राजा को सबक
एक बार विराटनगर के राजा चंद्रभान ने राज्य के लोगों में भूमि का वितरण किया। उसने किसानों और मज़दूरों-कारीगरों को भूमि कम कर दी और ब्राह्मणों को काफी अधिक भूमि दी। इस पर लोगों ने सवाल उठाया कि ऐसा क्यों? तो राजा ने स्पष्ट किया, ‘ब्राह्मण अन्य लोगों से अधिक ज्ञानी और बुद्धिमान होते हैं, इसलिए उन्हें अधिक भूमि देना ठीक है। वस्तुत: यह उनकी योग्यता का सम्मान है।’
स बात पर अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में खड़े लुहार और भिस्ती (पानी पिलाने वाला) चिढ़ गये। दोनों मित्र थे। उन्होंने आपस में सलाह कर राजा को सबक सिखाने की सोची। जब लुहार का नम्बर आया तो राजा ने उससे पूछा, ‘तुम्हारा काम कितनी भूमि से चल जाएगा?’ लुहार बोला- ‘महाराज, हथौड़े और कान के मध्य जितना अंतर है बस उतनी भूमि ही काफी होगी।’
बात राजा की समझ नहीं आई यद्यपि उसने सोचा इसे अपना काम करने को 2-4 गज जमीन पर्याप्त होगी। फिर भिस्ती से पूछा, ‘तुम कितनी भूमि लोगे?’ भिस्ती ने बताया, ‘महाराज, एक मशक (मशक-चमड़े का बना पानी का पात्र) भर पानी जितनी जगह में आसानी से समा जाए, बस उतनी भूमि मेरे लिए पर्याप्त होगी।’ राजा ने सोचा इसे भी 4-6 गज जमीन ही चाहिए। राजा ने दो कारिंदे उन दोनों के साथ भेजे, कहा, ‘इन्हें जमीन नाप दो।’
जब कारिंदे जमीन नापने लगे तो लुहार और भिस्ती की बात जानकर दंग रह गये। लुहार बोला, ‘एक हथौड़े की आवाज जहां तक कान आसानी से सुन सकें, वहां तक जमीन चाहिए।’ लोहार बोला, ‘एक मशक पानी जितनी जमीन में छिड़का जा सके मुझे उतनी जमीन चाहिए।’ चकराए कारिंदे दोनों को साथ लेकर राजा के सन्मुख पहुंचे। उन्हें बताया, ‘महाराज, यह तो बहुत भूमि मांग रहे हैं। आप इन्हें समझाएं।’ राजा बोला, ‘क्यों भाई, तुम तो बहुत कम भूमि चाहते थे। अब कारिदों को क्यों परेशान कर रहे हो? इसकी सजा जानते हो?’
‘जी महाराज,’ दोनों ने एक साथ कहा। फिर लोहार बोला, ‘महाराज मैंने तो उतनी ही भूमि मांगी है जैसा कि आपको बताया कि हथौड़े और कान के मध्य जितनी दूरी है। कारिंदे समझ ही नहीं रहे। आप ही बताएं मेरी मांग क्या अनुचित है?’
राजा इस पर खुद भी चकरा गये। फिर भिस्ती बोला, ‘महाराज, मैंने तो आपसे कहा ही था कि एक मशक भर पानी जितनी भूमि में आसानी से समा जाए, बस उतनी ही भूमि चाहिए। मैं भूमि पर पानी छिड़कने लगा तो कारिंदे बोले-एक जगह मशक उड़ेल दो। महाराज आप ही बताएं, क्या एक स्थान पर मशक उड़ेल देने पर पानी आसानी से भूमि में समाएगा?’
राजा लुहार और भिस्ती की बुद्धिमानी पर हैरान रह गया। उन्हें दोनों को मजबूरन उनकी मर्जी की भूमि नाप देने का आदेश अपने कारिंदों को देना पड़ा। साथ ही कहा, ‘मैं इनकी बुद्धिमानी से चकित हूं। इन्होंने बुद्धिमानी में ब्राह्मणों को भी मात कर दिया। उन्हें दस-दस स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार में दी जाएं।’
दोनों मित्र बोले, ‘क्षमा करें महाराज, हमें न तो भूमि चाहिए न इनाम। हम तो आपके पक्षपात से क्षुब्ध थे और आपको उसका बोध कराना चाहते थे। आपने उन ब्राह्मणों को अधिक भूमि दी जो स्वयं कृषि नहीं कर सकते और दूसरों के दान पर जिन्हें जीवन बिताने की आदत है और जो हाड़ तोड़ मेहनत कर राज्य को खुशहाल बनाए रखते हैं उन मजदूर, किसानों, कारीगरों को कम भूमि दी।’
राजा लुहार और भिस्ती की बातें सुन चकरा गया। बोला, ‘ओह, मैं तो सिर्फ ब्राह्मणों को ही बुद्धिमान मानता था। तुमने मुझे यह बोध करा दिया कि बुद्धिमानी किसी वर्ग विशेष की बपौती नहीं है। मुझे क्षमा करना। मैं वचन देता हूं कि आज के बाद मैं किसी से किसी तरह का पक्षपात नहीं करूंगा। और हां, राजकाज संचालन में मैं आगे तुम लोगों से भी विचार विमर्श किया करूंगा।’ (उर्वशी)