शेयर बाज़ार को रास नहीं आ रहे ट्रम्प के टैरिफ  नुस्खे

समीक्षक जिम क्रेमर की चेतावनी काले सोमवार की थी, जैसा कि 1987 में देखने को मिला था, जब डाऊ जोंस 22.6 प्रतिशत गिर गया था। हालांकि इस सोमवार (7 अप्रैल 2025) को उस काले सोमवार का पूर्णत: पुनरावर्तन तो न हुआ, लेकिन टोक्यो से लंदन और न्यूयॉर्क से मुम्बई तक स्टॉक बाज़ार जिस तरह से धड़ाम होकर गिरे, वह कम डरावना नहीं था। अपना सेंसेक्स और निफ्टी लगभग 3 प्रतिशत गिरकर बंद हुए, लेकिन हेंगसेंग 13.2 प्रतिशत और निक्कई लगभग 8 प्रतिशत बाजार पूंजीकरण खोया। यूरोपीय स्टॉक्स और अमरीकी फ्यूचर्स का हाल भी बुरा रहा। ‘नीम-हकीम खतरा-ए-जान’ मुहाविरा बचपन से सुनते आये थे, अब देख भी रहे हैं। ट्रम्प ने 2 अप्रैल, 2025 को अपनी ‘टैरिफ  दवा’ दी थी और तभी से बेचारा स्टॉक बाज़ार ठीक होने की बजाय और बीमार होता जा रहा है। इसके बावजूद वह इससे भी ज्यादा कड़वी दवा देने की ज़िद किए हुए हैं। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने चीन को धमकी दी है कि अगर उसने सभी अमरीकी आयात पर 34 प्रतिशत जवाबी ड्यूटी को वापिस न लिया तो वह अतिरिक्त 50 प्रतिशत टैरिफ लगायेगें।
ट्रम्प के इस जुए से उनके समर्थक अरबपतियों में भी घबराहट व बेचैनी है, जिस कारण अब वे मागा टैरिफ  ट्रेन से नीचे कूद रहे हैं और ‘आर्थिक परमाणु जाड़े’ की भविष्यवाणी कर रहे हैं क्योंकि ट्रम्प जिस ग्लोबल ट्रेड व कॉमर्स को पुन: व्यवस्थित करने का दावा कर रहे हैं, वह ही पटरी से उतरती जा रही है। सोने के दाम भी गिर रहे हैं जो इस बात का संकेत है कि निवेशक इस सुरक्षित एसेट को भी बेच रहे हैं ताकि अन्य निवेशों में हो रहे नुकसान की भरपाई कर सके। 7 अप्रैल को भारत में सोने का दाम 1900 रुपये कम हुआ और सेंसेक्स 2227 पॉइंट्स गिरा, जोकि 24 फरवरी, 2022 के बाद से अधिकतम है, जब सेंसेक्स 2702 पॉइंट्स गिरा था। इससे साफ है कि ट्रम्प का नुस्खा किसी काम का नहीं है। लेकिन उनकी ज़िद यह है कि वह इसे बदलने के लिए कतई तैयार नहीं हैं, बावजूद इसके कि अन्य सरकारें विकल्प तलाश कर रहीं है और अमरीका से इतर व्यापार समझौते भी कर रही हैं। इस व्यापार युद्ध के चलते अब चीन की ही तरह यूरोपीय संघ भी जवाबी टैरिफ  लगाने जा रहा है और उसने उन उत्पादों की सूची तैयार की है जिन पर वह टैरिफ  लगायेगा। 
बहरहाल,  टैरिफ  युद्ध में भारत ने अलग रुख अपनाया है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने व्यापार युद्ध के लिए चीन की ‘अनुचित व्यापार नीतियों’ को दोषी ठहराया है, जोकि कम दामों में निर्माण और सस्ते सामान पर आधारित है। इस बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमरीका के विदेश सचिव मार्को रुबियो से बात की है और द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) को जल्द पूरा करने के महत्व पर बल दिया है। चीन व कुछ अन्यों की तरह भारत ने अमरीका पर जवाबी टैरिफ  नहीं लगाया है बल्कि उसके साथ व्यापार समझौता करने का विकल्प चुना है। दरअसल, ट्रम्प चाहते हैं उसे उनके कार्यकाल (4 वर्ष) की छोटी अवधि में हासिल नहीं किया जा सकता। उनके टैरिफ  से जो अनिश्चितता उत्पन्न हुई है, वह वैश्विक बाज़ार को गहरी चोट पहुंचा रही है। किसी को नहीं मालूम है कि मांग व विकास का क्या होगा या यह सिलसिला कितने लम्बे समय तक चलेगा। हालांकि अमरीका के वाणिज्य सचिव होवार्ड लुटनिक ने कहा है कि 10 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ  दिनों व सप्ताहों तक जारी रहेगा, लेकिन ट्रम्प  का कहना है कि ओवरआल टैरिफ  जो वियतनाम के लिए 46 प्रतिशतए कम्बोडिया के लिए 49 प्रतिशत और चीन के लिए प्रभावी तौर पर 54 प्रतिशत है, उस समय तक रहेगा जब तक अमरीका का व्यापार घाटा लुप्त नहीं हो जाता। 
तकनीकी दृष्टि से इसका अर्थ यह है कि यह टैरिफ  हमेशा रहेगा क्योंकि गरीब देश जैसे लेसोथो, जिस पर असंतुलित टेक्सटाइल व डायमंड निर्यात के लिए 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है, तो अमरीकी निर्मित उत्पाद खरीद ही नहीं सकता। चीन द्वारा अमरीकी सामान पर जवाबी 34 प्रतिशत टैरिफ  ने बाज़ारों को अतिरिक्त बेचैन कर दिया है। इससे शीत युद्ध एक बार फिर से लौट आया है, लेकिन परमाणु हथियारों के साथ नहीं बल्कि टैरिफ  बमों के साथ। चूंकि अमेरीकी स्टॉक्स भी ढलान पर हैं, इसलिए ट्रम्प  के समर्थक जैसे अरबपति निवेशक बिल एकमैन, जो व्यक्तिगत तौर पर 9 बिलियन डॉलर के मालिक हैं, भी चिंतित हैं कि टैरिफ  से आत्मघाती आर्थिक परमाणु जाड़े आ सकते हैं। जब कुछ सप्ताह या महीनों बाद टैरिफ  की वास्तविक मार महसूस होने लगेगी तब बाज़ार का असल हाल मालूम होगा कि वह कितना नीचे पहुंच गया है, लेकिन बात सिर्फ स्टॉक दामों की नहीं है। बाज़ार जब नीचे जाता है तो आमतौर से अमरीका में मंदी आती है और दोनों निवेशक बैंक गोल्डमैन सैक्स व जे.पी. मॉर्गन ने कुछ दिन पहले मंदी आशंकाओं की पुन: समीक्षा की। गोल्डमैन सैक्स का अनुमान अमरीका में 35 प्रतिशत मंदी का है और उसके बड़े प्रतिद्वंदी मॉर्गन की भविष्यवाणी है कि इस साल वैश्विक मंदी 60 प्रतिशत हो सकती है।
जे.पी. मॉर्गन के सीईओ जैमी डिमोन ने 7 अप्रैल, 2025 को अपने शेयर होल्डर्स को जारी किये गये वार्षिक पत्र में स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर मंदी नहीं भी आती है तो भी टैरिफ विकास को धीमा कर देगा। अनुमान यह है कि अधिकतर देश व्यापार समझौते कर लेंगे और टैरिफ  का प्रभाव कुछ माह में कम हो जायेगा। व्हाइट हाउस का दावा है कि अब तक 50 से अधिक देश उससे संपर्क कर चुके हैं, लेकिन चीन झुकने को तैयार नहीं है और कोई भी जटिल उत्पाद चीनी पुर्जों के बिना बनाना असंभव है। इसलिए अमरीका व चीन के टैरिफ का दर्द पूरी दुनिया में महसूस किया जायेगा। इसलिए मंद पड़ते भारत को जल्दी से दोस्ताना व्यापार समझौते कर लेने चाहिए ताकि अनिश्चितता पर विराम लगे। लेकिन यह कमज़ोर वर्गों जैसे किसानों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। यह सही है कि बहुत कम समय में ट्रम्प ने भारत सहित 50 से अधिक देशों को मजबूर कर दिया है कि वह वार्ता मेज़ पर आकार व्यापार समझौता करें, लेकिन इनमें से कुछ को ही यकीन है कि ट्रम्प का अचानक गुस्सा फूटना बंद हो जायेगा। वित्तीय बाज़ारों में जो उलझन व अनिश्चितता है, वह टीम ट्रम्प  के आर्थिक उद्देश्यों में निरंतरता के अभाव के कारण है। वह चाहते हैं कि अमरीका का व्यापार घाटा कम हो जाये।  इसमें कोई बुराई नहीं है और व्यापार फासले को कम करने की मदद में डॉलर मुलायम हो जाये, लेकिन वह साथ ही यह भी चाहते हैं कि डॉलर विश्व की रिज़र्व करंसी में अपने मुकाम को बनाये भी रखे।
 इन दोनों को संतुलित करना कठिन है। शायद ट्रम्प  चाहते हैं कि उन्हें इतिहास इस तरह से याद करे कि वह भूमंडलीकरण की कमियों को दुरस्त करके विश्व को नये संतुलन की ओर लेकर आये, जिससे अमरीका का वित्तीय व व्यापार घाटा कम हुआ। इसके लिए बेहतर होता कि वह उस ट्रैक का चयन करते जिस पर ट्रेन धीमे चलती है, लेकिन वह तो 50 साल का काम 4 साल में करना चाहते हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर  

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