किसी की नीयत बुरी हो तो धोखा मिलना तय है

महत्व इस बात का है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक या राजनीतिक जीवन में विश्वास होना परम् आवश्यक है। इसके केवल दो ही रूप हैं, पहला यह कि या तो जिस पर भरोसा किया, वह अपना वचन निभाएगा या नहीं निभा पाया तो स्पष्ट कह देगा कि उससे नहीं हो पाया और क्यों नहीं हुआ, उसके कारण भी बता देगा। दूसरा यह कि अगर विश्वास के मूल में उसकी यह भावना थी और रही है कि कसमों और वादों के बावजूद उसकी नीयत ख़राब है, ठगने की मंशा है और इतना गुरूर है कि उसका पकड़ में आना नामुमकिन है, तब धोखे का शिकार होना ही पड़ेगा। 
घर हो या बाहर एक विचित्र प्रकार की आपाधापी देखने को मिल रही है। कैसे भी हो, सबसे आगे निकलने की होड़ और मंज़िल पता हो या न हो, बस दौड़ते जाना ही ज़िन्दगी का हिस्सा बन गया है। धकियाना, टंगड़ी मारकर गिराना और चाहे अपना नुक़सान हो जाए, लेकिन दूसरा अवश्य लहूलुहान होना चाहिए, यह नज़रिया बनता जा रहा है। बड़ों का लिहाज़ या छोटों की शर्म जैसा कुछ रह नहीं गया है। जिनके लिए आदर्शों का महत्व है, उनका अपमान करना आज की पीढ़ी के एक वर्ग के लिये बहुत आसान हो गया है। पैसा और पद पाने के लिए किसी भी सीमा का पार करना सामान्य बात है। यह सोचने का समय ही नहीं रह गया लगता है कि मैं कौन हूं, मेरे मूल्य क्या हैं, किन परम्पराओं का पालन मुझे करना है और किन्हें छोड़ देना है। समाज के किस वर्ग का मैं प्रतिनिधि हूँ। मेरी ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत क्या है?
यह ऐसी मनोदशा है जिससे किसी व्यक्ति, समाज या फिर देश के नागरिक की परिभाषा गढ़ी जाती है। जहां तक संस्कृति का संबंध है, विश्व में सबके लिए उसकी कोई एक परिधि नहीं हो सकती, क्योंकि इसे निर्धारित करने में हमारी जीवन शैली, खानपान, पहनावा और यहां तक कि एक-दूसरे से मिलते समय अभिवादन करना तक आता है। किसी के लिए हाथ जोड़कर स्वागत करना है, अन्य के लिए हाथ मिलाना, गले लगना या चुम्बन लेना मिलने के आनंद को व्यक्त करना है। यह किसी के लिए सामान्य बात हो सकती है तो किसी के लिए आश्चर्य या अनोखी अथवा सीमा लांघने जैसी बात भी है। संस्कृति कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे एक दायरे में सीमित किया जा सके। इसी के साथ यह भी सत्य है कि अपनी सांस्कृतिक विभिन्नता और विशिष्टता से ही हमारा व्यक्तित्व बनता है क्योंकि खास तो सभी हैं, लेकिन सब के बीच अपनी पहचान अलग होती है। इस अनोखी और अनूठी पहचान का निर्माण सदियों में और समयानुसार बदलती परंपराओं, रीति रिवाज़ों और आपसी विश्वास से होता है। 
आज चाहे किसी भी आयु वर्ग में कोई भी हो, निश्छल विश्चास के स्थान पर तृष्णा, बेईमानी को आधार बनाकर संबंध बनाना और उस पर यह अहंकार करना कि यदि किसी ने समझाने की हिम्मत की तो उस पर ही गंदगी फेंककर अपने को उजला सिद्ध करने की कला हमें आती है, इसलिए जो कहा मान लेने में ही भलाई है। ऐसे में जिन्हें अपना मान सम्मान या जीवन भर जो अर्जित किया है, उस पर कोई दाग न लगे, ऐसी सोच के व्यक्ति हैं, वे ब्लैकमेलर के आगे झुक जाते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि वे गलत हैं या उन्होंने कोई अपराध किया है। विडंबना यह है कि व्यक्ति को भारी ठेस लगने के बावजूद वह कोई कदम नहीं उठाना चाहता, क्योंकि उसे यह यकीन ही नहीं होता कि जिसने उस पर लांछन लगाया है, कभी वह उसका विश्वासपात्र था।
अगर यह सामाजिक परिवर्तन है कि किसी भी तरह अपना स्वार्थ सिद्ध करना है और इससे चाहे किसी का जीवन ही पटरी से उतर जाए, कितना ही बड़ा मानसिक आघात क्यों न लगे, अपना मनोरथ पूरा करना है तो केवल ईश्वर ही मालिक है। अगर यही पुरातन से नवीन की व्याख्या है तब पूरी पीढ़ी का दायित्व बनता है कि अगर सोच से नकारात्मकता को नहीं हटाया गया तो उससे चाहे धन की लिप्सा पूरी हो जाए लेकिन जो अंतर्मन है, वह हमेशा कचोटता ही रहेगा और यह जीवन भर चलता रह सकता है। निरीह व्यक्ति के साथ विश्वासघात करने से उपजा विष कभी चैन से नहीं रहने देगा।  यह बीसवीं सदी की ही बात है जब एक ओर युद्ध के दौरान घातक परमाणु हथियारों से बड़े पैमाने पर तबाही कर स्वयं को सुरक्षित और ताकतवर बनाने की मानसिकता पनप रही थी, उसी समय दूसरी ओर विश्व इस बात पर विचार कर रहा था कि सामाजिक और सामुदायिक सुरक्षा के लिए क्या किया जाए? क्या किसी ने सोचा था कि इसका परिणाम यह होगा कि भूमंडलीकरण, आधुनिकीकरण, शहरीकरण और मास मीडिया के माध्यम से लोगों का जीवन बदलने की प्रक्रिया ऐसे मुकाम पर ला खड़ा कर देगी जहां एक ओर कुआं और दूसरी तरफ खाई है। पश्चिमी या अमरीकी सभ्यता के सामने एशियाई और विशेषकर भारतीय सभ्यता चुनौती है।
मिसाल के तौर पर कुछ भारतीयों ने अपना सब कुछ बेच कर कानूनी या गैर-कानूनी तरीके से अमरीका जाना केवल इसलिए जाना उचित समझा कि वहां धन, एश्वर्य, विलासिता के साधन जल्दी और आसानी से मिल जाएंगे, यही दर्शाता है कि जब हम अपनी विरासत को छोड़ कर दूसरों की अपने हिसाब से बनी दुनिया में जाना चाहते हैं तो यह धोखा भी हो सकता है जिस पर पछताना बी पड़ सकता है। अमरीका ने जिन भारतीयों को अमानवीय तरीके से वापिस भेजा, वह उसके कानून के अनुसार सही हो सकता है, लेकिन हमारे लिए यह प्रश्न तो है ही कि बिचौलियों ने किस तरह भ्रम में रखकर लोगों को अपने ऊपर विश्वास करने की स्थिति बनाने में सफलता पाई जिसका परिणाम यह हुआ कि दूसरे की धरती से अपमानित होकर आना पड़ा। इसमें शिक्षा और जागरुकता की कमी हो सकती है लेकिन बात तो यहीं आकर टिकती है कि किसी ने लालच और बदनीयती से इनके विश्वास को तोड़ा और जीवन बर्बाद कर दिया। 

#किसी की नीयत बुरी हो तो धोखा मिलना तय है