जल संरक्षण को एक मिशन बनाना होगा
जल बचाने का हम सभी को अपने जीवन में मिशन बनाना होगा वरना आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। जल है तो कल है, इस बात को भी हमें समझना-जानना होगा। भारतवर्ष गांव का देश है। गांवों में भारत की आत्मा का वास है। यह बात कोई यूं ही नहीं कही गई है। गांव में लोग साधारण जीवन जीते हैं। एक दूसरे का साथ देना तथा प्रकृति-पर्यावरण को व्यवस्थित रखना इनका मंत्र रहा है। ग्रामीण लोग महानगरीय या शहरी जीवन की चकाचौंध से दूर रहते हैं। गांव का रहन-सहन, खान-पान आदि सभी कुछ शहरी जीवन से अलग है।
भारतीय गांव को बसाने की व्यवस्था भी बहुत ही वैज्ञानिक और तकनीक से भरी रही है। आप जब भी किसी गांव में जाते हैं, तो देखेंगे कि गांव एक ऊंचे टीले पर बसा हुआ है। इसके पीछे बहुत सारे कारण रहे हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तो गांव में जल संरक्षण रहा है। गांव टीले अर्थात ऊंचे स्थान पर बसाया गया है तो गांव में बाढ़ आने का खतरा नहीं के बराबर है। इससे लोग और मवेशी बरसात के दिनों में सुरक्षित रहते थे। दूसरी बात यह है कि बरसात के दिनों में गांव के आसपास सारे ताल-तलैया बरसाती पानी से भर जाते थे। उसी के पास पीने के पानी का कुआं बना लिया जाता था। गांव ऊंचे स्थान पर है तो वहां गंदा पानी रुकने की कोई समस्या नहीं थी। सारा गंदा पानी नालियों से निकलकर एक खराब पानी के तालाब में चला जाता था। इससे बीमारियां भी कम फैलती। हर गांव की व्यवस्था में आपको यह दृश्य स्वत: ही मिल जाएगा कि एक तो मीठे पानी का तालाब, दूसरा खराब पानी के लिए तालाब।
इसके साथ ही समझने की बात यह भी रही कि हर एक मीठे पानी के तालाब के पास ग्राम देवता का मंदिर या अन्य देवी-देवता का मंदिर बना होता है। उसके चारों ओर पीपल, बरगद आदि के वृक्ष भी लगे मिल जाते हैं। ये वृक्ष भी पानी को शुद्ध रखने में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। तालाब और वृक्ष होने के कारण पक्षियों की चहचहाहट भी बनी रहती थी। एक साथ कितना बड़ा प्राकृतिक संगम दिखाई देता था। यह कार्य आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों प्रकार से ही महत्वपूर्ण है। तालाब के पास ही पीने के पानी का कुआं भी बना मिलता है और भारतीय ग्रामीण जीवन में कुआं पूजन की व्यवस्था आज भी है। पूजनीय स्थान होने के कारण लोग मीठे पानी के तालाब को गंदा नहीं करते थे। इस दृष्टि से हमें पता चलता है कि जल स्रोतों की पूजा होती रही है, साथ ही उसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित करके रखने का भी प्रयास किया जाता रहा है।
जैसे-जैसे हम आधुनिकता की ओर बढ़े, हमने ज़मीनों को कब्ज़ाना शुरू कर दिया। उसमें सबसे पहले हमने कुआं, तालाब आदि की ज़मीनों में अपने पैर फैलाए। इन सब जल स्रोतों की ज़मीन को सुखाया गया और वहां पर भराव करके घर बनाने तथा अन्य काम करने शुरू कर दिए। इसके साथ ही जब नई-नई सड़कों आदि का निर्माण किया तो उसमें भी कितने ही तालाबों में मिट्टी डालकर बंद कर दिया गया। आज गांवों में बचे हुए कुछ तालाबों की हालत दयनीय स्थिति में पहुंच गई है।
आज हालात यह हैं कि महानगरों में स्वच्छ पानी के स्रोत कम और गंदे पानी के नाले अधिक दिखाई दे रहे हैं। जब नगरों-महानगरों को बसाया जा रहा था तो जल स्रोतों के बारे में सोचा ही नहीं गया। केवल विकास के नाम पर काम होता रहा। भविष्य की योजनाएं ठंडे बस्ती में पता नहीं किसका इंतज़ार करती रहीं। आज हमने स्वच्छ नदियों को नाले बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सभी सरकार को दोष देते हैं लेकिन व्यक्ति स्वयं क्या कर रहा है, इस पर भी सोचने की ज़रूरत है। हमें अपने जल स्रोतों को बचाना होगा, आने वाली पीढ़ियों को नया जीवन और संदेश देना होगा। (युवराज)