पाकिस्तान की भांति बर्बादी की ओर बढ़ता बांग्लादेश
बांग्लादेश पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ा रहा है। 30 लाख बांग्लादेशी लोगों की हत्या करने वाला पाकिस्तान अब दोस्त बन गया है और हर तरह से मदद करने वाला भारत दुश्मन। बांग्लादेश और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियां बांग्लादेश का भारत विरोध और पाकिस्तान प्रेम इस मुल्क पर भारी पड़ सकता है और भारी पड़ रहा है। 54 सालों में पहली बार बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सीधा कारोबार शुरू हुआ है। देखने वाली बात यह भी है कि पाकिस्तान और भारत के बीच संबंध सामान्य नहीं हैं और व्यापार ठप्प है। ऐसे में इसका असर भारत पर नहीं पाकिस्तान पर जरूर पड़ा है और वहां की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। बांग्लादेश के लिए भारत जो मायने रखता है, उसकी भरपाई पाकिस्तान तो कतई नहीं कर सकता है। जिस बांग्लादेश को पाकिस्तानी क्रूरता से मुक्त कराकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत ने जन्म दिया, उसका भारत-विरोधी रवैया दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, बल्कि विडम्बनापूर्ण भी कहा जाएगा। भारत को नज़रअंदाज़ करना बांग्लादेश को महंगा पड़ेगा।
अब अगर बांग्लादेश ने तय ही कर लिया है कि भारत से संबंध खराब करने की हर कीमत चुकाने के लिए तैयार है तो कुछ भी कहना बेमानी है। जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान की राह पर चलने की ठान ही ली है, तो उनके दुष्परिणाम भी उसे ही भुगतने होंगे। बांग्लादेश के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं, आम जनता पर दु:खों, परेशानियों एवं समस्याओं के पहाड़ टूटने लगे हैं। वहां आंतरिक गुटबाजी, प्रशासनिक शिथिलताएं, अराजकता और अव्यवस्था बढ़ रही है, उसे देखते हुए सेना प्रमुख जनरल वकार उज-जमां ने सेना की भूमिका बढ़ाने की बात कही है। उनका संकेत साफ है, यदि अंतरिम सरकार हालात को संभाल पाने में नाकाम रहती है, तो सेना मोर्चा संभालने को तैयार है। दरअसल, शेख हसीना के तख्ता-पलट के साथ वहां जिस तरह से राजनीतिक अस्थिरता एवं अराजकता बढ़ी है, उसका नुकसान पूरे देश को हो रहा है। न सिर्फ निवेश पर प्रभाव पड़ा है, विदेशी संबंध भी चरमरा रहे हैं, आर्थिक गिरावट तेज़ी से बढ़ रही है। भारत जैसे देश के साथ सामान्य व्यापार और ढांचागत विकास संबंधी योजनाओं में भी रुकावटें पैदा हुई हैं। बांग्लादेश भारत की उदारता के बावजूद टकराव के मूड में नज़र आ रहा है, उसका अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा को लेकर भी ऐसा ही रवैया है, जिस बारे में वह भले ही अब दलील दे रहा है कि हालिया बांग्लादेश में हिन्दुओं से जुड़ी हिंसक घटनाएं सांप्रदायिक नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से हुई हैं।
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि दोनों देशों के संबंध बिगाड़ने में पर्दे के पीछे पाकिस्तान की भूमिका साफ है। बांग्लादेश से हाल ही में आई रिपोर्ट चिंताजनक हैं। चल रहे राजनीतिक संकट और राज्य पुलिस की गिरावट ने अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर हिंदुओं पर लक्षित हमलों के लिए अनुकूल स्थिति पैदा कर दी है। 1947 से, हिंदू आबादी 30 प्रतिशत से घटकर 9 प्रतिशत से भी कम हो गई है। शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से स्थिति और खराब हो गई है, जो 2009 से सत्ता में थी। यह संकट पूर्वी पाकिस्तान और आधुनिक बांग्लादेश में हिंदुओं के प्रत्यक्ष और गुप्त नरसंहार के लम्बे इतिहास को दर्शाता है। मंदिरों और पवित्र स्थलों पर 200 से अधिक कथित हमलों सहित वर्तमान हिंसा एक बड़े, निरन्तर कट्टरतावादी अभियान का हिस्सा है। हालिया संकट, जो जुलाई 2024 में कथित छात्रों के विरोध प्रदर्शन से शुरू हुआ था, उसकी गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं और यह दशकों से बढ़ते मुस्लिम कट्टता से जुड़े तनावों को दर्शाता है।
भारत प्रारंभ से बांग्लादेश का सहयोगी एवं हितैषी रहा है, इसी कारण उसने पिछले डेढ़ दशकों में जो आर्थिक तरक्की हासिल की, छह फीसदी से अधिक दर से जीडीपी को बढ़ाया और 2026 तक विकासशील देशों के समूह में शामिल होने का सपना देखा, उन सब पर मोहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार संकीर्णतावादी एवं दुराग्रही सोच के कारण काली छाया मंडराने लगी है। आज कानून-व्यवस्था के सामने समस्या पैदा हो गई है, बांग्ला राष्ट्रवाद की वकालत करने वालों पर खतरा मंडरा रहा है, प्रगतिशील मुस्लिमों एवं अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं और बंगबंधु व मुक्ति संग्राम के इतिहास को मिटाने का प्रयास हो रहा है। बांग्लादेश की यह गति इसलिए हुई है, क्योंकि मोहम्मद यूनुस सरकार आम जन की अपेक्षाओं के अनुरूप चुनौतियों से लड़ पाने में नाकाम हो रही है और भारत से टकराव मोल लेने को तैयार बैठे बांग्लादेश के ऐसे हुक्मरान विवाद के नये-नये मुद्दे तलाश रहे हैं एवं दोनों देशों के आपसी संबंधों को नेस्तनाबूद कर रहे हैं। आज वहां संवैधानिक, राजनीतिक वैधता का संकट तो गहराया ही है साथ ही लोकतांत्रिक मूल्य भी समाप्त हो रहे हैं।
मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और अवामी लीग जैसी पार्टियों ने कभी पसंद नहीं किया और अब आम जनता का भी पूरा साथ उनको नहीं मिल रहा है। स्टूडेंट अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन के बैनर तले छात्रों ने अपना आंदोलन शुरू किया और शेख हसीना के तख्ता-पलट की वजह भी बना, तब उनकी मुख्य मांगों में रोज़गार प्रमुख रहा, मगर यूनुस सरकार अब इस मोर्चे पर भी फिसड्डी साबित हुई है। उनकी कट्टरपंथी सोच को देख उदारवादी छात्र खुद को छला हुआ महसूस करने लगे हैं। इस कारण विश्वविद्यालयों में हिंसा रूकने का नाम नहीं ले रही है। मोहम्मद यूनुस की अपरिपक्व राजनीतिक एवं कट्टरवादी सोच के कारण ही बांग्लादेश ने भारत से दूरियां बढ़ाई है। रस्सी जल गयी पर ऐंठन नहीं गई की स्थिति में यूनुस भूल गये कि अभी भारत में नरेन्द्र मोदी जैसे कद्दावर एवं सूझबूझ वाले विश्व नेता का शासन है, भारत से दुश्मनी कितनी भारी पड़ सकती है, पाकिस्तान की दुर्दशा से समझा जा सकता है। पाकिस्तान भारत विरोधी अभियान को लेकर बांग्लादेश पहुंचा है। अस्थिर हुए बांग्लादेश में चीन एवं पाकिस्तान जैसी बाहरी ताकतें दखल देने की इच्छुक हैं। इससे दोनों देश बांग्लादेश की जमीन से भारत को घेरना चाहते हैं, बांग्लादेश भी इन षड्यंत्रकारी देशों की गिरफ्त में आ गया है और वह भारत विरोध को तीक्ष्ण करने में जुट गया है। भारत अपनी सीमाओं को अभेद्य बना रहा है तो बांग्लादेश समझौते के बावजूद बाधाएं डाल रहा है।
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