रूस पर प्रतिबंध : यूरोपीय देशों को हुआ है सबसे अधिक नुकसान 

व्लादिमीर पुतिन सही कह रहे हैं कि रूस पर प्रतिबंध लगाकर अमरीका ने बहुत बड़ी गलती की है। विदेश नीति के एक उपकरण के रूप में अमरीकी डॉलर का उपयोग करके और मॉस्को को स्विफ्ट से रोक कर अमरीका ने भारत जैसे मित्र देश को भी एक समानांतर वैश्विक अर्थव्यवस्था बनाने के लिए मजबूर कर दिया है जो पश्चिमी पारिस्थितिकी तंत्र को दरकिनार करती है। यूक्रेन युद्ध से पहले भारत रूस से अपने कच्चे तेल का बहुत कम आयात करता था। आज यह 70 प्रतिशत से अधिक है। भारत तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, इसलिए रूस के लिए यह अप्रत्याशित लाभ बहुत बड़ा है। रूसी कच्चे तेल को अब भारत में परिष्कृत किया जाता है और यूरोप भेजा जाता है, इसलिए प्रतिबंध वैसे भी आत्मघाती हैं।
यूक्रेन युद्ध और प्रतिबंधों के कारण तेल की कीमतों में उछाल ने पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुंचाया है, जिससे पश्चिमी देशों की क्रय शक्ति में भारी कमी आई है। रूसी उपभोक्ता फ्रांसीसी पनीर और शराब के बड़े खरीदार थे। 2014 में लगाए गए प्रतिबंधों के कारणए पिछले 10 वर्षों में रूसी उद्यमियों ने ऐसी कंपनियां स्थापित की हैं जो अब गुणवत्तापूर्ण पनीर और शराब का उत्पादन करती हैं। यह 140 मिलियन लोगों का बाजार है जो फ्रांस और यूरोप के हाथों खो गया है। चूँकि अब अमरीकी डॉलर प्रतिबंधों और संपत्ति हड़पने से जुड़ा हुआ है, इसलिए दुनिया भर में वैश्विक मुद्रा के रूप में इस पर कम भरोसा है। इसने भारतीय रुपये और चीनी रेनमिनबी को तस्वीर में आने का मौका दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था की मज़बूती के कारण अब कई देश भुगतान के रूप में रुपये को स्वीकार करते हैं। 
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यूरोप आर्थिक मंदी में है क्योंकि रूस और यूरोप के बीच व्यापार में कटौती करके प्रतिबंधों के बूमरैंग प्रभाव के कारण यह प्रतिक्रिया हुई है। जर्मन उद्योग सिकुड़ रहा है, क्योंकि बहुत सारा जर्मन उद्योग रूस से आयात की जाने वाली कम लागत वाली ऊर्जा पर आधारित था।
अब यूरोप की स्थिति से शुरू करते हैं। यूरोप आर्थिक मंदी में है क्योंकि रूस और यूरोप के बीच व्यापार में कटौती करके प्रतिबंधों के बूमरैंग प्रभाव के कारण यह प्रतिक्रिया हुई है। यह यूरोप ही है जो पीड़ित है। यूरोपीय अर्थव्यवस्था का केंद्र जर्मन उद्योग है। जर्मन उद्योग सिकुड़ रहा है क्योंकि बहुत सारा जर्मन उद्योग रूस से आयात की जाने वाली कम लागत वाली ऊर्जा पर आधारित था। इसलिए जब आप यूरोप की राजनीति को देखते हैं, तो यूरोप में अभी कोई भी लोकप्रिय नेता नहीं है जो इस युद्ध समर्थक गठबंधन में है। वास्तव में, जर्मनी के चांसलर शुल्ट्ज जैसे लोगों की स्वीकृति रेटिंग 20 के निचले स्तर पर है। यह आमतौर पर पूरे यूरोप में अभी सच है। दूसरे शब्दों में यूरोप ऐसी नीतियां अपना रहा है जो यूरोप के लोगों के बीच बेहद अलोकप्रिय हैं।  हंगरी के विक्टर ओरबान अब अकेले नहीं हैं क्योंकि स्लोवाकिया की सरकार भी अब कह रही है कि यूक्रेन में इस युद्ध को वार्ता की मेज पर समाप्त करने की आवश्यकता है। नीदरलैंड के चुनावों में एक राजनेता गीर्ट वाइल्डर्स को सबसे अधिक वोट मिले, जो रूस के साथ नाटो युद्ध के खिलाफ  हैं।
 मामले की सच्चाई यह है कि यूरोपीय संघ में राजनीति इस युद्ध के बिल्कुल खिलाफ है। अब नेता हमेशा से ही अमरीकी दृष्टिकोण के अनुरूप चल रहे हैं। उन्होंने वार्ता के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। वह युद्ध के लिए बहुत उत्साहित हैं। इस उत्साही सैन्यवाद का परिणाम यह है कि कदम दर कदम यूक्रेन को नष्ट किया जा रहा है। यह जनसांख्यिकी रूप से नष्ट हो रहा है क्योंकि न केवल युक्रेन ने अपना क्षेत्र खो दिया है बल्कि इसने लाखों लोगों को खो दिया है जो देश छोड़कर भाग गए हैं। कुछ रूस चले गए हैं, अन्य यूरोपीय संघ चले गए हैं।  बड़ी संख्या में लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो रहे हैं, अर्थव्यवस्था नष्ट हो रही है तथा हर महीने बड़ी संख्या में यूक्रेनवासी घायल हो रहे हैं और मारे जा रहे हैं। (युवराज)

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