बांग्लादेश—कट्टरवाद की गिरफ्त में

लगभग विगत 4 मास से भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में जिस तरह के हालात बने हुए हैं, उससे वहां एक बार फिर गड़बड़ एवं अस्थिरता फैल गई है, जो अभी सम्भलते हुए प्रतीत नहीं होती। इस वर्ष 5 अगस्त को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वहां उठी ब़गावत के दृष्टिगत भारत आ गई थीं। विगत लम्बी अवधि से वह वहां की प्रभावशाली पार्टी अवामी लीग की प्रमुख रही थीं। हसीना का प्रधानमंत्री के रूप में यह पांचवां कार्यकाल था। अपने लम्बे कार्यकाल में उन्होंने भारत के साथ मित्रता एवं सद्भावना बनाए रखने के साथ-साथ व्यापार में भी दोनों देशों की भागीदारी को बड़ी प्राथमिकता दी थी। भाषा एवं संस्कृति के पक्ष से भी दोनों देश आपस में बेहद नज़दीक थे।
श़ेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक श़ेख मुज़ीब-उर-रहमान की बेटी हैं। उन्हें इस बात का पूरा अहसास है कि पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होने तथा बांग्लादेश की आज़ादी के संघर्ष में भारत ने बड़ी सहायता की थी। आज़ादी के बाद बंग बंधु के रूप में जाने जाते श़ेख मुजीब-उर-रहमान भारत द्वारा दिए गए सहयोग के लिए हमेशा आभारी रहे थे परन्तु कुछ सैनिक अधिकारियों द्वारा की गई ब़गावत एवं बंग बंधु एवं उनके परिवार के ज्यादातर सदस्यों को मार देने के बाद एक बार तो इस नए बने देश में बड़ा बिखराव पैदा हो गया था। श़ेख हसीना तथा उनकी एक बहन उस समय देश से बाहर होने के कारण बच गई थीं। बाद में श़ेख हसीना ने अवामी लीग का नेतृत्व किया और इस दौरान अपने पिता के निर्धारित लक्ष्यों एवं नये देश के लिए बने संविधान को भी प्रभावी ढंग से लागू किया, परन्तु दूसरी तरफ बांग्लादेश में इस्लामिक  कट्टरवादियों ने भी अपना पूरा प्रभाव कायम रखा था। बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी जिसका नेतृत्व खालिदा ज़िया करती थीं, न सिर्फ जमायत-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों एवं पार्टियों को उत्साहित करती रहीं, अपितु उन्होंने अपने कार्यकाल में भारत के विरुद्ध भी लगातार अपना मोर्चा खोले रखा।
जमायत-ए-इस्लामी एवं अन्य कट्टरपंथी संगठन बांग्लादेश को इस्लामिक राज्य में बदलने के लिए लगातार तत्पर रहे परन्तु श़ेख हसीना ने शासन सम्भालते ही न सिर्फ इन कट्टरपंथी संगठनों को सख्ती से नकेल ही डाली, अपितु उन्होंने उन तत्वों को कड़ा सबक भी सिखाया, जो बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के समय पाकिस्तान का पक्ष लेते रहे थे तथा उन्हें भी जिन्होंने बंग बंधु तथा उसके परिवार की हत्या करके नये देश को अस्थिर कर दिया था। श़ेख हसीना ने अपने शासन के दौरान लम्बी अवधि तक तानाशाही रवैया अपना कर जहां अपने विरोधियों को दबाये रखा वहीं मज़हबी इस्लामिक तत्वों को निकट नहीं आने दिया। देश में बसे करोड़ों हिन्दुओं एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की पूरी रक्षा भी की।
इसके साथ-साथ उन्होंने शुरू से ही नौकरियों में बांग्लादेश की आज़ादी में हिस्सा लेने वालों एवं अन्य कमज़ोर वर्गों के लिए आरक्षण की प्रणाली भी जारी रखी। इसके चलते उनके विरुद्ध बड़ी संख्या में विद्यार्थियों एवं कट्टरपंथियों ने लगातार हिंसक प्रदर्शन करके उनका तख्ता पलट दिया तथा विवशतापूर्ण श़ेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी। इस तख्ता पलट के बाद अस्थायी रूप में देश की बागडोर नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को सौंप कर एक अस्थायी सरकार स्थापित की गई थी परन्तु मोहम्मद यूनुस इस बड़े बिखराव को सम्भालने के सामर्थ्य न हो सके, जिस कारण अब तक पूरा देश अशांति एवं अस्थिरता में ही घिरा दिखाई दे रहा है। पैदा हुई अस्थिरता का लाभ लेते हुए कट्टरपंथी जमातों द्वारा हिन्दू समुदाय के लोगों एवं अन्य अल्प-संख्यकों को अपने रोष का निशाना बनाया जा रहा है। अब तक वहां हिन्दुओं पर विभिन्न स्थानों पर भड़की भीड़ द्वारा सैकड़ों ही हमले किए जा चुके हैं। उनके घरों, व्यापारिक संस्थानों एवं खास तौर पर मंदिरों को नुक्सान पहुंचाया जा रहा है। भारत के लिए यह बड़ी चिन्ता का विषय है। इस संबंध में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मोहम्मद यूनुस, जोकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार हैं, के साथ भी फोन पर अपनी चिन्ता का प्रकटावा किया है परन्तु इसका भी कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। स्थिति लगातार गड़बड़ वाली बनी हुई है। अपने ऊपर ऐसे हमले होते देख, वहां के हिन्दू समुदाय ने भी कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट की है। कट्टरपंथियों के विरुद्ध रैलियां एवं प्रदर्शन किए हैं। एक रैली में उन्होंने ‘आमी सनातनी’ का नारा लिख कर चिटगांव की मार्किट में बने आज़ादी स्तम्भ पर ध्वज लहरा दिया। इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व बांग्लादेश के हिन्दू धार्मिक संगठन इस्कान के नेता चिन्मय कृष्ण दास कर रहे थे, जिन पर इन प्रदर्शनों को लेकर देश-द्रोह का मामला दर्ज किया गया है तथा उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया है। यह गिरफ्तारी ऐसे समय हुई जब बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यक भाईचारे पर हो रहे हमलों की घटनाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही है। चिन्मय कृष्ण दास ने सत्ता विरोधी रैलियों में अपनी 8 मांगें रखी थीं, जिसमें हिन्दू मंदिरों की सुरक्षा करने तथा अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक विशेष मंत्रालय स्थापित करने की मांग भी शामिल थी। अब चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को लेकर जहां भारत ने एक बार फिर अपनी बड़ी चिन्ता प्रकट की है, वहीं अमरीका एवं कई अन्य देशों ने भी इस संबंध में कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट की है। इस समय बांग्लादेश के हालात बेहद चिन्ताजनक बने हुए हैं, जिन्हें हर स्थिति में सुधारा जाना ज़रूरी है। यदि कट्टरवादी इस्लामिक तत्व वहां हावी हो गए तो भारत के लिए भी यह बेहद चिन्ताजनक बात होगी, जिससे इस क्षेत्र में पहले ही पैदा हुई अस्थिरता में और भी वृद्धि हो सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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