कछुआ और हाथी
एक जंगल में एक तालाब था। तालाब में बहुत सारे बड़े-बड़े कछुए रहते थे। एक बार एक मछुआरा वहां आया और सारे कछुओं को जाल से पकड़कर एक बोरे में भर कर ले जाने लगा।
रास्ते में जो भी जानवर मिले उनसे कछुओं ने जान बचाने की आग्रह किया। मगर किसी ने कछुओं को मछुआरे से बचाने की हिम्मत नहीं की। अंत में कछुओं ने एक हाथी को अपनी ओर आते देखकर सारे कछुओं ने कहा ‘हाथी भैया रुक जाओ, और हम सबको इस मछुआरे से बचा लो। यह हम सबको पकड़कर शहर में बेचने के लिए ले जा रहा है। इतना कहकर सारे कछुए बोरे में बने छेद से मुंह निकाल कर रोने लगे।’
कछुओं को रोते देख हाथी ने तुरंत मछुआरे से कछुओं से भरा बोरा छिनकर बोला-‘तुम अब कछुओं को शहर नहीं ले जा सकते हो। तुम सीधे से अपने घर लौट जाओ वरना मैं तुम्हें पटक-पटककर तुम्हारी जान ले लूंगा।
मछुआरा हाथी से डर घर की ओर चल दिया। हाथी ने बोरे सहित सारे कछुओं को सूंड से उठाकर तालाब की ओर लेकर चल दिया। तालाब के किनारे पहुंचकर हाथी ने बोरे का मुंह खोलकर सारे कछुओं को तालाब में छोड़ दिया।
तालाब में पहुंचकर सारे कछुओं ने हाथी भैया को लाख-लाख बधाई दी।
कुछ दिनों के बाद हाथी भीषण गर्मी से परेशान होकर उसी तालाब में नहाने के लिए चल दिया।
तालाब में उतर कर हाथी नहाने लगा। इतने में हाथी का भारी भरकम पैर तालाब के दलदल में धंस गया।
हाथी तालाब से बाहर निकलने के लिए परेशान हो गया। वह एक पैर आगे बढ़ाता तो दूसरा पैर दलदल में धंस जाता। हाथी बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगा।
हाथी भैया की आवाज सुनकर तालाब में रहने वाले सारे कछुए पानी से बाहर आकर हाथी भैया से पूछ पड़े-
‘हाथी भैया आप क्यों बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे हैं?’
हाथी बोला कछुआ भाईयों मैं तालाब के दलदल में धंस गया हूं। मुझे किसी तरह तुम सब बाहर निकालो। वरना दलदल में फंसकर मर जाउंगा।’
हाथी की बात सुनकर सारे कछुए बोले हम सब अभी मिलकर दलदल को हटा देते हैं। फिर आप हमारे पीठ पर पैर रखकर तालाब से बाहर निकल जाइयेगा। देखते-ही देखते सारे कछुओं ने मिलकर सारे दलदल को हाथी के पैरों के नीचे से हटाकर खुद लाइन से बैठ गए और हाथी से बोले-‘हाथी भैया अब आप हमारे पीठ पर पैर रखकर तालाब से बाहर निकल जाइए।’
हाथी धीरे-धीरे कछुओं के पीठ पर पैर रखकर तालाब से बाहर आकर सारे कछुओं को धन्यवाद देते हुए बोला-‘कछुआ भाईयों आप सबने मुझे तालाब से बाहर निकाल कर मेरे द्वारा किए एहसान का बदला चुका दिया। मैं आप सबका एहसान जीवन भर याद रखूंगा।’ इतना कहकर हाथी जंगल में अपने ठिकाने की ओर चल दिया। (सुमन सागर)