साइबर ठगी के मामलों में तेज़ी से हो रही वृद्धि
मोबाइल पर नंबर मिलाते ही आजकल साइबर ठगी, डिजिटल अरेस्ट या ब्लैक मेलिंग से सतर्क रहने का संदेश सुनने को मिलता है। लगता है जैसे ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया वाले हालात बनते जा रहे हैं। देखने वाली बात यह है कि साइबर ठगी के इन रूपों से सबसे अधिक शिकार पढ़े लिखे और समझदार लोग ही हो रहे हैं। लाख प्रयासों के बावजूद ठगों के हौसले बुलंद हैं और ठगी का शिकार होने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी हालिया आंकड़ों को देखे तो पिछले तीन साल में ही ठगी के नए अवतार से ठगी की राशि 20 गुणा बढ़ गई है।
इस साल की शुरुआत के दो महीनों में ही 17 हज़ार 718 से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं और 210 करोड़ 21 लाख रुपये से अधिक की ठगी हो चुकी है। यह तो साल की शुरुआत के हाल है। पिछले तीन साल के आंकड़ों पर नज़र डाले तो हालात की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है। साल 2022 में साइबर ठगी, डिजीटल अरेस्ट या इस तरह की ब्लेकमेलिंग, ऑनलाइन ठगी आदि के 39,925 मामलों में 91 करोड़ 14 लाख की ठगी हुई थी जो एक साल बाद ही 2023 में मामलों की संख्या बढ़कर 60,676 हो गई और इसमें 339 करोड़ रुपये की राशि ठगी गई। हैरानी की बात यह है कि लाख प्रयासों के बावजूद 2024 की बढ़ोतरी तो और भी चिंतनीय रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2024 में एक लाख 23 हज़ार 672 मामले दर्ज हुए और 1935 करोड़ 51 लाख रुपये की ठगी हुई। ये वे मामले हैं जो पुलिस में दर्ज हुए हैं जबकि हज़ारों मामले ऐसे भी होंगे पुलिस के पास दर्ज ही नहीं करवाए गए होंगे। हैरानी की बात यह है कि ठगी के केन्द्र व ठगी के तरीके की जानकारी होने के बावजूद ऐसा होता जा रहा है। हालांकि झारखण्ड के जमातड़ा में ठगों के तंत्र को तोड़ दिया गया, परन्तु देश में एक या दो नहीं, अपितु 74 ज़िलों में इस तरह की ठगी करने वालों के हॉटस्पॉट विकसित हो गए। झारखण्ड, राजस्थान, हरियाणा और बिहार के केन्द्र पहले पांच प्रमुख सेंटर विकसित हो गए।
ऐसा नहीं है कि साइबर या इससे जुड़ी ठगी हमारे यहां ही होती है, अपितु देखा जाए तो यह आयातित ठगी का तरीका है। साइबर या यों कहें कि इस तरह की ठगी के मामलों में रशिया पहले पायदान पर है तो यूक्रेन दूसरे पायदान पर बना हुआ है। इनके बार चीन, अमरीका, नाइजीरिया और रोमानिया का नंबर आता है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि साइबर ठग अनेक देशों में बैठे हैं। लोगों की गाढ़ी कमाई को हज़म करने में ये माहिर होते हैं। ये ठग पढ़े-लिखे और जागरूक लोगों की कमज़ोरी पकड़ कर उन्हें भी आसानी से अपने जाल में लेते हैं।
हमारे देश की बात करें तो साइबर ठग या तो किसी तरह का लालच देकर लिंक भेज देते हैं और ठगी को अंजाम दे देते हैं तो दूसरी और डरा धमकाकर लोगों का अपना शिकार बना लेते हैं। सरकार प्रचार के सभी माध्यमों से बार-बार व लगातार सावधान करती रहती है। बैंक कभी भी बैंक डिटेल या ओटीपी ऑनलाइन नहीं मांगते, परन्तु पता नहीं लोग पिर भी कैसे ठगों के जाल में फंसकर अपनी मेहनत की कमाई लुटा बैठते हैं।
पुलिस अधिकारी बन कर जिस तरह से डिजिटल अरेस्ट कर ठगी का रास्ता अपनाया जा रहा है, उस संबंध में जागरूकता अभियान के बावजूद ठगी का शिकार होने वालों की संख्या में कमी नहीं हो रही है। डिजिटल अरेस्ट में डॉक्टर, रिटायर्ड जज, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी सहित संभ्रात वर्ग के लोगों को आसानी से जाल में फंसा लिया जाता है। झूठे मामलों में परिजनों को फंसने से बचाने का झांसा देकर ठगी हो रही है। लोग इस स्तर तक भयभीत हो जाते हैं कि किसी व्यक्ति या पुलिस से समस्या साझा करने की हिम्मत भी नहीं कर पाते और ठगी के बाद हाथ मलते रह जाते हैं। डिजिटल अरेस्ट के मामले तो बढ़ते ही जा रहे हैं। दरअसल इसमें पुलिस, सरकारी जांच एजेंसी या प्रवर्तन निदेशालय के नकली अधिकारी बन कर लोगों को भयभीत कर दिया जाता है।
देश में 74 हॉट-स्पॉट विकसित होने की जानकारी है। मीडिया द्वारा भी समय समय पर स्ट्रिंग कर इस तरह के केन्द्रों का पर्दाफास किया है, परन्तु ठगी कम होने का नाम नहीं ले रही है। दरअसल आम नागरिकों को भी सजग होना ही होगा। अनजान नंबरों पर बात ही नहीं करनी चाहिए। जैसी ही कोई डराये-धमकाए या लालच दे तो बहकावे में न आएं। इस तरह के हालात पैदा हों तो अपनी परेशानी दूसरों से साझा करें और पुलिस का सहयोग लेने में भी संकोच न करें। कुल मिलाकर सजगता व सावधानी ही इस समस्या का समाधान हो सकती है।
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