इन्द्रधनुष की कहानी
इन्द्रधनुष बरसात के दिनों में वर्षा के बाद दिखाई पड़ता है। वास्तव में इन्द्रधनुष का दिखना प्रकृति की एक घटना है जिसको देखकर आम आदमी अचम्भे में पड़ जाता है। यह जब आकाश में बनता है तो हजारों लाखों आंखें इसे तब तक देखते रहते हैं जब तक यह ओझल नहीं हो जाता।
सर्वप्रथम पोलैण्ड के वैज्ञानिक विटले ने सन् 1930 में इन्द्रधनुष के बनने में प्रकाश के सिद्धांतों के आधार बताया। उन्होंने इन्द्रधनुष के बनने में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा। इसकी व्याख्या सर आइजक न्यूटन ने की। उन्होंने 1664-65 ईस्वी में सूर्य के प्रकाश को सात रंगों में विभाजित भी किया।
वास्तव में इन्द्रधनुष का बनना प्रकाश के सिद्धांतों पर आधारित है। यह प्रकाश के परावर्तन, वर्तन, पूर्ण आन्तरिक परिवर्तन और वर्ण-विक्षेपण का एक अच्छा उदाहरण है। इसके बनने में सूर्य के प्रकाश और पानी की बूंदों की अहम भूमिका है। वर्षा के बाद हवा में मौजूद धूलकणों पर अटकी वर्षा की बूंदों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं और फिर परावर्तित होती हैं वह रंगों में बिखर जाती हैं।
इन्द्रधनुष की विशेषता है कि यह कभी दोपहर में नहीं दिखाई पड़ता है। सुबह सूर्य के निकलने के बाद या शाम को सूर्य ढलने से पहले, बशर्ते सूर्य चमक रहा हो और उसके सामने पानी की अपार बूंदें हों तथा बूंदों के बीच का कोण 40 डिग्री बनना चाहिए।
इन्द्रधनुष में रंगों का क्र म इस तरह होता है-लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी, बैंगनी। इसमें लाल और बैंगनी रंग को छोड़कर शेष सभी रंग एक-दूसरे में इतने घुले-मिले होते हैं कि उनको अलग-अलग नहीं देखा जा सकता है लेकिन इन्द्रधनुष के रंगीन चित्रों में सात रंगों को साफ-साफ देखा जा सकता है।
यदा कदा एक साथ दो इन्द्रधुनष दिखलाई पड़ते हैं जो दोनों एक साथ होते हैं। इनमें से नीचे वाला स्पष्ट और प्राथमिक इन्द्रधनुष है और ऊपर वाला द्वितीयक और हल्का दिखलाई पड़ता है। द्वितीयक इन्द्रधनुष में रंगों का क्र म उल्टा होता है। ऐसा भी देखा गया है कि काफी ऊंचाई पर हवाई जहाज उड़ रहे हों और इन्द्रधनुष बना हो तो वह सर्कल में दिखाई पड़ता है।
यह तो हुआ बरसात के दिनों में इन्द्रधनुष का बनना लेकिन आये दिन हम रास्ते पर भी रंगों का मेला देख लेते हैं। दरअसल होता यह है कि रास्ते में पानी के जो गड्डे होते हैं उनमें तेलखोर वाहनों से पेट्रोल या डीजल की चंद बूंदें टपक पड़ती हैं और ये तेल की बूंदें पानी पर फैलकर एक पतली फिल्म या परत बना लेती हैं। जब इस पर सूर्य की रोशनी पड़ती है तो हमें उस पतली परत में बेहतरीन रंग देखने को मिलते हैं।
इन्द्रधनुष की स्थिति के आधार पर बरसात की भविष्यवाणी की जाती है। इन्द्रधनुष को कहीं इन्द्र का देवता तो कहीं नागराज माना जाता है। (उर्वशी)