमान के बाद अब बैठे रहना मुश्किल हो गया... और ज्यादा अपमान हो उससे पहले निकलने में ही भलाई समझ लिए।


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