ट्रम्प की नीतियों का प्रभाव

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से शुरू किए गए टैरिफ (टैक्स) युद्ध ने विश्व भर में ही नहीं, अपितु अमरीका में भी एक तरह से बड़ी हलचल पैदा कर दी है। पैदा हुई आर्थिक अस्थिरता के कारण चिंता में डूबे अमरीकियों ने वहां बहुत-से शहरों में राष्ट्रपति के विरुद्ध बड़े प्रदर्शन किए हैं परन्तु ट्रम्प ने अपने पक्ष को उचित बताते हुए यह कहा है कि उनका यह कदम एक कड़वी दवाई की भांति है जिसे पीना ही पड़ेगा, क्योंकि इसी में अमरीका की भलाई है और आगामी समय में अमरीका एक बार फिर मज़बूत और महान देश बन कर उभरेगा। ट्रम्प अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में टैक्सों के लेन-देन में किसी तरह का घाटा नहीं चाहते। 
वर्ष 2024 में अमरीका को अन्य देशों के साथ हुए व्यापार में 1.2 ट्रिलियन डॉलर (एक लाख तीन हज़ार दो सौ साठ अरब रुपए) का जो घाटा पड़ा था, वह उसकी पूर्ति चाहते हैं। यहीं बस नहीं, उन्होंने अपने मित्र एलन मस्क जो आज विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति माने जाते हैं, की सलाह पर अमरीका द्वारा ़गरीब और ज़रूरतमंद देशों के लिए शुरू की गईं अनेक योजनाओं को बंद कर दिया गया है। इस काम में लगे भारी संख्या में कर्मचारियों को भी हटा दिया  गया है। मस्क ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही धरती की तपिश, प्रदूषण को कम करने की योजनाएं और संयुक्त राष्ट्र को भिन्न-भिन्न कार्यों हेतु दी जाती बड़ी राशि पर भी प्रतिबन्ध लगवा दिया है। आज की कुल अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था 110 ट्रिलियन डॉलर (94 लाख, 65 हज़ार 5 सौ अरब रुपए) निर्धारित की गई है। इसमें अमरीका का लगभग तीसरा हिस्सा है परन्तु उसके मुकाबले में चीन की अर्थ-व्यवस्था भी काफी मज़बूत दिखाई दे रही है। उसका भी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था में 20 प्रतिशत का हिस्सा माना गया है, चीन की ओर से अमरीका द्वारा लगाए गए टैरिफ के विरुद्ध कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए अमरीकी आयातकों पर भी भारी टैरिफ लगाने की घोषणा की गई है जबकि भारत ने समूची स्थिति के दृष्टिगत अभी टकराव की नहीं, अपितु इस मामले पर बातचीत की नीति अपनाई है, परन्तु भारतीय शेयर बाज़ारों के एकदम गिरने ने यहां भी बड़ी चिन्ता पैदा की है। भारत को अमरीका की ओर से 26 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने से उत्पादों पर अन्य उन देशों की भांति भारी घाटा पड़ने का ़खतरा नहीं है, जिन्होंने अमरीका के साथ व्यापक स्तर पर व्यापारिक लेन-देन बनाया हुआ है।
दक्षिण-पूर्वी एशिया के मलेशिया और थाइलैंड जैसे देशों का व्यापक स्तर पर अमरीका के साथ व्यापार होता है, जिस कारण उस क्षेत्र के ज्यादातर देशों पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ने की सम्भावना बनी दिखाई देती है। चाहे आज अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार डॉलर में ही चलता है, परन्तु फिर भी भारत ने अन्य बहुत-से देशों के साथ व्यापारिक संबंध बनाए हुए हैं। समय के व्यतीत होने से अमरीका के मुकाबले उसे व्यापार के लिए अन्य देशों को अधिक प्राथमिकता देने की नीति अपनानी पड़ेगी। इसलिए ही सोमवार के दिन जापान और हांगकांग जैसे देशों के शेयर बाज़ारों में जितना घाटा देखा गया, उसके मुकाबले भारत के शेयर बहुत कम गिरे हैं, परन्तु एकाएक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापारिक गतिविधियों में पैदा हुई इस उलझन ने स्थिति को गम्भीर और चिन्ताजनक ज़रूर बना दिया है। अमरीका की ओर से बाहरी देशों से होते आयात के संबंध में अपनाई गई नई नीति के कारण उस देश को आयात कम होगा, जिस कारण वहां आर्थिक मंदी और महंगाई के बढ़ने की बड़ी सम्भावनाएं बन गई हैं। एक अनुमान के अनुसार इससे होने वाली महंगाई के दृष्टिगत प्रत्येक अमरीकी परिवार पर वार्षिक 4200 डॉलर (3 लाख 61 हज़ार 410 रुपए) का बोझ पड़ेगा। इस समय तो पैदा हुई इस जटिल स्थिति संबंधी ट्रम्प अपनी नीतियां जारी रखने के हठ पर अडिग हैं, परन्तु वह अपने देशवासियों के साथ-साथ इस मुहाज़ पर बन रहे अन्तर्राष्ट्रीय दबाव को कैसे और कितने समय तक सहन कर सकेंगे, यह देखने वाली बात होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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