अदरक वाली चाय

इधर डेस्कटॉप पर बैठा सुबह की अपनी पहली चाय के घूंट भर ही रहा था कि रसोई से अदरक कूटने की चिर-परिचित आवाज़ आई। श्रीमती जी शायद हमारी दूसरी चाय की तैयारियों में जुट गई थीं। सुबह अपने तथाकथित साहित्यिक सर्जन कार्य करते वक्त दो चाय की अलिखित मंजूरी श्रीमती जी ने दे दी थी। कभी-कभार मेरी गुड़िया के घर पर होने पर, बाप-बेटी की जिद के चलते एक और चाय बोनस में मिल ही जाती है। मैंने भी अपनी चाय की आदत को गुड़िया को विरासत में दे दिया है, ताकि घर में चाय आरक्षण के विधेयक पर बहुमत से प्रस्ताव पारित हो सके।  
आज की दुनिया में चाय का जादू सर चढ़कर बोल रहा है, वह भी तब से, जब से हमारे देश का एक साधारण चाय वाला देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुआ। उनकी लोकप्रियता ऐसी बढ़ी कि चाय की चर्चा भी वैश्विक मंच पर होने लगी। मेरा पहला साहित्यिक प्रयास भी इसी चायवाले के इर्द-गिर्द है, जिस पर मेरी किताब ‘चायवाला से चौकीदार तक’ जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है। कभी-कभी सोचता हूँ, अगर हमने भी चाय पिलाने का काम अपनाया होता, तो शायद प्रधानमंत्री बनने की रेस में होते। लेकिन हमने खुद को सिर्फ चाय पीने तक सीमित रखा।
मेरा चाय से रिश्ता भी कुछ कम नहीं। कोटा, भारत की शिक्षा नगरी, जहां हर कोने पर एक नई कहानी बुनी जाती है। हम भी सीनियर की पढ़ाई के बाद वहां मैडीकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए गए थे। वहां स्टेशन के पास की एक थड़ी पर रात के 12 बजे से लेकर 2 बजे तक मेरे साथी और मैं गरम-गरम कट चाय का आनंद लेते थे। यह चाय के साथ जुड़ा हुआ ‘कट, अददा, सिंगल’, मेरे लिए बिल्कुल नए शब्द थे, जो मैंने पहली बार वहीं पर सीखे। ये वो शब्द हैं जो चाय की आदत को आपकी जेब के अनुकूल बनाते हैं।  
एमबीबीएस कॉलेज के समय में, ‘संजय’ की थड़ी और ‘गोदु’ की थड़ी पर कट चाय हाथ में लिए, बांस की सरकंडों की बनी मूढ़ियों पर बैठे, दोस्तों के साथ घंटों तक चलने वाले वार्तालापों का वह सेशन, जहां बड़ी-बड़ी प्लानिंग की जाती थी। जैसे किसी सेटिंग को तोड़ना, कब मास बंकिंग करनी है, ये सब वहां की मुख्य चर्चाएं होती थीं। खां की बारात और कल्ट वीक के आयोजन से लेकर मेस बंद होने पर बेगानी शादी में दावत उड़ाने की प्लानिंग तक, सभी योजनाएं वहीं बनती थीं।
शादी के बाद, चाय की एक विशेष स्मृति मेरे जीवन में जुड़ गई। बॉयज हॉस्टल में तो वैवाहिक जीवन व्यतीत नहीं कर सकते थे, इसलिए कॉलेज से दूर कॉलोनी में एक कमरा और रसोई का पोर्शन किराए से लेना पड़ा। हमारी मकान मालकिन और मालिक, जिन्हें हम आंटी और अंकल कहते थे, बड़े ही ढीठ किस्म के दम्पति थे और इसका पता हमें पहले दिन ही लग गया था। हुआ यूँ कि कमरा शिफ्ट करने के साथ पहली मुलाकात में ही मेरे पापा, जो गांव से आए थे, ने कह दिया कि ‘बेटा, आपका और बहू भी आपकी, इन्हें आप संभालो, आप ही इनके माई-बाप हैं।’ इस बात को अंकल और आंटी ने थोड़ा ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया।  
आंटी ने मेरी पत्नी की जिंदगी में ललिता पवार जैसी सास का रोल निभाना शुरू कर दिया। हालात इतने खराब हो गए कि मेरी पत्नी इस नकली सास के अत्याचारों से दुखी होकर गांव जाने की जिद करने लगी। और, हां, यहीं आंटी जी के साथ चिरस्मृति वाली चाय वाली घटना हुई। आंटी जी का मकान नया-नया बना था, शायद हम दूसरे ही किरायेदार थे। बाद में पता लगा कि पहले वाले भी इस चाय वाले कांड से दुखी होकर ही कमरा खाली कर गए थे। चाय में अदरक का स्वाद हमारी परंपरागत मज़बूरी थी। तो, पहले ही दिन सुबह-सुबह चाय बनाते समय, मेरी पत्नी ने जैसे ही छोटी सी ओखली में अदरक डालकर कूटना शुरू किया, उसके धमाके से व्याकुल आंटी जी दौड़ी-दौड़ी हांफती हुई किचन में आ गईं।  
आंटी जी का चेहरा एकदम लाल, बीपी बढ़ा हुआ, लगभग बेहोशी की स्थिति में। पता चला कि आंटी जी का यह बीपी भी इसी किसी अदरक कूटने वाले दुर्दांत कृत्य से शरीर में प्रवेश कर गया था। उस दिन शाम तक आंटी जी बिस्तर में पड़ी रहीं। मैं और श्रीमती जी उस दिन हाथ में पंखी लिए हवा करते रहे, आंटी के चेहरे पर पानी के छींटे देते रहे, लेकिन जो नुस्खा काम आया वह यह था-हमारे बार-बार यह वादा करने के बाद कि ‘आंटी जी, हम चाय में अदरक नहीं डालेंगे,’ तब जाकर आंटी जी शाम तक ठंडी, यानी ठीक हो पाईं। इधर चाय बिना अदरक के एक प्रकार से हमारे लिए तो सजा ही थी। तो, बहुत धीरे-धीरे अदरक को कुछ कूटकर, कुछ छोटे-छोटे टुकड़े काटकर, किसी प्रकार से अपनी चाय की आबरू बचाते रहे। आज भी, अदरक कूटने की जब आवाज़ रसोई से आती है, तो वह आंटी बरबस याद आ जाती हैं।  
अब, यूँ तो डायबिटीज ने घेर लिया है और चाय में मिठास का नामोनिशान तक नहीं रहा, लेकिन चाय अब भी जीवनचर्या का अभिन्न अंग बनी हुई है। भारतवासियों ने चाय में जितने प्रयोग किए हैं, शायद ही किसी और ने किए होंगे। कोई इसमें अदरक, लौंग, काली मिर्च का छौंक लगाता है, तो कोई कुछ और मसालों काय चाय के विभिन्न मसाले बाज़ार में आ चुके हैं। लेकिन आज भी जो मजा अदरक वाली चाय में आता है, वह किसी और में नहीं। हम जब भी बाहर किसी और राज्य में घूमने जाते हैं, अदरक साथ में ले जाना नहीं भूलते। चाय का ऑर्डर देते वक्त चाय वाले को अदरक पकड़ा देते हैं, ‘भाई, ये ज़रूर डाल देना।’ (सुमन सागर)

#अदरक वाली चाय