बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद अब मणिपुर में क्या होगा ?
आखिरकार 21 माह की देशज हिंसा के बाद मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। वह 9 फरवरी 2025 को जब दिल्ली से इम्फाल लौटे तो उसके कुछ घंटे बाद राजभवन पहुंचकर राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को अपना व अपने मंत्रिमंडल का त्यागपत्र सौंप दिया। राज्यपाल ने उनका इस्तीफा स्वीकार करते हुए उनसे वैकल्पिक व्यवस्था होने तक पद पर बने रहने के लिए कहा है। विधानसभा को स्थगित कर दिया गया है। मणिपुर में देशज हिंसा 3 मई 2023 से चल रही है, जिसमें अभी तक 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, हजारों की संख्या में लोग घायल हुए हैं और करोड़ों की सम्पत्ति जलकर राख हो गई है। बलात्कार व अन्य यौन हिंसा की भी अनगिनत वारदातें हुई हैं। बीरेन सिंह इस हिंसा को रोकने में नाकाम रहे हैं और विपक्ष लम्बे समय से उनके इस्तीफे की मांग कर रहा था, लेकिन केंद्र सरकार ने उन पर अपना विश्वास बनाये रखा और वह अपने पद पर बने रहे। इसलिए सवाल यह है कि अब आकर उन्होंने त्यागपत्र क्यों दिया? इसके अनेक प्रमुख कारण हैं।
सबसे पहली बात तो यह है कि मणिपुर में राज्य भाजपा के भीतर ही बीरेन सिंह का विरोध निरंतर बढ़ता जा रहा था और नेतृत्व परिवर्तन की मांग तीव्र हो गई थी। विपक्ष 10 फरवरी 2025 को बिरेन सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाला था और सुगबुगाहट यह थी कि भाजपा के ही विधायक, जो नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे थे, बिरेन सिंह की सरकार गिरा देते। इस आशंकित शर्मनाक स्थिति से बचने के लिए यही बेहतर समझा गया कि बीरेन सिंह इस्तीफा दे दें और विधानसभा को स्थगित कर दिया जाये। दूसरा यह कि एक नया विवाद खड़ा हो गया है। जो ऑडियो क्लिप्स लीक हुई थीं, जिनसे देशज हिंसा में बिरेन सिंह की तथाकथित भूमिका ज़ाहिर होती है, उनकी विश्वसनीयता से संबंधित फोरेंसिक रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने सील बंद लिफाफे में मांगा है। इन टेप्स में बिरेन सिंह की तथाकथित वार्ता है, जिसमें वह सुझाव दे रहे हैं कि मैतेई समूहों को राज्य सरकार से हथियार व गोला बारूद लूटने दिया जाये। गौरतलब है कि मणिपुर में हथियारों की लूट अभी तक जारी है। शनिवार यानी 8 फरवरी 2025 की रात को भी मणिपुर के थौबल ज़िले में इंडिया रिज़र्व बटालियन (आईआरबी) की आउटपोस्ट से 6 एसएलआर, 3 एके सीरीज राइफल्स और बड़ी मात्रा में गोलियां अज्ञात लोगों ने लूटीं। इस लूट की वारदात में तीन सुरक्षाकर्मी घायल हुए।
लूट के लिए यह हमला किस तरह से अंजाम दिया गया, इसकी जांच के आदेश दिए गये हैं। मणिपुर में जब से हिंसा शुरू हुई है, तब से 5000 से अधिक हथियारों की लूट का अनुमान है। वैसे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पड़ोसी म्यांमार की स्थिति ने भी बिरेन सिंह के इस्तीफे में कोई भूमिका अदा की होगी। विद्रोही अरकान आर्मी ने हाल के महीनों में लगभग पूरे रखीन राज्य पर कब्ज़ा कर लिया है। इससे नई दिल्ली को शायद एहसास हुआ होगा कि अब म्यांमार जूंट्रा पर सीमा को सुरक्षित रखने का भरोसा नहीं किया जा सकता और न ही मणिपुर व मिज़ोरम में मिलिटेंट्स व हथियारों को आने से जूंट्रा रोक पायेगी। इसलिए बीरेन सिंह को जाना ही था, इससे पहले कि मणिपुर में स्थिति पूर्णत: नियंत्रण से बाहर निकल जाती। गौरतलब है कि मणिपुर में 3 मई 2023 को हिंसा इस धारणा के चलते भड़की थी कि ़गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जा रहा है, जिसके विरोध में आल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने आदिवासी एकता मार्च का आयोजन किया था।
खैर, बीरेन सिंह का इस्तीफा बहुत पहले हो जाना चाहिए था। उन्होंने अपने उत्तराधिकारियों के लिए शांति स्थापित करना अतिरिक्त कठिन कर दिया है। दरअसल, हाल के वर्षों में यह एकमात्र राजनीतिक त्यागपत्र था, जिसकी बहुत शिद्दत से प्रतीक्षा थी। मणिपुर में जब हिंसा शुरू हुई तो कानून व्यवस्था को पुन: स्थापित करने की मुख्य ज़िम्मेदारी बिरेन सिंह पर ही थी। लेकिन वह न केवल राज्य में शांति स्थापित करने में नाकाम रहे बल्कि उनके सार्वजनिक आचरण ने स्थिति को बद से बदतर कर दिया। इससे ध्रूवीकरण में वृद्धि होती गई और जीवन व सम्पत्ति का नुकसान होता गया, जिससे बचा जा सकता था। बहरहाल, बीरेन सिंह का इस्तीफा अब निश्चितरूप से मणिपुर संकट के समाधान के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। लेकिन जो देरी हुई है उससे रास्ता कठिन अवश्य हो गया है। इस समय राज्य के कुकी व मैतेई समुदायों के बीच पूर्ण अलगाव है। दोनों पक्षों ने खुद को हथियारों से लैस किया हुआ है। राजनीतिक समाधान का अर्थ बहुत बड़ा समझौता होगा। मैतेई राज्य के विभाजन को स्वीकार नहीं करेंगे, जबकि कुकी निश्चितरूप से अधिक स्वायतत्ता के लिए दबाव बनायेंगे। नई दिल्ली को समझौता कराने के लिए बहुत होशियारी से फूंक फूंककर कदम रखना होगा।
इससे एक महत्वपूर्ण बिंदु उभरता है कि दोनों पक्षों से हथियार लेने होंगे। दोनों कूकी व मैतेई गैंगों ने मणिपुर में सुरक्षा बलों की शस्त्रगाह पर धावा बोलकर हथियार लूटे हैं। इसके अतिरिक्त मणिपुर पुलिस पर आरोप है कि उसने पक्षपात से काम लिया। जब तक लूटे गये हथियार वापस नहीं लिए जाते हैं और मणिपुर पुलिस को सुधारा नहीं जाता है, तब तक वार्ता व समझौता प्रयासों के नतीजे सकारात्मक निकलना कठिन है। इस लेख के लिखने तक यह स्पष्ट नहीं था कि बीरेन सिंह की जगह नये मुख्यमंत्री को नियुक्त किया जायेगा या मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया जायेगा। भाजपा के संबित पात्रा इस समय मणिपुर में कैंप किये हुए हैं और अपनी पार्टी के विधायकों व सहयोगी दलों से वार्ता कर रहे हैं। भाजपा सूत्रों ने यह उम्मीद व्यक्त की है कि बीरेन सिंह के इस्तीफे से केंद्र को राज्य के दोनों मुख्य देशज समुदायों में शांति स्थापित करने में मदद मिलेगी।
मणिपुर की भाजपा अध्यक्ष ए शारदा का कहना है, ‘हम पार्टी से निर्देशों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’ बहरहाल, मणिपुर में राज्यपाल की चले या नया मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाये, दोनों ही सूरतों में चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ेगा। कूकी व मैतेई समुदायों के बीच जो अविश्वास की गहरी खाई खोद दी गई है, उसे पाटने में ज़बरदस्त प्रयास करने होंगे, जिनमें सुरक्षा बलों, सिविल सोसाइटी ग्रुप्स और राजनीतिक दलों को शामिल करना होगा। जिस स्तर का ध्रुवीकरण है, उसके कारण यह काम आसान नहीं लगता। लेकिन बीरेन सिंह का जाना एक शुरुआत अवश्य है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर