अशांत पड़ोसियों के बीच समृद्धि की ओर बढ़ता भारत

भारत के पड़ोस में इन दिनों हालात बेहद गंभीर है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। इनके बीच भारत प्रत्येक पक्ष से मज़बूत स्थिति में है। 
पाकिस्तान की हालत सबसे खराब है। इसकी अर्थव्यस्था लड़खड़ा रही है? वहीं बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादी आवाज़ें बुलंद हो रही हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे चरमपंथी संगठन सीधे सरकार को चुनौती दे रहे हैं। जानकारी के अनुसार पाकिस्तान के सबसे बड़े इस प्रांत में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है। अगर इस प्रांत में हिंसा बढ़ती है तो बीजिंग अपने कदम पीछे खींच सकता है जो पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा झटका सिद्ध होगा पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जनाक्रोश देखने को मिल रहा है। यहां पिछले कई दिनों से प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। बताया जा रहा है कि लोग सिंधु नदी पर बन रही 6 नहर परियोजना का विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि ये नहरें सिंध को उसके पानी से हमेशा के लिए वंचित कर देगी। पाकिस्तान में राजनीतिक स्तर पर भी हो रहे आन्दोलनों के कारण अर्थ-व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिल रहा है। इन सबसे बड़ा सवाल पैदा हो गया है कि क्या पाकिस्तान अपनी अखंडता को सुरक्षित रख पाएगा?
 भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय बांग्लादेश के अस्थिर हालात हैं। पिछले साल अगस्त में शेख हसीना की सत्ता जाने के बाद से उस देश का लोकतांत्रिक ढांचा चरमरा गया है। वहां की अर्थव्यवस्था रसातल की ओर जा रही है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार लगभग हर मोर्च पर नाकाम हो रही है। अल्पसंख्यक समुदायों पर लगातार हमले हो रहे हैं, देश में कट्टरपंथी ताकतें मज़बूत हो रही हैं, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र समेत कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं चिंता व्यक्त कर चुकी हैं। बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण हो रहे उपद्रवों से वहां के उद्योग धंधे बंद हो रहे हैं। बांग्लादेश के आंतरिक हालातों से लगता है कि उसकी स्थिति पाकिस्तान से भी बदतर होने वाली है।
 अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। पाक-अफगान सीमा पर हालात अत्यधिक तनावपूर्ण हैं। करीब 26 दिन तक बंद रहने के बाद तोरखम सीमा हाल ही में खुली है। हालांकि हालात बेहतर होते नहीं दिख रहे। 24 मार्च को पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने 16 अफगानिस्तानी घुसपैठियों का मार गिराया है। इस्लामाबाद की सबसे बड़ी चुनौती तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हमले जारी है।
अफगानिस्तान में लोगों को बुनियादी अधिकारों से भी वंचित किया जा रहा है, खासतौर पर महिलाओं को। कुछ दिन पहले यूनीसेफ  ने कहा था कि अफगानिस्तान में नए स्कूल वर्ष की शुरुआत के साथ ही लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा पर प्रतिबंध की शुरुआत के तीन साल पूरे हो गए हैं। यह निर्णय लाखों अफगान लड़कियों के भविष्य को नुकसान पहुंचा रहा है। यूनिसेफ के मुताबिक अफगानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदियां देश की स्वास्थ्य प्रणाली, अर्थव्यवस्था और देश के भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। लड़कियों को कम शिक्षा मिलने के कारण उनके बाल विवाह का अधिक जोखिम होता है जिसका उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा देश में योग्य महिला स्वास्थ्य एवं शिक्षा कर्मियों की भी कमी होगी।
श्रीलंका को पिछले कुछ वर्षों में गंभीर आर्थिक संकट, भारी ऋण, भुगतान संतुलन का संकट, आवश्यक वस्तुओं की कमी एवं राजनीतिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा है। जानकारों की माने तो श्रीलंका अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट से उबरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसकी चुनौतियां कम नहीं हो रही हैं। चीन का साथ उसे रास नहीं आ रहा है। वहीं चीन को भी श्रीलंका की मदद करना भारी पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक श्रीलंका के बाह्य ऋण पुनर्गठन से चीन को लगभग 7 अरब अमरीकी डॉलर का नुकसान हुआ है। राजनीतिक स्तर पर भी श्रीलंका में चीन को लेकर विरोध आम देखने को मिल रहा है। इस विरोध के कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है।
इन सब के बीच यदि हम भारत पर नज़र डालें तो देश में आंतरिक शांति, सुरक्षित सीमाएं, आर्थिक मोर्चे पर लगातार मिलती सफलता, श्रेष्ठ लोकतांत्रिक प्रक्रिया, संवैधानिक संस्थाओं का मज़बूत होना, वैश्विक नेतृत्व और स्वतंत्र विदेश नीति इसकी सफलता का परिणाम है। भारत के कुशल नेतृत्व ने अपनी विदेश नीति में इस प्रकार बदलाव किया है कि जो चीन हर समय हर मोर्च पर भारत को आंख दिखाने की कोशिश करता था, वह अब भारत की वैश्विक स्तर पर बढ़ती ताकत एवं वर्चस्व को लेकर समझ नहीं पा रहा है कि भारत के विश्व नेतृत्व को किस प्रकार रोका जाये। चीन की भारत के पड़ोसिओं को लेकर जो नीति रही है, वह आज उसके लिए ही नुकसानदेह साबित हो रही है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के लगभग सभी जानकार और दुनिया के बड़े नेताओं ने भी माना है कि भारत की कामयाबी का सिलसिला भविष्य में और बढ़ता जाएगा। (युवराज)

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