एक छोटी-सी बात जो मधुबाला-दिलीप के बीच दरार का कारण बनी

मधुबाला की बहन मधुर भूषण (ज़ाहिदा) का कहना है, ‘मधुबाला इतनी सुंदर थीं कि उन्हें पुरुषों से लिंक करना बहुत आसान था। प्रेमनाथ उनसे शादी भी करना चाहते थे, लेकिन मधुबाला का नौ वर्ष तक दिलीप कुमार से प्रेम रहा और बहुत ही खराब ब्रेकअप के बाद उन्होंने किशोर कुमार से शादी कर ली।’ गौरतलब है कि दिलीप कुमार व मधुबाला ‘नया दौर’ (1957) के लिए शूटिंग कर रहे थे; निर्माता बी.आर. चोपड़ा ने आउटडोर शूटिंग रखी, जहां अताउल्लाह ने मधुबाला को जाने से मना कर दिया था, बात अदालत तक पहुंची। दिलीप कुमार ने निर्माता का पक्ष लिया। इसके बावजूद मधुबाला चाहती थीं कि दिलीप कुमार उनके पिता से माफी मांग लें। दिलीप कुमार ने इन्कार कर दिया। इससे दोनों में संबंध खराब हो गये; मधुबाला ने ‘नया दौर’ छोड़ दी। मधुर कहती हैं, ‘हमें दिलीप साहब से कोई शिकायत नहीं है। अगर वह मेरे अब्बा से माफी मांग लेते तो मधु आपा श्रीमती दिलीप कुमार हो जातीं।’
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मधुबाला के पिता ने यह शर्त रखी थी कि शादी के बाद वे दोनों केवल उनकी फिल्मों में काम करेंगे। यह बात दिलीप कुमार को मंज़ूर न थी और इस कारण से मधुबाला से उनका रिश्ता टूट गया। ‘मुगल-ए-आज़म’ फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों के बीच बोलचाल तक नहीं थी, फिर भी इतने ़गज़ब के लव सीन दिए, जिससे मालूम होता है कि दोनों कितने महान कलाकार थे। बहरहाल, दोनों के ब्रेकअप की वजह चाहे जो भी हो, इसके बाद मधुबाला उदास रहने लगी थीं और उसी दौरान उन्हें दिल की जानलेवा बीमारी हो गई थी। एक दिन उनकी एक दोस्त उन्हें मुंबई में अंधेरी स्थित एक गुरुद्वारा साहिब की शरण में लेकर गई यहां बाणी का पाठ सुनने के बाद उन्हें शांति और रूहानियत का सुकून प्राप्त हुआ। 
मधुर भूषण ने बताया कि इसके बाद उनके बारे में यह भी कहा जाता रहा है कि वह कहीं भी शूटिंग कर रही हों, गुरु नानक देव जी के गुरुपर्व पर वह मुम्बई के इस गुरुद्वारा साहिब में अवश्य हाज़िरी भरती थीं। मधुबाला जब तक ज़िन्दा रहीं, तब तक हर साल उनका यह नियमित कार्यक्रम रहा।   
बचपन में मुमताज जहां बेगम देहलवी नाम से मधुबाला एक बेहद, प्यारी सी गुड़िया थीं। उन्हें आईने के सामने गाने व नाचने का शौक था। वह हमेशा अपने पिता अताउल्लाह खान से कहतीं, ‘अब्बा, मुझे फिल्मों में जाना है’, लेकिन अपनी पुरातनपंथी पृष्ठभूमि के कारण अताउल्लाह खान को फिल्मों से नफरत थी। तथापि अताउल्लाह खान की नौकरी छूट गई तो उन्हें रोज़गार के लिए मुंबई आना पड़ा। जब कोई नौकरी न मिली तो वह 9 साल की बेबी मुमताज को लेकर विभिन्न स्टूडियो के चक्कर लगाने लगे। एक दिन बेबी मुमताज को बाल कलाकार के रूप में फिल्म ‘बसंत’ (1942) में काम मिल गया और 13 वर्ष की उम्र में वह राज कपूर के समक्ष ‘नील कमल’ (1947) में लीड एक्ट्रेस बनीं, नये नाम मधुबाला के साथ। फिर भी अताउल्लाह खान को उम्मीद नहीं थी कि उनकी बेटी बड़ा सितारा बनेगी, लेकिन ‘महल’ (1949) ने मधुबाला को रातोंरात बहुत बड़ा स्टार बना दिया। वह उस समय 16 बरस की थीं। मात्र 36 वर्ष की आयु में वह इस संसार को अलविदा कह गईं, लेकिन अपने पीछे कला व सुंदरता का पैमाना और कहानियों का अम्बार छोड़ गईं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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