निवेशकों के विश्वास के लिए बुच के खिलाफ ज़रूरी है निष्पक्ष जांच
मुंबई की विशेष भ्रष्टाचार-रोधी ब्यूरो (एसीबी) अदालत ने 1 मार्च, 2025 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की पूर्व प्रमुख माधबी पुरी बुच, सेबी के तीन अन्य अधिकारियों (अश्वनी भाटिया, अनंथ नारायण जी व कमलेशचन्द्र वार्ष्णेंय), बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के के पूर्व प्रमुख प्रमोद अग्रवाल और बीएसई के वर्तमान एमडी व सीईओ सुंदरामण राममूर्ति के विरुद्ध केस दर्ज करने व जांच के आदेश दिए हैं। आरोप यह है कि नियामक प्राधिकरणों, विशेषकर सेबी ने सेबी कानून 1992 और उसके तहत नियम व विनियम का अनुपालन किये बिना और धोखे व सांठगांठ से एक कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट किया। विशेष न्यायाधीश एसई बांगर के आदेश में कहा गया है, ‘नियामक खामियों और सांठगांठ के प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद हैं, जिनकी उचित व निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है।’ आदेश में महाराष्ट्र सरकार व भारत सरकार भी आरोपी हैं।
ये आरोप एक निजी शिकायत में लगाये गये हैं, जिसे एक मुंबई निवासी सपन श्रीवास्तव ने दर्ज कराये हैं और अपनी याचिका में उन्होंने खुद को ‘मीडिया रिपोर्टर’ बताया है। उन्होंने बाज़ार नियामक और उसके प्रमुख व अन्य अधिकारियों के विरुद्ध जांच कराने की मांग की है कि नियमों का उल्लंघन व सांठगांठ करके काल्स रिफायनरीज नामक एक कंपनी को लिस्ट किया गया था, जबकि वह निर्धारित मानदंड को पूरा नहीं करती थी। एसीबी अदालत के आदेश में इस कंपनी का नाम नहीं लिया गया है। दूसरी ओर 2 मार्च, 2025 को सेबी द्वारा जारी किये गये वक्तव्य में कहा गया है कि इस आदेश को चुनौती देने के लिए वह उचित कानूनी कदम उठायेगी और सभी मामलों में नियामक अनुपालन करने के लिए समर्पित है। सेबी के अनुसार, हालांकि यह अधिकारी प्रासंगिक समय (1994) पर संबंधित पदों पर नहीं थे, लेकिन ‘अदालत ने बिना नोटिस जारी किये या सेबी को रिकॉर्ड पर तथ्य प्रस्तुत करने का अवसर दिए बिना ही’ याचिका को स्वीकार कर लिया।
बीएसई ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि अदालती कागज़ों में जिस काल्स रिफायनरीज नामक कंपनी का नाम लिया गया है, उसे बीएसई में 1994 में लिस्ट किया गया था। सेबी की पहली महिला प्रमुख माधबी पुरी बुच का तीन वर्ष का कार्यकाल 28 फरवरी 2025 को समाप्त हो गया, लेकिन अभी तक भी वह सेबी से अपने हाथ पूरी तरह से नहीं धो पायी हैं। हालांकि पद पर रहते हुए वह हितों के टकराव आरोपों और संसद की लोकलेखा समिति (पीएसी) के समक्ष पेश होने से तो बच गईं थीं, लेकिन अब एसीबी अदालत ने उनके व अन्य अधिकारियों के खिलाफ एक कंपनी की लिस्टिंग के संदर्भ में केस दर्ज करने व जांच करने के आदेश दिए हैं। इस कंपनी को नियामक शर्तों का पालन किये बिना ही लिस्ट करने का आरोप है, जिससे निवेशकों को नुकसान हुआ। अदालत ने कहा है कि पहली दृष्टि में यह मामला नियामक खामियों और सांठगांठ का प्रतीत होता है।
नियामक संस्थाओं के प्रमुखों के विरुद्ध सांठगांठ व भ्रष्टाचार के आरोपों को साबित करना बहुत कठिन होता है। सेबी के एक अन्य प्रमुख सीबी भावे पर आरोप थे कि उन्होंने एमसीएक्स-एसएक्स को पूर्णकालिक स्टॉक एक्सचेंज के रूप में कार्य करने दिया था, लेकिन कुछ वर्षों बाद इस केस को बंद कर दिया गया। पिछले साल साक्ष्यों के अभाव का सहारा लेते हुए सेबी ने एनएसई को-लोकेशन केस में आरोपों को वापस ले लिया था, जिसका अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि किसी ने भी इस मामले को गंभीरता व गहराई से नहीं देखा था। प्रमुख आरोप यह था कि कुछ व्यापारियों को अपने सर्वर एनएसई के सर्वर के पास लगाने दिया गया था ताकि उन्हें स्पीड का लाभ मिल सके- वह अपने प्रतिद्वंदियों की तुलना में तेज़ व्यापार कर पा रहे थे।
सेबी का गठन 1988 में हुआ था और तब से वह अनेक हाई-प्रोफाइल स्कैंडलों को झेल चुकी है। हालांकि कुछ स्कैंडल जैसे सत्यम केस में ऑडिटर्स की सांठगांठ थी, लेकिन तथ्य यह है कि निवेशकों को सेबी सुरक्षित रखने में नाकाम ही रही है। 1992 के हर्षद मेहता घोटाले ने, जब सेंसेक्स एक वर्ष में चार गुना उछल गया था, निवेशकों के विश्वास को लम्बे समय तक हिलाये रखा था। फिर केतन पारिख घोटाला था और आईएल एंड एफएस का ध्वस्त होना भी। सहारा केस में सेबी ने 25,000 करोड़ निवेशकों को वापस करने का आदेश दिया था, लेकिन 13 साल बीत जाने के बावजूद 10 प्रतिशत पैसा भी वापस नहीं किया गया है। भारत का स्टॉक बाज़ार नया नहीं है, लेकिन मध्यवर्ग का इसमें मज़बूती के साथ हिस्सा लेना मात्र एक दशक पुराना है। हर महीने के बाद दूसरे महीने में, जब पोर्टफोलियो निवेशकों ने फंड्स निकाले भी हैं, मध्यवर्ग ने एसआईपी में अपना विश्वास बरकरार रखा है। पिछले अक्तूबर से अब तक सेंसेक्स में 10,000 पॉइंट्स से अधिक की गिरावट आयी है, जिससे मालूम होता है कि अब भी यह बाज़ार कितना कमज़ोर है।
पूर्व बैंकर व सिक्योरिटीज मार्किट एग्जीक्यूटिव माधबी पुरी बुच को 2 मार्च, 2022 को केंद्रीय काबीना की नियुक्ति समिति ने सेबी का प्रमुख ऐसे समय में बनाया था, जब देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई), अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को लेकर विवादों के घेरे में था। आईआईएम-अहमदाबाद की छात्रा रहीं बुच सेबी के लिए पूर्णत: बाहरी व्यक्ति नहीं थीं, वह अप्रैल 2017 और अक्तूबर 2021 के बीच चार वर्ष से अधिक तक इसकी पूर्णकालिक सदस्य रहीं थीं। उस अवधि के दौरान उन्होंने विभिन्न पोर्टफोलियो की निगरानी की, जिनमें बाज़ारों के विनियमन व सर्विलांस से लेकर बाज़ार बिचौलियों, आर्थिक व नीति समीक्षा आदि शामिल रहे। इस गहरी जानकारी व व्यक्तिगत अनुभव के मिश्रण के कारण बुच ने निजी वित्तीय क्षेत्र व सिक्योरिटीज उद्योग में तीन दशक से अधिक विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए गुज़ारा था और उन्हें जो रेगुलेटर के समकालीन नज़रिये का ज्ञान था उसकी बदौलत उनसे उम्मीद की गई थी कि वह सेबी में अच्छा काम कर सकेंगी और नये-युग की नियामक चुनौतियों का सामना कर सकेंगी। लेकिन बतौर सेबी प्रमुख उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा। अब रिटायरमेंट के बाद वह फिर विवादों के घेरे में हैं। याचिका में बुच व अन्यों के विरुद्ध जांच की मांग करते हुए कहा गया है कि जांच से ‘बड़े पैमाने पर वित्तीय फ्रॉड, नियामक उल्लंघन व भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हो जायेगा’। हालांकि अब तक इस सिलसिले में जितने भी घोटाले सामने आये हैं किसी में भी नियामक प्राधिकरणों के अधिकारी साफ बच निकले हैं, जबकि उनकी सांठगांठ के बिना घोटाला करना मुश्किल ही प्रतीत होता है और यह भी मुमकिन है कि इस बार भी सेबी या बीएसई से जुड़ा व्यक्ति अदालत में ‘निर्दोष’ पाया जाये। लेकिन त्वरित व निष्पक्ष जांच से निवेशकों का विश्वास तो लौट आयेगा, जो इस समय चरमराया हुआ है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर