शब्दों की मर्यादा लांघते राजनीतिक नेता

इंडिया’ गठबंधन के नेता कई बार यह दोहरा चुके हैं कि वे सत्ता में आते ही मोदी को जेल भेजेंगे। कांग्रेस सहित ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों के नेताओं की भाषा से कई बार यह हुंकार सुनी जा चुकी है। ये नेता मोदी के बारे में अपनी नफरत और घृणा को कभी छिपाते भी नहीं है। समाजवादी विचारक और चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया अपने जीवनकाल में कांग्रेस के खिलाफ  लगातार बोलते रहते थे। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस को सत्ताच्युत करने के लिए शैतान से भी हाथ मिलाने को तैयार है। मगर भारी विरोध के बावजूद उन्होंने कभी नहीं कहा कि वह सत्ता में आते ही प. नेहरू को जेल भेजेंगे। मगर नरेंद्र मोदी जब से देश के प्रधानमंत्री बने हैं तभी से विपक्ष के छोटे से बड़े नेता यह कहते नहीं थकते कि विपक्ष के सत्ता में आते ही मोदी की जगह जेल में होंगी। 
जेल की बात चली है तो गौरतलब है एक बार जनता पार्टी के 1977 में सत्ता में आते ही इंदिरा गांधी को जेल भेजने की बात कही जाने लगी और आखिर इंदिरा गांधी को जेल भेजा गया, जिसकी परिणीति यह हुई कि जनता ने इसे पसंद नहीं किया और इंदिरा गांधी बड़े बहुमत के साथ वापिस सत्ता में लौटी। आज एक बार फिर यही सब कुछ मोदी के बारे में कहा सुना जा रहा है। मोदी का कसूर यही है कि उन्होंने जनधन पर डाका डालने वालों को जेल भेजा। ऐसा भी देखा गया है कि मोदी पर हो रहे शाब्दिक हमले का जवाब उनकी पार्टी के नेता उसी भाषा में देते हैं, जिसे सुनना ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं को अच्छा नहीं लगता है। फिर राहुल गांधी को भी तरह-तरह की उपमाओं से नवाज़ा जाता है।
वक्फ  बिल पर संसद की भीरत और बाहर जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएं सुनने और देखने को मिली हैं, वे लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने के लिए पर्याप्त है। इसी भांति किसान आंदोलन के दौरान नफरत और घृणा का जैसा घमासान देखने को मिला, वह दुर्लभतम उदाहरणों में से एक है। इससे पूर्व नागरिकता कानून के विरोध में हुए आंदोलन में नफरत का खुलकर इज़हार किया गया। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में खून की नदियां बहाने की बात कही गई। अब यही बातें वक्फ  बिल पर संसद की मुहर लगने के बाद दोहराई जा रही है। देश में संसद और संसद के बाहर मर्यादाहीन भाषा से लोकतंत्र पर खतरा मंडराने लगा है। संसद के सत्र की शुरुआत नफरत भरे बयानों से होती है। 
आज हालत यह हो गयी है की देश में कोई भी वारदात होती है या घटना  घटित हो जाती है तो तुरंत ऐसे-ऐसे बयानवीर और उनके ज़हरीले बयानों का देश को सामना करना पड़ता है जिसे पढ़ और सुनकर सिर न केवल शर्म से झुक जाता है अपितु लोकतंत्र की बुनियाद भी कमज़ोर होने का खतरा मंडराने लगता है। कई बार तो इन दुर्भाग्य पूर्ण घटनाओं से सीधे प्रधानमंत्री का नाम जोड़ कर निंदा के बयानों की झड़ी लग जाती है। प्रधानमंत्री पर शाब्दिक हमले को उनकी पार्टी के लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते और पलटवार के रूप में जिस भाषा का प्रयोग होता है, उसे भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। यहां हम बयानवीरों के नाम और उनके वक्तव्यों का उल्लेख नहीं करना चाहते, मगर यह अवश्य कहना चाहते हैं कि नफरत की यह सियासत किसी के लिए भी उचित नहीं है। इससे देश कमजोर होता है।
देश में नफरत की भावना का प्रसार बड़ी तेड़ी से हो रहा है। या यूं कहे समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो किसी भी हालत में सद्भावना और प्यार-मोहब्बत को मिटाने पर तुले हुए हैं। इनमें उनके निहीत स्वार्थ हैं। आज पक्ष और विपक्ष में मतभेद और मनभेद की गहरी खाई है। यह अंधी खाई हमारी लोकतान्त्रिक परम्पराओं को नष्ट-भ्रष्ट करने को आतुर है। भारत सदा सर्वदा से प्यार और मोहब्बत से आगे बढ़ा है। हमारा इतिहास इस बात का गवाह है हमने कभी नफरत को नहीं अपनाया। हमने सदा सहिष्णुता के मार्ग का अनुसरण कर देश को मज़बूत बनाया। देश में व्याप्त नफरत के इस माहौल को खत्म करके लोकतंत्र की ज्वाला को पुर्नस्थापित करने की महती ज़रूरत है और यह तभी संभव है जब हम खुद अनुशासित होंगे और मर्यादा की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन नहीं करेंगे और दूसरों को भी नहीं करने देंगे।

#शब्दों की मर्यादा लांघते राजनीतिक नेता