कला की नगरी कहलाने वाली चम्बा घाटी

हिमाचल प्रदेश में बसा एक खूबसूरत स्थान है चम्बा। इस नगरी से मुझे बहुत लगाव रहा है इसीलिए हर वर्ष जुलाई-अगस्त में जब वहां मिंजर मेला लगता था, मैं कुछ दिनों के लिए वहीं रहता था। चम्बा जाने के लिए दिल्ली से रेल द्वारा चक्की बैंक, पठानकोट, पठानकोट से घुमावदार पहाड़ी रास्तों से गुजरते हुए बस आगे बढ़ती है तो प्रकृति के दृश्यों का नज़ारा देखने को मिलता है। मनोरम पर्यटन स्थली, मंदिरों की नगरी, कला नगरी आदि नामों से मशहूर चम्बा रावी नदी के तट पर बसा है।
मेरा अनुमान है कि इस धरती की नैसर्गिक खूबसूरती और यहां की विविधताओं को देख कर ही किसी ने इसे अचंभा कह कर पुकारा होगा जो बाद में अचंभा से चम्बा हो गया। वैसे किदवंती है कि राजा साहिल वर्मा ने इस शहर को बसाया। राजा की पुत्री चम्पावती के नाम पर चम्बा पड़ा।
 कला की नगरी कहलाने वाली चम्बा घाटी को अतीत में यहां के कई कलाप्रिय राजाओं ने इस तरह संवारा कि इसकी ख्याति पूरे देश में फैल गई। इन राजाओं के काल में यहां की लोक कलाएं अत्याधिक विकसित हुई। यहां की वास्तुकला, भित्ति चित्रकला, काष्ठकला व 

मूर्तिकला अपने आप में बेजोड़ हैं। चम्बा की कला ने पूरी दुनिया में अपनी एक विशेष पहचान बनाई। यहां के मंदिरों का शंखनाद, शहर का हराभरा चौगान, ढलवां छत वाले महलों का वास्तुशिल्प आने वालों का मनमोह लेते हैं।
यहां से डलहौजी के लिए भी रास्ता कटता है। लार्ड डलहौजी को यहां का सौंदर्य इतना भाया कि उन्होंने इसे अपना ठिकाना ही बना लिया। बस स्टैंड से उतरते ही यानी चम्बा पहुंचते ही प्राचीन काल के रजवाड़ों की याद ताजा हो जाती है। यहां के प्राचीन रंगमहल व अखंडचम्डी महल में घूमते हुए अतीत की तस्वीरें साफ-साफ देखी जा सकती है। चम्बा के ग्रामीण लोग सीधे-साधे होते हैं। त्यौहार आदि अवसरों पर पूरी चम्बा घाटी पहाड़ी 

संगीत और नृत्यों से गूंज उठती है।  चम्बा पहुंचते ही बस स्टैंड के पास विशाल मैदान है जिसे चौगान कहा जाता है। चौगान एक प्रसिद्ध व ऐतिहासिक स्थल है। चौगान अरबी का शब्द है जिसका अर्थ है कि शहर के बीचोबीच हरे घास का मैदान। चौगान चम्बा की सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों का भी मुख्य केन्द्र है। ऐतिहासिक मणि महेश की छड़ी यात्रा पर जाने वाले अधिकांश यात्री रात्रि को यहीं पर पड़ाव डालते हैं और प्रात: गंतव्य की ओर रवाना होते हैं। इसी मैदान में लगता है महीने भर चलने वाला मिंजर मेला।
मिंजर मेले के दौरान देश- विदेश से हजारों लोग यहां आते हैं। रात में चलने वाले इस उत्सव के दौरान देश के जाने-माने कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है। मेले में स्थानीय जनजाति युवक-युवतियों को परम्परागत वेशभूषा में मस्ती से डफली जैसा कुछ बजाते हुए नृत्य करते देखना एक अदभुत अनुभव है। मेले के दौरान लोग टोपी पहने कान पर एक विशेष प्रकार का धागा जिसमें कुछ परम्परागत सजावट की वस्तुएं होती है, टांगते हैं। चौगान के आसपास होटल उपलब्ध हैं। पास ही नदी बहती है जिसके किनारे किसी झरने के नीचे बैठकर नहाने के आनंद को स्वयं ही अनुभव किया जा सकता है।
कुछ दूरी पर एक पहाड़ी पगडंडी है जो चौमुंडा मंदिर की ओर ले जाती है। लकड़ी का बना यह मंदिर विश्व की संरक्षित धरोहर घोषित है। अपने प्रवास के दौरान हर सुबह अंधेरे ही सैंकड़ाें सीढ़ियां चढ़कर पुजारी के आने से पहले ही मैं मंदिर के सामने विशाल पत्थर पर जा बैठता। यहां से चम्बा का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। आस-पास फलों के बाग हैं जिनमें सेब, खुमानी, आडू प्रमुख हैं। धीरे-धीरे यहां की हरियाली को पत्थरों की अट्टालिकाएं निगल रही हैं जिसके कारण यहां का वातावरण प्रभावित हो रहा है। यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलाें में शामिल हैं-
भूरी सिंह संग्रहालय : यह देश के प्रमुख प्राचीन संग्रहालयों में एक है। शहर के ऐतिहासिक चौगान के सामने स्थित यह संग्रहालय विश्व भर के पर्यटकों, शोधार्थियों व कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इस संग्रहालय का निर्माण चम्बा नरेश भूरी सिंह ने डच विद्वान डा. फोगल की प्रेरणा से करवाया था और वही इसके पहले संग्रहालयाध्यक्ष थे। यहां चम्बा की पेंटिंग्स व रंगमहल में आग से क्षतिग्रस्त हुई दीवार के चित्र भी दिखाई देती हैं। 
पनघट शिलाएं : चम्बा की कलात्मक धरोहरों में पनघट शिलाओं को भी शामिल किया जाता है। ये शिलाएं चम्बा जनपद के ग्रामीण अंचलों में बनी बावड़ियों में व ‘नौणा’ जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों के किनारे आज भी देखी जा सकती हैं। इन शिलाओं के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि यह 12वीं शताब्दी के आसपास की हैं। ये शिलाएं पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। 
रंगमहल : चम्बा के रंगमहल को देखने बड़ी संख्या में प्रर्यटक आते हैं। रंगमहल में दीवार पर चित्रकारी के बेहतरीन नमूने सभी को प्रभावित करते हैं। रंगमहल परिसर में हिमाचल हस्तकला निगम का कार्यालय है। उसी भवन में  एक इंपोरियम भी है जहां चम्बा की कशीदाकारी और हस्तशिल्प के कई नमूने देखने को मिलते हैं। यहीं निपुण कारीगर तैयार करने के लिए काष्ठशिल्प प्रशिक्षण केन्द्र भी है। 
अखंडचंडी महल : चम्बा को कलात्मक रूप से अधिक समृद्ध माना जाता है। अखंडचंडी महल चम्बा की कलात्मक धरोहर का बेहतरीन नमूना है। यह महल ऐतिहासिक स्मारक होने के साथ-साथ अनूठे वास्तु, स्थापत्य व चित्रकला के लिए भी प्रसिद्ध है। इसे कई राजाओं ने संवारा है। 
खजियार : चम्बा से 24 किलोमीटर दूर बसा खजियार भारत के स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर है। खजियार अपनी हरियाली व शांत वातावरण के लिए भी पर्यटकों मे ंखासा लोकप्रिय है। यहां के ऊंचे-ऊंचे देवदार के वृक्ष पर्यटकों को आकर्षित करते हैं तो मंदिरों में किया गया लकड़ी का काम भी अपनी अद्भुत कारीगरी की दास्तान कहता है। यहां गोल्फ का आनंद लिया जा सकता है। 
चम्बा से 61 किमी दूर स्थित भरमौर को पहले ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था। छठी व 10वीं शताब्दी में इसे भरमौर के नए नाम से पहचाना जाने लगा। कहा जाता है 10वीं शताब्दी में यहां 84 धर्मगुरू आए, इसीलिए राजा साहिल वर्मा ने उनकी स्मृति को अमर बनाने के लिए यहां 84 मंदिरों का निर्माण करवाया। भरमौर से ही कुग्ती व चोबियां पास भी घूमने जाया जा सकता है जो यहां से 65 किलोमीटर की दूर पर स्थित हैं।  चम्बा से मात्र 11 किलोमीटर दूर स्थित सरोल सुंदर गार्डन, पक्षीशाला तथा भेड़ प्रजनन केन्द्र के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। पिकनिक के लिए प्रसिद्ध इस स्थान को प्रकृति की सुंदर कारीगरी का नमूना कहा जा सकता है। समुद्र तल से 1,829 मीटर की ऊंचाई पर बसा सलूनी चम्बा से मात्र 20 किलोमीटर की दूर पर है। बर्फ से लदी चोटियों के मनोरम दृश्य, ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के जंगल और स्वच्छंद विचरण करते पक्षी व उनका कलरव यहां की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। 
चम्बा के आसपास और भी बहुत कुछ है लेकिन पर्यटकों की बढ़ती संख्या, उस पर अनियोजित विकास ने यहां के पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया है। सिकुड़ती हरियाली, शुद्ध वायु का अभाव किसी भी पर्वतीय स्थल के आकर्षण को कम कर देता है। आखिर हम कब सीखेंगे प्रकृति से सामंजस्य बैठाना। पर्यावरण संरक्षण कब बनेगा हमारे संस्कारों का हिस्सा। यदि हम अब भी नहीं चेते तो चम्बा जैसे खूबसूरत स्थलों की केवल यादें ही रह जाएगी। (उर्वशी)