अकाली दल का संकट
विगत लम्बी अवधि से शिरोमणि अकाली दल संकट में घिरा हुआ दिखाई दे रहा है। समय के व्यतीत होने से यह संकट और भी गहराता जा रहा है। दशकों से पंजाब में अकाली दल का बड़ा प्रभाव बना रहा है। प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में इसका अहम योगदान रहा है। संघर्षों से उपजी यह पार्टी सिख भाईचारे के राजनीतिक और धार्मिक हितों की रक्षा करने के साथ-साथ अपने प्रदेश के विकास में लगातार योगदान डालती रही है। 1966 में नया पंजाब अस्तित्व में आने के बाद इसकी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में बड़ी हिस्सेदारी रही है। समय-समय इसमें कद्दावर नेता उभरते रहे हैं, जिनमें बाबा खड़क सिंह, मा. तारा सिंह, संत ़फतेह सिंह, संत हरचंद सिंह लौंगोवाल, जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा और स. प्रकाश सिंह बादल ने अपना बड़ा प्रभाव छोड़ा है। उनके पंथ और भाईचारे के लिए बड़े योगदान से इन्कार नहीं किया जा सकता। चाहे वह अपने समय में कई तरह के विवादों में घिरते रहे, परन्तु उनकी उपलब्धियां भी बड़ी मानी जाती रही हैं।
स. प्रकाश सिंह बादल प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री रहे। उनका नाम देश के वरिष्ठ नेताओं में शुमार किया जाता रहा है। अपने कार्यकाल में उनके समक्ष अनेक चुनौतियां दरपेश आईं परन्तु वह दृढ़ता, सहनशीलता एवं विश्वास के साथ इनका मुकाबला करते रहे। अपने राजनीतिक जीवन में जहां उन्हें भारी जीत प्राप्त हुईर्ं, वहीं उन्हें नमोशीजनक हार का भी मुंह देखना पड़ा, परन्तु अपने समाज के साथ उनकी प्रतिबद्धता हमेशा बनी रही। वह सूझवान थे, इसलिए उन्हें हर तरह का मान-सम्मान भी मिलता रहा। अकाल तख्त की ओर से भी उन्हें सम्मानित किया गया था। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन और उच्च पदों पर विराजमान होने के कारण उनकी अपनी अनेक सीमाएं भी रही हैं। उस समय के दौरान उनके कई कार्यों की कड़ी आलोचना भी हुई और व्यापक स्तर पर उनका विरोध भी किया गया, परन्तु स. बादल की अपने समाज के प्रति भरपूर देन से किसी भी तरह इन्कार नहीं किया जा सकता। नि:संदेह उनके जीवित रहते ही अकाली दल का पतन शुरू हो गया था परन्तु इसके बावजूद इनका प्रभाव अंत तक बना रहा। उनके समय से ही और उनके बाद राजनीतिक तौर पर लगातार मिली हार के कारण पार्टी और इसके नेतृत्व में भारी बिखराव शुरू हो गया।
ऐसे समय में चाहिए तो यह था कि अकाली नेतृत्व और पार्टी के समर्थक अन्य वर्गों से संबंधित नेता मिल-बैठ कर, दरपेश चुनौतियों संबंधी विचार-विमर्श करते, उनके सर्व-प्रवानित हल ढूंढने के लिए यत्नशील होते, परन्तु ऐसा सम्भव न हो सका तथा न ही एकता और साझी राय बनाने के किए गए यत्न ही सफल हो सके। आज बहुत-से अहंकार भरे नेताओं के कारण अकाली दल बुरी तरह बिखर गया है। इसकी आत्मिक शक्ति भी कमज़ोर पड़ गई है। अकाल तख्त साहिब से दिए गए आदेश भी लीडरशिप पर अपना प्रभाव नहीं बना सके, जिस कारण इससे भावुक रूप से जुड़े रहे भारी संख्या में लोगों को निराशा का मुंह देखना पड़ा। ऐसी निराशा से ही चार बार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के प्रधान रहे एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी को अपने पद से इस्तीफा देने के लिए विवश होना पड़ा। इससे पहले घटित घटनाक्रम, जिसमें दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को पद से हटाए जाने और श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा अकाली दल को पुनर्जीवित करने के लिए और नए सदस्य भर्ती करने के लिए बनाई गई कमेटी का काम नहीं कर पाने ने भी शिरोमणि अकाली दल के संकट को और गहरा किया।
नि:संदेह समय का अकाली नेतृत्व अपने बनते फज़र् को निभा पाने में असमर्थ रहा। इस समय अकाली दल को पैदा हुई ऐसी निराशाजनक स्थिति में से उभरना ज़रूरी होगा। ऐसे सभी संबंधित नेताओं की ओर से अपने हितों को छोड़ कर एक संयुक्त मंच पर एकजुट होने की भावना से ही सम्भव हो सकता है। ऐसा सांझा मंच ही इस पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए एक लहर बनाने में समर्थ हो सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द