हरित क्रांति की उपलब्धियों पर एक नज़र

भारत की लगातार बढ़ रही आबादी को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए अनाज का उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है। गत शताब्दी के 60वें दशक में शुरू हुए सब्ज़ इन्कबाल (हरित क्रांति) के दौरान जो गेहूं एवं चावल का उत्पादन बढ़ रहा है, उसमें और वृद्धि करने का महत्व अब उससे भी अधिक है।  एक तो किसानों की आय बढ़ाने के पक्ष से और दूसरा कमज़ोर एवं गरीब वर्गों को अनाज की प्रति सदस्य उपलब्धता बढ़ाने के पक्ष से। इसके अतिरिक्त दालों एवं तेल बीज फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि करने की ज़रूरत है ताकि इनके आयात पर जो विदेशी मुद्रा खर्च हो रही है, उसमें कमी हो। 
पहले सब्ज़ इन्कलाब (जो खत्म हो चुका है) की नींव तत्कालीन खाद्य एवं कृषि मंत्री सी. सुब्रमण्यम ने रखी थी, जिन्होंने उस समय के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा सचिव तथा आई.सी.ए.आर. के महानिदेशक स्व. प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन तथा भारत सरकार के कृषि आयुक्त स्वर्गीय डा. अमरीक सिंह चीमा जैसे दूरदर्शी वैज्ञानिकों की सलाह से मैक्सिको से अधिक उत्पादन देने वालीं अर्ध-बौनी लर्मा रोजो, सनोरा 64 तथा मायो 64 जैसी गेहूं की किस्मों के बीज डा. नार्मन ई बरलोग की मदद से मंगवा कर पंजाब एवं हरियाणा के किसानों को उपलब्ध किये। आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आई.ए.आर.आई.) के प्रसिद्ध ब्रीडर स्वर्गीय डा. वी.एस. माथुर एवं पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डा. डी.एस. अटवाल जैसे वैज्ञानिकों ने यहां के पर्यावरण के अनुकूल अधिक उत्पादन देने वाली किस्में विकसित करके किसानों को दीं, जिससे गेहूं की काश्त में एक इन्कलाब आया। डा. चीमा ने पंजाब एवं हरियाणा के किसानों को इन सभी नई किस्मों के बीजों की काश्त करने के लिए प्रेरित किया। इन पी.वी. 18 आदि किस्मों की गेहूं लाल रंग की थी, जो स्थानीय गेहूं के रंग से अलग थी।
इसकी कीमत संबंधी गठित किए गए आयोग ने नई गेहूं की खरीद की कीमत 5 रुपये प्रति क्ंिवटल कम रखी थी, परन्तु डा. स्वामीनाथन (उस समय के भारत सरकार के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा सचिव) तथा डा. चीमा (कृषि अयुक्त) ने तत्कालीन कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम से संसद में दोनों किस्मों की गेहूं की समान कीमत निर्धारित करने की घोषणा करवाई। इससे किसानों ने नई किस्मों की बढ़-चढ़ बिजाई की और गेहूं की काश्त संबंधी भारत सरकार को पूरा सहयोग दिया। भारत की अनुसंधान संस्थाओं एवं विश्वविद्यालयों के गेहूं के ब्रीडरों ने ‘कल्याण सोना’ तथा ‘सोनालीका’ जैसी किस्में, जो उस समय वातावरण के अनुकूल थीं, विकसित कीं, जिन्हें उपभोक्ताओं ने खूब पसंद किया। बाद में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डा. खेम सिंह गिल की अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं की डब्ल्यू.एल.-711 तथा डा. माथुर की एच.डी.-2281, एच.डी.-2329 तथा एच.डी.-2285 जैसी किस्मों की पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में व्यापक स्तर पर बिजाई की गई। इन किस्मों की लंबाई सब्ज़ इन्कलाब से पहले वाली किस्में से अधिक नहीं होने के कारण यह गिरती नहीं थीं, जिससे इनका उत्पादन अधिक था। 
चाहे यह पहला सब्ज़ इन्कलाब था, परन्तु चावल का उत्पादन ताइवान से टाईचंग-1 (टी.एन.-1) धान की बौनी किस्म का बीज ताइवान से मंगवाए जाने के बाद धान का अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की काश्त की शुरुआत हुई। पी.ए.यू. के उस समय के धान ब्रीडर स्व. डा. सोहन सिंह सैनी के प्रयासों से परमल धान की पी.आर.-106 किस्म, ताइवान से आई बौनी किस्मों की तकनीक इस्तेमाल करने से विकसित हुई, जो तत्कालीन उपकुलपति डा. ए.एस. चीमा ने तुरंत किसानों की काश्त हेतु रिलीज़ कर दी। 
यह किस्म बाद में किसानों के लिए आय का बड़ा साधन बनी। अनाज के पक्ष से सब्ज़ इन्कलाब (1966) के आगाज़ के मुकाबले वर्ष 2000 में विश्व में अनाज की औसत उपलब्धता में 22 प्रतिशत वृद्धि हुई। इस वृद्धि में जो धान का उत्पादन बढ़ने का योगदान है, वह धान के प्रसिद्ध ब्रीडर एवं वैज्ञानिक डा. गुरदेव सिंह खुश का है। 
इस प्रकार पहला सब्ज़ इन्कलाब गेहूं व धान का इन्कलाब था। इस दौरान किसानों को नई किस्मों के बीज, रासायनिक खाद के इस्तेमाल, ज़रूरी कृषि सामग्री तथा बीमारियों का मुकाबला करने के लिए यू.पी.एल. तथा अन्य ऐसी कम्पनियों द्वारा चेयरमैन जय शरोफ के नेतृत्व में कीटनाशक व नदीननाशक विकसित करके दिए गए।
अब सब्ज़ इन्कलाब का पहला दौर समाप्त हो चुका कहा जाने लगा, क्योंकि बढ़िया खाद, बीज एवं कीटनाशक की उपलब्धता से उत्पादन जितना बढ़ना था, लगभग बढ़ गया। और सामग्री के उपयोग से अब इसमें सब्ज़ इन्कलाब जितनी वृद्धि की गुंजाइश नहीं समझी जाती थी, परन्तु स्वर्गीय प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन ने कहा कि यह तो अब स्थायी सब्ज़ इन्कलाब (एवर ग्रीन रैवोल्यूशन) का दौर है, जिसमें उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयास लगातार एवं बढ़-चढ़ कर किए जाएंगे ताकि जो बढ़ रही जनसंख्या को अनाज की पर्याप्त उपलब्धता हो और किसानों की आय बढ़े। भारत सरकार द्वारा अब दूसरे राज्यों जिनमें असम, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश शामिल हैं, में उत्पादन बढ़ाने की योजनाबंदी करके प्रयत्न किए जा रहे हैं। इसके लिए झारखंड में आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान-99 स्थापित किया गया है। दूसरे सब्ज़ इन्कलाब के इस दौर के दौरान कृषि ज्ञान एवं विज्ञान प्रत्येक किसान तक पहुंचा कर तथा हर किसान को कृषि के साधन उपलब्ध करके उत्पादन बढ़ाने की ज़रूरत है, जिससे किसानों की आर्थिक हालत में सुधार होगा।

#हरित क्रांति की उपलब्धियों पर एक नज़र