बच्चें में कुपोषण की बढ़ती समस्या

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक ताज़ा रिपोर्ट ने भारत में नवजात एवं छोटे बच्चों को दी जाने वाली खुराक में पोषक तत्वों की कमी और खुराक में दिये जाने वाले पदार्थों की विभिन्नता में कमी को लेकर बेहद चौंकाया है। रिपोर्ट के अनुसार देश में जन्म लेने वाले 6 से 23 मास के बच्चों में से 77 प्रतिशत से अधिक बच्चे इन कमियों से ग्रस्त पाये गये हैं। अन्य आयु वर्ग के बच्चों में भी इस प्रकार की समस्या के अंश पाये गये हैं। इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि देश में बच्चों को दी जाने वाली खुराक में पोषकता और पौष्टिकता वाले तत्व बहुत कम होते हैं जिससे अधिकतर बच्चे कुपोषण एवं दुर्बलता का शिकार हो जाते हैं। इस कारण बच्चों में जीवनदायी तत्वों की कमी पायी जाने लगती है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि बेशक यह समस्या देश के प्राय: सभी राज्यों में कमोबेश रूप से पाई जाती है, किन्तु उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह स्थिति अधिक गम्भीर होकर सामने आई है। इन राज्यों में यह समस्या 80 प्रतिशत से भी अधिक पायी गई है जबकि कुछ छोटे राज्यों सिक्किम और मेघालय आदि में इसकी प्रतिशतता पचास से भी कम आंकी गई है। इसी प्रकार देश के सभी राज्यों में किये गये सर्वेक्षण और विश्लेषण के अनुसार इस समस्या से देश का कोई भी प्रदेश अछूता नहीं पाया गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से अक्सर इस प्रकार का मूल्यांकन भिन्न-भिन्न देशों में किया जाता  रहता है। भारत में भी समय-समय पर ऐसा सर्वेक्षण कराया जाता है। इस सर्वेक्षण हेतु संगठन की ओर से न्यूनतम खुराक गुणवत्ता का सुझाव दिया जाता है, और इस हेतु समय-समय पर इसका मूल्यांकन भी किया जाता रहता है। इस खुराक में मां के दूध के अतिरिक्त दालों, अंडों, मेवे, फल और सब्ज़ियों सहित विटामिनों को शुमार किया जाता है, किन्तु देश में अधिकतर राज्यों में बच्चों की कुपोषणता के साथ-साथ बच्चों को जन्म देने वाली माताओं की खुराक में भी पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है। नव-जन्मे बच्चों और उन्हें जन्म देने वाली माताओं की खुराक की पोषकता के मूल्यांकन हेतु देश में बहुत कम राज्यों में ऐसी प्रणाली विकसित हुई है। लिहाज़ा यह स्थिति निरन्तर और से और गम्भीर होती जाती है। इस रिपोर्ट के आंकड़े भी चिंतातुर करते हैं कि देश में नवजात शिशुओं एवं उनकी माताओं की खुराकी विभिन्नता में कमी की विफलता 87.4 प्रतिशत तक हो जाने का भी खदशा है। ये आंकड़े विगत वर्ष की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किये गये हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अंशों के अनुसार नवजात बच्चों को मां के दूध की उपलब्धता और इस दूध की गुणवत्ता, दोनों में कमी पाई गई है। इससे यह अभिप्राय: भी निकलता है कि एक ओर जहां बच्चे को मां का दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलता,  वहीं इस दूध की गुणवत्ता भी कम होती जाती है। इससे पता चलता है कि बच्चे को जन्म देने वाली महिला की बच्चे के जन्म से पहले, और फिर जन्म के बाद भी, खुराक मूल्यांकन की कसौटी पर पूरा उतरने वाली नहीं होती। इस कारण जहां मांओं में रक्त की कमी उत्पन्न होने लगती है, वहीं नवजात शिशुओं में भी रक्त की कमी और बच्चों का वज़न कम होने की शिकायत उपजने लगती है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह समस्या देश की भावी संततियों के स्वास्थ्य धरातल हेतु कदापि उचित नहीं है। इससे दूरगामी परिणाम राष्ट्रीय अखण्डता हेतु भी अच्छे नहीं हो सकते। देश की स्वास्थ्य प्रतिशतता और आम लोगों की आयु-सीमा पर भी इस स्थिति से विपरीत प्रभाव पड़ता है। नि:संदेह सरकार को इस गम्भीर स्थिति से बाहर निकलने के लिए जहां एक नई राष्ट्रीय पोषण नीति का गठन करना होगा, वहीं मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे में भी आवश्यकतानुसार परिवर्तन लाना होगा। हम समझते हैं कि देश में भूख, कुपोषण और रोग से निपटने के लिए अब तक की पूरी लड़ाई अपूर्ण और विफल साबित हुई है। ऐसा भी नहीं है कि भारत में स्रोतों अथवा पोषक तत्वों वाले पदार्थों की कमी है। देश में अन्न और अन्य खुराकी पदार्थों की भी कमी नहीं है, तथापि ,आवश्यकता केवल इनके संग्रहण और इनके वितरण हेतु एक समुचित, कारगर नीति बनाये जाने और उस पर प्रतिबद्धता के साथ अमल किये जाने की है।