मिलावट का जिन्न
पंजाब में मौजूदा समय में मिलावट और नकली सामान के कारोबार का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है जिस कारण यह धंधा खूब फल-फूल रहा है, विशेषकर खाद्यान्न पदार्थों में मिलावट की समस्या निरन्तर गम्भीर होती जा रही है। फूड सेफ्टी एण्ड स्टैंडर्ड अथॉारिटी ऑफ इण्डिया की ओर से खाद्यान्न एकट-2006 के तहत जारी एक रिपोर्ट के अनुसार खान-पान की वस्तुओं में मिलावट और नकली सामान तैयार करने की समस्या में विगत एक वर्ष में ही आठ प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है। यह क्रिया विगत कई वर्षों से अनवरत जारी है। यह समस्या समाज के भीतर किस सीमा तक धंस चुकी है, इस का प्रमाण इस एक तथ्य से मिल जाता है कि पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी इस मुद्दे पर पंजाब की सरकार से जवाब-तलबी की है। मिलावट का आलम यह हो गया है कि खाद्यान्न पदार्थों में रोकथाम के लिए नियुक्त देश की सबसे बड़ी एजेंसी द्वारा हाल ही में किये गये एक परीक्षण के अनुसार पंजाब में वर्ष 2022-23 में खाद्यान्न उत्पादों के लिए गये 8179 नमूनों में से कुल 21.08 प्रतिशत अर्थात 1724 नमूनों में मिलावट पाई गई। इस वर्ष सितम्बर मास तक ही 358 नमूने विफल सिद्ध हुए पाये गये।
इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट का प्रतिशत और विफल सिद्ध हुए नमूनों की संख्या प्रत्येक अगले वर्ष में पिछले वर्ष की तुलना में आगे बढ़ती चली गई है। विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश में यूं तो सभी प्रकार की खाद्यान्न वस्तुओं जैसे दालों, चावल, चीनी और खाद्य तेलों में मिलावट-वृत्ति पाई गई है, किन्तु दूध, दही, देसी घी, खोया और पनीर आदि में मिलावट अथवा इनके नकली बनाये जाने की समस्या ने प्रदेश में चहुं ओर चिन्ता की स्थिति पैदा की है। इन पदार्थों को नकली तौर पर बनाये जाने के दौरान कास्टिक सोडा जैसे अनेक घातक तत्वों का मिश्रण किया जाता है। ये तत्व जहां सम्पूर्ण रूप से मानव मात्र के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं, वहीं बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य यहां तक कि उनके जीवन से खिलवाड़ किये जाने की हद तक चले जाते हैं। इससे जहां बच्चों के शारीरिक विकास में बाधाएं उपजती हैं, वहीं उनके लिए कई तरह के रोगों का ़खतरा भी पैदा होने लगता है। इसी प्रयोगशाला के अनुसार प्रदेश में देसी घी के 21 प्रतिशत और खोया के 26 प्रतिशत नमूने फेल सिद्ध हुए हैं। पनीर और अन्य कई दुग्ध पदार्थों के नमूने भी बड़ी मात्रा में फेल रहे हैं। प्रदेश के कई भागों में इसी वर्ष दीपावली जैसे उत्सव-अवसरों के आस-पास नकली दूध और खोया बनाये जाने वाली कई छोटी-बड़ी फैक्टरियों का भी पता चला था। पिछले वर्ष भी इसी काल के दौरान नकली अथवा मिलावटी खाद्य-सामग्री बनाये जाने के कई मामले सामने लाये गये थे। त्योहारों के अवसर पर ऐसा नकली और मिलावटी सामान बनाये जाने की सूचनाएं वैसे भी बढ़ी हुई संख्या में मिलने लगती हैं।
इस समस्या का एक गम्भीर पक्ष यह भी है, कि यह सब अफसरों की मिलीभुगत से हो रहा हो, अथवा प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही से, किन्तु अव्वल तो प्रशासन इस ओर स्वत: ध्यान देता ही नहीं। यदि किसी अन्य तरीके से कोई मामला सामने आता भी है, तो ऐसे लोगों को पहले ही गोपनीय सूचना मिल जाती है, और वे सतर्क हो जाते हैं। इसके बावजूद यदि कोई मामला आगे बढ़ भी जाता है, तो मिलीभुगत करके अथवा रिश्वत देकर नमूने ही बदलवा दिये जाते हैं, अथवा फाईलें खो जाती हैं। मौजूदा मामले में भी उच्च अदालत ने इस संबंध में एक जन-हित याचिका पर विचार करते हुए ही पंजाब के प्रशासन और सरकार से जवाब-तलबी की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरे देश में प्रतिदिन 70 प्रतिशत दुग्ध-उत्पादन पदार्थ सामान्य कसौटी पर भी खरे नहीं उतरते हैं। इसी प्रकार विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 89.2 प्रतिशत दुग्ध पदार्थों में किसी न किसी तरह की मिलावट पाई जाती है। उच्च न्यायालय में भी यह बताया गया कि भारत बेशक विश्व का सर्वाधिक बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, किन्तु यह दूध और इससे तैयार पदार्थों में अधिकतर नकली अथवा मिलावटी पाये जाते हैं।
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह स्थिति कोई अच्छी नहीं है। यह जहां देश के जन-साधारण के हितों को प्रभावित करती है, वहीं युवा शक्ति और खासकर नई पीढ़ी के बच्चों के स्वास्थ्य और उनके जीवन पर भी विपरीत प्रभाव डालने वाली सिद्ध होगी। इससे देश की एकता एवं अखंडता पर भी बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका बढ़ती है। हम यह भी समझते हैं कि देश की सरकार, खासकर स्वास्थ्य मंत्रालय और पुलिस प्रशासन को ऐसे असामाजिक तत्वों को ऐसे आपराधिक कृत्यों से रोकने हेतु मिल कर कोई संयुक्त रूप से कोई प्रयास करना चाहिए, अन्यथा स्थितियों के और गम्भीर होते जाने का बड़ा ़खतरा है।