क्या आप अपने बच्चे के खान-पान से परेशान हैं
मिसेज़ तिवारी के घर से जोर-जोर की आवाजें आ रही थी। वह अपने बच्चे के पीछे-पीछे भाग रही थी। बेटा कहना मान लो, यह खा लो और उनका बेटा था कि उनकी पकड़ में आ ही नहीं रहा था। उनके घर से इस तरह की आवाज़ों को सुनते-सुनते सारे फ्लैट के लोग अभ्यस्त हो चुके थे। रोज़ का यह नियम था कि वह जब तक अपने बेटे की कोई फरमाइश न मानें तो वह खाना खाता ही नहीं था। घर-घर में यह खाने की दौड़-भाग वाला खेल अब काफी कॉमन हो चुका है। मिसेज़ तिवारी जैसी समस्या से अगर आप भी गिरफ्तार हैं तो आइए जानें ऐसे कुछ टिप्स जो आपकी पूरी तो नहीं लेकिन काफी हद तक मदद कर सकते हैं।
अपने बेटे की पसंद को समझें : सबसे पहले तो यह जान लेना अति आवश्यक है कि उसे खाने में क्या पसंद है। उसकी पसंद के अनुरूप उसके लिए चीजें निर्धारित करिए। अगर उसे परांठा पसंद है तो आप ब्रेकफॉस्ट के लिए पराठों में कई तरह की चीज़ें भर सकते है जैसे आलू, गोभी, मूली, चीनी, पनीर आदि। सैंडविच भी अलग-अलग तरह से उसे दे सकते हैं। अगर उसे ब्रेड के ऊपर मक्खन पसंद नहीं है तो आप जैम का प्रयोग करें।
खाने के लिए जबरदस्ती न करें : सबके साथ टेबल पर बैठ कर खाना अच्छी आदत है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अगर गलती से डाइनिंग टेबल पर बच्चा साथ न खाएं तो उसके साथ आप जबरदस्ती करें। हो सकता है कि आपके खाने के समय उसे कम भूख लग रही हो या शायद लग ही न रही हो। पूरी भूख लगने पर ही उसे खाना दें।
खाना हमेशा अच्छी तरह से खिलाएं : सुबह के नाश्ते में उसे दूध तो हमेशा देना चाहिए। स्कूल में उसे लाइट ब्रेकफॉस्ट और दोपहर के खाने में प्रापर डाइट देनी चाहिए। चावल भले ही एक टाइम खाए मगर रोटी दिन रात दोनों के ही खानों में देना चाहिए। बीच में कुछ चटर-पटर खाने से बच्चों को रोकें। अगर शाम को उसे भूख लगे तो कुछ स्नैक्स वगैरह जैसे उबले चने, पनीर की पूरी आदि दे सकते हैं।
रोज़ भिन्न-भिन्न चीज़ें बनाएं : अगर आप चाहती हैं कि आपका बच्चा खाना खाए तो अपने खाने में चेंज लाइए। दो चीज़ें बनी हों तो यह ध्यान रखना चाहिए कि उनमें से एक चीज़ आपका लाडला भी खा ले। खाने को और ज्यादा रचनात्मक बनाए रखने के लिए खाने के बाद बच्चे की पसंद की एक मीठी चीज़ रखिए जिससे अंत तक उसका मन खाने में ही लगा रहे।
धैर्य से काम लें : आमतौर पर महिलाएं परेशान हो जाती हैं कि आखिर बच्चों को हम कैसे खाना खिलाएं? कोशिश करिए कि उसे किसी ऐसे काम में लगाने की जिससे न सिर्फ वह बैठ कर खाए, साथ में आपको भी परेशानी न उठानी पड़े। दिन का खाना अमूमन बच्चे स्कूल से आकर खाते हैं। ऐसे में उनका ध्यान बंटाने के लिए आप उनसे उनके स्कूल की गतिविधियों के बारे में पूछें। रात के खाने में उनको कोई कहानी आदि सुनाएं जिससे उनका दिल खाने की टेबल पर ही लगा रहें। थोड़ी सी समझदारी और अपने बिज़ी शेडयूल से अगर आप अपने लाडले के लिए थोड़ा सा भी वक्त निकालेंगे तो आपको मिसेज़ तिवारी की तरह उसके पीछे भागना नहीं पड़ेगा। (उर्वशी)