सिर्फ कर में छूट देना मांग को बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के आठवें बजट के बारे में एकमात्र बड़ा विचार 12 लाख रुपये तक की आयकर छूट की घोषणा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह 7 लाख रुपये की छूट सीमा से बहुत बड़ी छलांग है। हालांकि इसमें एक राजनीतिक पेंच है। लेकिन एक तरह से यह दिल्ली बिजली शुल्क के बारे में आप की अवधारणा से उधार लिया गया है। यानीए अगर आय 12 लाख रुपये से एक रुपया ज़्यादा है, तो 4 लाख रुपये की आय से आगे कर की प्रगतिशील दर लागू होगी। मान लीजिए 12 लाख रुपये की आय में एक रुपया और जोड़ने पर व्यक्ति को 4 लाख रुपये से ज़्यादा की आय पर प्रगतिशील पैमाने पर 5 प्रतिशत की दर से कर देना होगा। संभवत: यह उम्मीद करते हुए कि 12 लाख रुपये तक की आय वाले लोगों को पूरी कर छूट मिलेगी, सवाल यह है, ‘क्या इससे घरेलू मांग बढ़ेगी’। यह देखते हुए, वर्तमान आयकरदाताओं में से 85 प्रतिशत को कर के भुगतान से छूट मिलनी चाहिए। सरकार इस बदलाव पर 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का अनुदान देगी। इसे मध्यम वर्ग का बजट कहा जा सकता है, जिसमें उच्च महत्वाकांक्षाओं और बयानबाजी की कमी है। यह राजकोषीय विवेक पर ज़ोर देता है और निजी क्षेत्र के निवेश पर ज़ोर देता है। कुल मिलाकर बजट रूढ़िवादी लगता है। बयानबाजी की कमी शेयर बाज़ार की धीमी प्रतिक्रिया में झलकती है। उन्होंने ‘लोकतंत्र, जनसांख्यिकी और मांग’ को महत्वपूर्ण स्तंभों के रूप में देखा था। उन्होंने शुरू में ही अपना मूल उद्देश्य बताते हुए कहा था,‘यह बजट विकास को गति देने, समावेशी विकास को सुरक्षित करने, निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने, घरेलू भावनाओं को ऊपर उठाने और भारत के उभरते मध्यम वर्ग की खर्च करने की शक्ति को बढ़ाने के लिए हमारी सरकार के प्रयासों को जारी रखता है’।
इस तरह वह बढ़ती घरेलू मांग घरेलू निजी निवेश और ज़मीनी स्तर पर घरेलू लघु और मध्यम उद्यमशीलता की उम्मीद कर रही थी। बजट ने लघु और मध्यम क्षेत्र को महत्व दिया है। यह सर्वोत्कृष्ट आपूर्ति पक्ष अर्थशास्त्र है। इसका एक बेहतरीन उदाहरण तब था जब राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने अमरीकियों को बड़े कर कटौती की पेशकश की थी और वह मांग में भारी उछाल के साथ वापिस आये और अमरीकी आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया।
कुल मिलाकर छूट में उछाल को छोड़कर कराधान दरों को अछूता छोड़ दिया गया है। क्या निम्न और मध्यम वर्ग के लिए आयकर रियायत समग्र घरेलू मांग को बढ़ावा देगी और भारत को आगामी ट्रम्प स्टॉर्म टैरिफ और एक अशांत वैश्विक अर्थव्यवस्था से पार पाने में मदद करेगी? 31 जनवरी को जारी आर्थिक सर्वेक्षण में यह सवाल उठाया गया था और इसका उत्तर मांगा गया था। सर्वेक्षण ने तर्क दिया था कि वैश्विक स्थिति बिगड़ रही है या कम से कम वैश्वीकरण पीछे हट रहा है। इसलिए, घरेलू मांग को और बढ़ावा देने की आवश्यकता थी। भारत मुख्य रूप से घरेलू मांग के दम पर बढ़ रहा है। निर्यात केवल अवशिष्ट हो सकता है। चीन को उम्मीद है कि घरेलू मांग बढ़ने से उसे राहत मिलेगी, जो उसे अब तक नहीं मिल पायी है। साथ ही वित्त मंत्री ने भारत के निर्यात हितों की रक्षा करने की कोशिश की है। उन्होंने सीमा शुल्क दरों और ढांचे में कुछ बदलाव किये हैं, जिन्हें ट्रम्प के अमरीका से बाधाओं के खतरे के साथ सशर्त बातचीत के रुख के लिए शुरुआती रुख कहा जा सकता है। करों को लेकर उत्साह को अलग रखते हुए, बजट भाषण कृषि क्षेत्र, यात्रा एवं पर्यटन, स्वास्थ्य और खनन के लिए कुछ छोटी-मोटी परियोजनाओं और प्रस्तावों की पुनरावृत्ति की तरह लग रहा था। अतिशयोक्ति न करते हुए, अंतत: यह फयदेमंद भी हो सकता है। कैसे? वित्त मंत्री ने कृषि क्षेत्र को विकास के पहले इंजन के रूप में महत्व दिया है। वित्त मंत्री ने मूल्यवर्धित कृषि को प्रोत्साहित करने की कोशिश की है। मछली पालन, फल और सब्ज़ियां तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को विकसित करने की कोशिश की गयी है। घरेलू उद्योग के लिए, बजट घरेलू मांग के सृजन पर अपनी उम्मीदें टिकाये हुए है, जो अकेले ही नये निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा दे सकता है। आखिरकार अगर राजकोषीय घाटे को बनाये रखना है, तो सरकारी खर्च में वृद्धि नहीं हो सकती। बजट में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं या अन्य सार्वजनिक निवेशों में बड़े सार्वजनिक निवेश की घोषणा नहीं की गयी है।
सरकार घरेलू विनिर्माण में एक बड़ा कदम उठाने की उम्मीद कर रही है जो अब तक साकार नहीं हुआ है। इसके बजाय, बजट अब विनिर्माण की चुनौतियों का सामना करने के साथ.साथ रोजगार बढ़ाने के लिए छोटे और मध्यम क्षेत्र को मज़बूत करने और अधिक रोज़गार सृजन गतिविधियों की ओर अग्रसर है। बजट कम से कम उस दृष्टिकोण को दर्शाने का प्रयास करता है। (संवाद)